
ऊर्गम घाटी की मेरी यात्रा और गौरा देवी सम्मान
4 जून के दिन गर्मी बहुत थी। बस में खिडकी के पास बैठी दोनो बेटियां अलकनंदा नदी को निहार रही थी। लोकसभा चुनाव में यूपी कवर कर मै करीब दो महीनों के बाद परिवार के साथ चमोली जिले की अप्रितम सौन्दर्य से लबरेज उर्गम घाटी की सैर पर जा रहे है। इसी बीच फोन की घंटी बजी तो मेरा भी ध्यान टूट गया। कहां तक पहुचे गुसाईं जी फोन पर लक्ष्मण नेगी जी ने पूछा तो मैने कहा कि देवप्रयाग पहुँच चुके है। देहरादून से सुबह करीब साढे 6 बजे रोडवेज की बस जोशीमठ तपोवन के लिए जाती है।
पहाडों में रोडवेज की बस में सफर करना अपने आप में रोमांच से भरपूर है। मैने 3 टिकट पहले ही आनलाईन बुक कर दिए ।मई और जून के महीने में पहाडों में यात्रा सीजन पूरे चरम पर होता है। गर्मियोंं में मैदानी इलाकों में रहने वाले पहा़डी भी अपने घरों में छुट्टियां बिताने आते है लिहाजा बसों में भीड़ बहुत ज्यादा होती है। परिवार के साथ सफर कर रहे हो तो इसका ख्याल पहले ही रखना होता है। देहरादून से बस श्रीनगर पहुच गई है। रास्ते में कई जगह यात्रियों और सवारियों की भीड से मेरा अनुमान भी सही निकला। लोकसभा चुनाव 2019 के खत्म होने के बाद पहाडों में पर्यटकों की भीड उमड़ चुकी है। श्रीनगर गढवाल क्षेत्र का एक बडा बाजार है जहां मेडिकल कालेज, केन्द्रीय विवि और डैम बन गया है। अलकनंदा नदी के किनारे स्थित यह बाजार कई बार उजड चुका है।

करीब 6 बजे हम हेलंग पहुँचे। यहां हमारे लिए लक्ष्मण जी ने मैक्स गाडी की व्यवस्था की हुई थी। यहां से हमें अलकनंदा नदी से अलग कल्पगंगा के किनारे देवग्राम गांव पहुचना था। गर्मियों के दिनों में सूर्यादय साढे सात बजे होता है। उर्गम-कल्पेश्वर मोटर मार्ग अभी भी खस्ताहाल है। बच्चे श्रेयांसी और श्रावणी और पत्नी बबीता अदभुत नजारों को देखते और मुझसे पूछते रहते तो मै जानकारी देता रहा। कल्पगंगा के किनारे होते हुए हम देवग्राम में पहुचें तब तक अंधेरा हो चुका था। लक्ष्मण नेगी जी ने हमारा स्वागत किया और यहां बने कल्पनाथ होमस्टे में हमने रात्रि विश्राम किया। रात में हरी सब्जी और मंडुवे की रोटी घी लगी हुई खाई और सो गए।
परिवार के साथ पहुचे ऊर्गम घाटी
सुबह चिडियों की चहकने की आवाज सुनकर नींद टूटी। 5 जून विश्व पर्यावरण दिवस के दिन हम परिवार के साथ ऊर्गम घाटी में थे। लम्बे समय से परिवार के साथ कहीं घूमने का प्लान नही बन पाया। ऊर्गम घाटी को चमोली जिले का धान का कटोरा कहते है। इस घाटी में धान, आलू, चौलाई और राजमा की फसल होती है। घाटी में करीब 12 गांव है जिममें बासा, ल्वारी, सलना , देवग्राम प्रमुख है।

