किस्से केदारनाथ के

22 अप्रैल को जब मैं गौरीकुण्ड से केदारनाथ के लिए पैदल चल रहा था तो मन में एक नई ऊर्जा और आनंद का संचरण हो रहा था। सुबह 6 बजे नाश्ता करने के बाद घोड़े खच्चरों के पैरों और घंटियों की आवाज कानों में गूंज रही थी। गौरीकुंड में काफी चहल पहल थी। नेपाली मजदूर, घोड़े खच्चर वाले और स्थानीय लोगों की चहक़दमी से गौरीकुंड 15 दिन पहले ही गुलजार हो चुका था। खाने पीने की वस्तुएं और अन्य सामान खच्चरों में जा रहा था। स्थानीय व्यापारी भी इस बार की यात्रा से काफी खुश दिखाई दे रहे थे। उन्हें उम्मीद थी यात्रा इस बार सारे रिकॉर्ड तोड़ेगी और 2 साल का सन्नाटा खत्म होगा।
गौरीकुण्ड से आगे खच्चरों के साथ हम भी चल दिये। 15 सौ में खच्चर समान लेकर आ रहे थे। इस साल खच्चरों की संख्या में इजाफा हो गया। हमारे साथ एक काला कुत्ता भी शामिल हो गया। जंगलचट्टी तक पहुँचते ही बारिश ने हमारा स्वागत किया।अमूनन केदारघाटी में बारिश दोपहर के बाद शुरू होती है। जंगलचट्टी में 15 दिन पहले ही दुकानें सज चुकी थी। हमने यहाँ चाय पी और प्रकाश सिमल्टी के साथ फिर आगे बढ़ गए। करीब 10 बजे हम भीमबली पहुँच गए। प्रकाश चूंकि आपदा के बाद पहली बार केदार की यात्रा में आ रहा था लिहाजा उसे हर बारीक जानकारी मैं देता गया। इस बीच हमें कई यात्री भी मिले जो केदारनाथ जा रहे थे। हमने पूछा कि कपाट तो खुले ही नही तो बोले केवल मंदिर दर्शन करने है।

भीमबली अब इतिहास में दफन हो चुके रामबाड़ा का स्थान ले रहा है। रामबाड़ा का 2013 की आपदा में नामोनिशान मिट गया। गौरीकुंड से रामबाड़ा ठीक 7 किमी हुआ करता था जबकि भीमबली 6 किमी की दूरी पर बसा है। इस बार रामबाड़ा के पास हिमखंड टूटकर नही आया था। भीमबली में भी दुकानें खुल गई। चहल पहल बढ़ गई थी। यहाँ पर जीएमवीएन के गेस्ट हाउस और करीब 6-7 खाने पीने की दुकानें है। एक इमरजेंसी हेलीपैड भी है और रेस्क्यू टीम भी तैनात की गई है।
भीमबली से आगे बढ़े तो कुछ दुकानदार दिखाई दिए जिन्हें वन विभाग दुकानें नही लगाने दे रहा था। चूंकि इस बार यात्रा अच्छी चलने की संभावना है तो सभी यात्रा मार्ग में दुकानें लगाने की तैयारी में थे। ये दुकानदार तो डीएम द्वारा एलॉट किया गया काजग दिखा रहे थे। उनकी बातों को रिकॉर्ड किया और आगे बढ़े। छोटी लिंचोली पहुँचे कि बारिश और ओले भी गिरने लगे। रेन शेल्टर में रुककर हम बारिश की फुहारों का आनंद ले रहे थे। ठंड का अहसास शुरू हुआ और हमने गर्म जैकेट निकाल ली।सोचा मैदानी इलाकों में तो लोग गर्मी से बेहाल है और हम सर्दी से। करीब एक घंटा बदरा जमकर बरसे। आगे बढ़े तो बड़े बड़े हिमखंड दिखने लगे। कहीं कहीं पर बुराँश के लाल और सफेद फूल खिल रहे थे।

यहाँ बुराँश की कई प्रजातियां पाई जाती है इसके अलावा पांगर, अखरोट, रागा और कई अन्य प्रजाति के पेड़ रामबाड़ा और बड़ी लिंचोली के पास दिखाई देते है। केदारनाथ वन्य जीव अभयारण्य का यह अत्यन्त संवेदनशील क्षेत्र है। इसी बीच मुझे मोनाल की हलचल पता लगी तो मैं भी अलर्ट हो गया। सच में क्या मनमोहन है सर पर मुकुट और ब्लू रंग के साथ पंखों में कई रंग। मोर की तरफ नर मोनाल खूबसूरत होता है जबकि मादा मोनाल रंग बिरंगे रंगों से सजी नही होती है।

मोनाल दिखना अपने आप में एक सुखद अहसास होता है क्योंकि यह पक्षि बहुत जल्दी किसी मानव के आहत से ही उड़ जाता है। चूंकि उस समय घोड़े खच्चर नही चल रहे थे इसलिए मोनाल भी झरने के पास आराम से बैठा रहा। काफी देर निहारने और कैमरे में कैद करने के बाद वो वहाँ से उड़ गया।
लिंचोली पहुँचते हमे करीब एक घंटा हो गया रास्ते में कुछ दुकानें खुल गई थी कुछ खुल रही थी। लिंचोली में भी एक हेलीपैड और रहने की काफी व्यवस्था है जीएमवीएन के कॉटेज है। यहाँ बड़ी संख्या में दुकानें और कई टैंट लग रहे है। लिंचोली क्षेत्र में कई बड़े एवलांच पॉइंट है और इसलिए यहाँ हर बार बड़े बड़े हिमखंड टूटकर नीचे आ जाते है। यह पूरा इलाका एवलांच प्रोन क्षेत्र है जिसमे करीब 6 बड़े एवलांच जोन है जिसमें भैरव गदेरा सबसे प्रखुख है।

रुद्रा बेस कैंप तक पहुँचते शाम हो गई। इसके पीछे लगातार शूट करना और जगह जगह बैठकर बाते करना। 2013 कि आपदा के बाद रुद्रा कैंप और बेस कैंप सबसे ज्यादा सुरक्षित है। केदारपूरी में आकर मानो सारी थकान खत्म हो चुकी थी लेकिन पूरे यात्रा मार्ग पर प्लास्टिक कचरे को देख मन उद्वलित हो गया। प्रकाश और मैंने फैलसा किया कि इस बार केदारघाटी से प्लास्टिक हटाने का कार्य भी किया जाएगा। आपको जानकर हैरानी होगी कि पूरे केदारपुरी में प्लास्टिक ही प्लास्टिक फैल चुका है और यह एक बड़ी चुनौती हमारे सामने बन गया है।

शाम 5 बजे रामानंद आश्रम आये। ललितदास महाराज से मुलाकात हुई और फिर उसके बाद यात्रा से जुड़ी कई बातों पर देर रात चर्चा होती रही।


Leave a Reply