
ग्रामीण अर्थव्यवस्था की स्थिति भले ही पहाड़ों पर अच्छी नही हो लेकिन एक इलाका ऐसा भी जहां ग्रामीण अर्थव्यवस्था एक नई कहानी बयां करती है। चमोली जिले की महिलाओं ने हिमालय एक्शन रिसर्च सेंटर (हार्क) के सहयोग से कुछ ऐसा किया कि ना सिर्फ महिलाएं अपनी आजीविका बढा रही है बल्कि लोगों को भी उम्मीद की एक किरण दिखा रही है। चमोली गढवाल के कर्णप्रयाग के पास अलकनंदा घाटी की महिलाओं ने स्वरोजगार की नई मिशाल पेश की है। इन गांवों के लिए हार्क(हिमालयन एक्शन रिसर्च सेंटर) 2006 में वरदान बनकर आया।
हार्क ने अलकनंदा घाटी के दर्जन भर गांव की महिलाओं को ट्रैनिंग देनी शुरु की। महिलाओं को सब्जी, फल और मसाले उत्पादन की ट्रेनिंग दी। धीरे धीरे महिलाओं ने अपने समूह तैयार किए लेकिन बंदर और सूअर खेतों में फसलों और क्रैश क्राप को तहस नहस कर देते थे। ऐसे में हार्क ने स्थानीय लोगो से राय मशवरा कर तुलसी उत्पादन पर जोर देना शुरु कर दिया। तुलसी का उत्पादन शुरु करने के बाद उसे देश ही नही बल्कि विदेशों तक में भेजा जा रहा है और केवल तुलसी चाय ही लाखों की बिक रही है। हार्क संस्था के संस्थापक डॉ महेंद्र कुँवर ने कहा कि उन्होनें महिलाओं को तकनीकी सहयोग दिया और भारत सरकार की मदद से कई मशीनें भी महिलाओं के समूह को उपलब्ध कराई गई। अभी 3 अलग अलग तुलसी चाय की वैरायटी बनाई जा रही थी लेकिन अब 7 नए ब्रांड बाजार में लाये जा रहे है।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था का नायाब माडल है अलकनंदा बहुदेश्यीय स्वायत्त सहकारिता
पर्वतीय इलाकों में कई महिला स्वयं सहायता समूह कार्य करते है लेकिन काफी मेहनत करने के बाद भी महिलाओं के उत्पाद को बाजार उपलब्ध नही हो पाता। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण स्वयं सहायता समूह का अलग अलग होना है। अप्रैल 2009 को हार्क के सहयोग से महिलाओं के कई समूहो को को-ओपरेटिव सोसाईटी में बदल दिया गया। कर्णप्रयाग के पास कालेश्वर गांव में सोसाईटी का प्लांट तैयार किया गया। हार्क की मदद से फूड प्रोसेसिंग की कई मशीने लाई गई औऱ फिर 80 महिलाओं ने माल्टा, बुरांश, बेल, आवंला, जैम, चटनी सहित कई स्थानीय उत्पाद तैयार करने शुरु कर दिए। कालेश्वर गांव से शुरु हुआ महिलाओं का एक छोटा समूह अब पूरे चमोली गढवाल में फैल चुका है और इसमें दो हजार से अधिक महिलाएं जुड गई है। अलकनंदा बहुद्देश्यीय स्वायत्त सहकारिता की कोषाध्यक्ष रेखा देवी कहती है महिलाओं की को-आपरेटिव सोसाईटी से महिलाओं का काफी फायदा हुआ है और बडी संख्या में महिलाएं स्वरोजगार से जुड रही है। रेखा देवी कहती हैं है कि आस पास के इलाकों में तुलसी की खेती की जा रही है जिसे जानवर भी नुकसान नहीं पहुंचाते।

तुलसी को जंगली जानवर भी नही पहुचाते कोई नुकसान
अलकनंदा घाटी में तुलसी उत्पादन तेजी से फैल रहा है। इसके पीछे सबसे बडा कारण ये है कि जानवर इसे कोई नुकसान नही पहुचाते साथ ही तुलसी उत्पादन के लिए बहुत पाना की जरुरत नही और यह साल में 2 से 3 बार फसल दे देती है। तुलसी टी स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक है। पहले स्वायत्त सहकारिता ने तुलसी की तीन ब्रांड बाजार में उतारे जिन्हें ग्राहकों ने काफी पसंद किया। अलकनंदा स्वायत्त सहकारिता द्वारा तैयार की जा रही तुलसी चाय की महक स्वीडन और फ्रांस तक पहुच चुकी है लेकिन पिछले 2 सालों से कोविड संक्रमण के कारण तुलसी चाय की बिक्री पर सीधा असर पड़ा है।

इसके अलावा दिल्ली, चंडीगढ, मुम्बई और देहरादून शहरों से भी लगातार डिमांड आ रही है। समिति पिछले 4 सालों से बदलते बाजार को देखते हुए आनलाईन बेचना शुरू कर दिया है। तुलसी चाय ही नही बल्कि अन्य स्थानीय उत्पाद भी धूम मचा रहे है।
7 और नए फ्लेवर तैयार की जाएगी तुलसी टी
वर्तमान में तुलसी चाय केवल तीन फ्लेवर में तैयार की जा रही है जिसमें तुलसी जिंजर टी, तुलसी ग्रीन टी और तुलसी तेजपत्ता चाय प्रमुख है। अब तुलसी रोजमेरी, तुलसी कैमामाइल, तुलसी रोजमैरी, तुलसी बुरांश, तुलसी मिंट, तुलसी लेमनग्रास, तुलसी नेटल(कंडाली) की नई फ्लेवर अब बाजार में आएगी। चमोली गढवाल के 5 ब्लाक जोशीमठ, पोखरी, घाट, कर्णप्रयाग और गैरसैंण में तुलसी की खेती की जा रही है। वर्तमान में केवल 400 काश्तकार ही 1 नाली में तुलसी की खेती कर रहे है।