देहरादून से हेलंग करीब 280 किमी की दूरी पर स्थित है और हेलंग से 12 किमी की दूरी पर देवग्राम गांव पडता है। इस पूरी घाटी में देवदार, मोरू, खर्सू, बांज, बुरांश और काफल से घिरी हुई है। उच्च हिमालय में स्थित इस घाटी में भी जलवायु परिवर्तन ने खेती पर प्रभाव डालना शुरु कर दिया है। पर्यावरणीय चिंताओं के लिए हर साल इस गांव में विश्व पर्यावरण दिवस जनदेश संस्था मनाती है। संस्था हर साल 5 जून को पर्यावरण, पर्यटन, शिक्षा, स्वास्थ्य और संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले सख्शियतों को सम्मानित करती है और इस साल पर्यटन के लिए मुझे दिया जा रहा था। 2017 में जी न्यूज के माध्यम से नंदी कुंड की यात्रा पर एक विस्तृत डाक्यूमेट्री तैयार की थी।
अपनी अद्वितीय सौन्दर्य के लिए प्रसिद्व है कल्पगंगा घाटी(ऊर्गम घाटी)

9 बजे सभी तैयार होकर पंचकेदार में कल्पेश्वर धाम के दर्शनों के लिए निकल पडे। कल्पकेदार होम स्टे में सुबह का नाश्ता करने के बाद हम परिवार के साथ कल्पनाथ के दर्शनों के लिए चले। श्रेयांशी और श्रावणी दोनों बहनें तेजी से आगे जा रहे थे। जून के महीने में भी यहां हरियाली खेतों में दिखाई दे रही थी। 2013 में इस इलाके में भी भारी बारिश ने काफी तबाही मचाई थी। कई खेत कल्पगंगा में समा गये। पहले सडक देवग्राम से पहले तक ही थी जब 2010 में ईटीवी में रहते हुए मै पहली बार इस घाटी में आया था। उस दौर को दिल और मन कभी नही भूल सकता जब स्थानीय लोगों ने ढोल दमऊ और फूल मालाओं के साथ मेरा स्वागत किया था।

शायद पहली बार उस दौर में कोई इलेक्ट्रानिक मीडिया से कोई पत्रकार गया था। करीब 10 बजे डेढ किमी का पैदल ट्रैक कर कल्पगंगा नदी के किनारे पहुच गये। कुछ फोटो खिंचवाए। पहले नदी पर लकडी का पुल हुआ करता था अब बडा पुल तैयार हो चुका है। पुल के पास एक झरना सारी थकान मिटा दिता है। करीब 25 मीटर ऊचाईं से यह वाटरफाल गिरता है। पुल के ऊपर से गुजरना एक अलग एहसास करता है जब झरने का शोर कल्पगंगा की कल कल करती थ्वनि और हवा का झोंका सब एक साथ आपको आकर छू जाता है। मेरी धर्मपत्नी काफी खुश थी। उन्हें यह इलाका काफी पसन्द आ रहा था।
पंचम केदार कल्पनाथ की पावन भूमि

कल्पनाथ पंचकेदार में पंचमकेदार है। यहां भगवान शिव की जटाओं की पूजा होती है। प्रथम केदार केदारनाथ धाम को कहा जाता है जहां भोलेनाथ की पृष्ठ भाग की पूजा होती है द्वितीय मध्यमहेश्वर जहां नाभि, तृतीय केदार तुंगनाथ जहां ह्दय और बाहु चतुर्त केदार रुद्रनाथ जहां मुख की पूजा अर्चना की जाती है। चारों केदार सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण बंद हो जाते है केवल कल्पेश्वर ही वर्ष भर श्रद्वालुओं के लिए खुला रहता है। यहां विशाल पत्थर के नीचे भोलेनाथ की पूजा की जाती है। यहां पुजारी ठाकुर है और पूजा अर्चना खड़े होकर की जाती है। मंदिर के पास ही एक दिव्य कुंड है जहां कितना भी पानी निकाल लिया जाए वो कुंड कभी खाली नही रहता। कहते है यहां अक्सर सांप दिख जाते है और अगर आपकी किस्मत अच्छी है तो आपको भी सांप दिख सकते है। कल्पेश्वर से कई ट्रैक भी जाते है।मंदिर के पास एक धर्मशाला भी है कुछ सन्यासी भी यहां महेशा दिखाई देते है।
24वीं गौरा देवी पर्यावरण एवं विकास मेला का आयोजन