लगातार बढ रही डिमांड के बाद अब इसका उत्पादन और बढाने की तैयारी की जा रही है। अब करीब एक हजार और काश्तकारों से तुलसी का उत्पादन कराने का लक्ष्य है। अलकनन्दा स्वायत्त सहकारिता के प्रोग्राम मैनेजर गणेश उनियाल ने कहा तुलसी टी की डिमांड काफी बढ रही है और अभी काश्तकारों से केवल 1 नाली भूमि पर इसकी खेती कराई जा रही है लेकिन अब इसे और बढाया जाएगा। गणेश ने बताया कि तुलसी का उत्पादन बंजर भूमि में हो जाता है और इसकी देखभाल भी नही करनी पड़ती। अभी स्वायत्त सहकारिता से 50 लाख का सालाना टर्नओवर हो रहा है। वर्तमान में देहरादून से जोशीमठ तक 200 दुकानें पर तुलसी चाय बेची जा रही है।

पलायन और किसानों की आय दोगुनी करने के लिए तुलसी उत्पादन हो सकता है कारगर
उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में अधिकर कृषि बारिश पर निर्भर है। सिंचाई की कमी के कारण कई फसलें पर्वतीय इलाकों में खराब हो जाती है और जो बचती है उसे जंगली सूअर, बंदर, खरगोश और कई चिड़िया बर्बाद कर देते है। कृषि विशेषज्ञ और हार्क संस्था के संस्थापक डा महेन्द्र कुंवर ने कहा कि ये किसानों के लिए रामबाण है। उन्होने कहा कि पर्वतीय इलाकों में तुलसी का बडे पैमाने पर उत्पादन किया जा सकता है। 1 नाली में 5 कुंदल तुलसी का उत्पादन किया जा सकता है। केवल तुलसी से ही पहाड़ की ग्रामीण अर्थव्यवथा को बदला जा सकता है।स्वायत्त सहकारिता की अध्यक्ष बीना देवी ने कहा कि तुलसी के उत्पादन से सैकड़ो महिलाओ को फायदा हो रहा है। वे कहती है कि तुलसी से महिलाएं एक फसल से 15 से 20 हजार कमा रही है।

अलकनंदा सहकारिता समिति में हर महिला शेयर धारक
अलकनंदा स्वायत्त सहकारिता समिति में करीब 400 महिला सदस्य है जो शेयरधारक भी है। हर पांच साल में इसका चुनाव कराए जाते है।पिछले वित्तीय वर्ष में समिति का सालाना टर्नओवर करीब डेढ़ करोड़ का ही रहा क्योंकि 2 सालो से लगातार कोविड संक्रमण से सहकारिता के उत्पाद बाजार में नही पहुँच पाए। इसके बावजूद पिछले इस वित्तीय वर्ष में केवल तुलसी से ही 50 लाख का मुनाफा हो चुका है। इस मुनाफे को सभी महिलाओं में बांटा जाता है जो इसकी शेयरधारक है। केवल तुलसी टी ही नही बल्कि माल्टा,बुरांश और आवला का स्कैश, जैम, अचार यहां तैयार किए जाते है। गर्मियों के समय तो बुरांश और माल्टा का जूस काफी बिकता है लेकिन पिछले 2 सालों से उसी समय लॉक डाउन लग जा रहा है। स्वायत्त सहकारिता अपना सलाना टर्न ओवर 5 करोड़ तक ले जाना चाहते है।

आप ऑनलाइन और फोन से भी तुलसी चाय आर्डर कर सकते है।
संपर्क: गणेश उनियाल-94121 42875
Online: www.switchon.co.in



hello, Bhaiji,
please share your itinerary for FEB and MARCH. I want to join you for further festival in Uttarakhand.
फरवरी और मार्च में पौड़ी गढ़वाल सीरीज चलेगी।।
आप कम्युनिटी पोस्ट देखते रहिएगा।।
You are great sandeep bhai,, good 👍 job as usual
I am fan your work,, I am regularly watching your content
Keep going🙏
thank you Prashant ji
Hi
I would like to buy 10 pack of each tea packs. Can you please give me contact details so I can order them.
Thank you
you can place a order from this site http://switchon.co.in
Very nice..Sandeepbhai…keep up the good work
Planning to visit Uttrakhand very soon
Thankyou
Urmila Ranka
Thank you urmila ji!
Sandeep ji,
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How can we order Tea to be sent to Australia. Happy to pay for postage.
Now, It is working.
As usual, excellent dedicated work being done by you and keeping high concerns with the rural areas, village life, folklore, folk culture, food, music, folk artists etc. especially belonging to Dev Bhoomi, Uttarakhand. Everyone is appreciating your honest and sincere work, keep it up this way and with rural commitment, your golden time is awaiting you ahead, we all are with you, always. All the best to you and your entire team members….. Rajeev from Jaipur
Thank you so much Rajeev ji
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Dear Sandeep
I have been recently introduced to your world by Mr Rajiv ji @ Jaipur. Really find it quite informative. Helps not only the locals but people like us..who for some reasons cannot be at UK..great job ..best wishes !
Thank you Shivendra ji