2 बजे से विश्व पर्यावरण दिवस का कार्यक्रम शुरु होना था। जनदेश संस्था और स्थानीय ग्रामवासियों की तरफ से देवग्राम में कार्यक्रम आजोजित किया गया है। लक्ष्मण नेगी पिछले करीब सालों से पहाड में जनदेश की तरफ से सम्मान दे रहे है। इस साल मुझे, पर्यावरण के क्षेत्र में धन सिंह घरिया, सहित कई लोगों को यह सम्मान दिया जा रहा है। स्कूल प्रांगण में आस पास की महिलाओं ने पहले सांसकृतिक कार्यक्रम किये। दोनों बेटिया और पत्नी सभी कार्यक्रमों को ध्यान से देख रही थी। वाकई में इससे पहले हमने महानगरों में कई बडे बडे कार्यक्रम विश्व पर्यावरण दिवस के दिन कवर किए थे लेकिन आज मालूम चला कि सूदूर हिमालय के अचंल में बसे गांवों में भी लोगों के अन्दर अपने पर्यावरण और हिमालय के प्रति कितनी रुचि है आखिर विश्व प्रसिद्व गौरा देवी भी इसी पवित्र भूमि की थी जो पेडों को काटने से बचाने के लिए उनपर चिपक गई थी।
यह सम्मान मेरे पूरे जीवन में एक यादगार लम्हा रहेगा। पूरे 40 दिन वाराणसी में 40 से 46 डिग्री तापमान में देश के चुनावी शोरगुल के बीच बिताने के बाद हिमालय की तलहटी में पहुच चुका था। इस घाटी में कब बारिश हो जाए पता नही चलता। जून के पहले हफ्ते में लोगों ने मंडुवा, चौलाई और धान अपने खेतों में बो चुके हैं। अपनी जैवविविधता और घने देवदार के जंगलों के लिए यह घाटी उत्तराखंड की सबसे खूबसूरत घाटियों में से एक है। यहां कल्पनाथ के अलावा सप्त बद्री में से एक योगध्यान बद्री, फ्यूलानारायण, वंशीनारायण, घंटाकर्ण मंदिर मौजूद है। यहां से नंदी कुंड ट्रैक, फ्यूलानारायण, सोना शिखर और रुद्रनाथ ट्रैक कर सकते है।
जब पत्नी और बेटियों ने किया मेरा सम्मान

अचानक मंच से 24 वां गौरा देवी की घोषणा शुरु हो गई और पहले मेरी दोनों बेटियों और धर्मपत्नी को बुलाया गया। इसके अलावा मोहन प्रसाद थपलियाल और सचिव जनदेश लक्ष्मण नेगी ने यह सम्मान मुझे दिय़ा। इसके अलावा अन्य सभी साथियों को भी सम्मानित किया गया। वाकई में कार्यक्रम भले ही भव्य ना रहा हो लेकिन इस कार्यक्रम में घाटी का हर बच्चा, महिला और पुरुष शिरकत कर रहा था। जनदेश संस्था पिछले 26 सालों से भी अधिक समय से शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण और पर्यावरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। मेरे लिए यह पल यादगार बच चुके थे। करीब 3 घंटे कार्यक्रम चला और रात्रि कल्नाथ होमस्टे में गुजारने के बाद अगले दिन मै परिवार के साथ देहरादून लौट आया। इस विश्वास के साथ कि कभी भी इस सम्मान को गलत साबित नही होने दूंगा और जल्द ही दोबारा इस घाटी में वापस लौटकर कुछ जमीनी कार्य करने की कोशिश करुंगा।
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