उत्तराखंड में भी काश्तकारों ने ट्राउट फिशिंग शुरु कर दी है।इस कार्य में युवा सबसे आगे है।उत्तरकाशी जिले में युवओं ने ट्राऊड से रोजगार के नए अवसर पैदा किए है।ह्रदय रोगों के लिए रामबाण ट्राउट एक समुद्री मछली है जिसे अग्रेंज भारत लाए थे और 120 साल पहले नार्वे के नेल्सन ने इसके अंडे डोडीताल में डाले थे।अभी हिमांचल और जम्मू कश्मीर में ट्राउड मछली का उत्पादन बडे स्तर पर जाता है। उत्तराखंड में काश्तकारों की आर्थिकी का ये मुख्य आधार बन रही है।उत्तरकाशी,टिहरी,रुद्रप्रयाग,चमोली,पिथौरागढ और देहरादून के पर्वतीय क्षेत्र चकराता में इसका उत्पादन भी कुछ किसानों ने शुरु किया है।ट्राउट मछली 800 से 1500 प्रति किलो तक बिकती है और कई रोगों के लिए रामबाण मानी जाती है।

बार्सू में कपिल रावत कर रहे है ट्राउट फिशिंग का उत्पादन
उत्तरकाशी के सीमांत ब्लाक भटवाडी के बार्सू गांव में कपिल ने ट्राउट मछली का उत्पादन शुरु कर दिया है।पहले कपिल के पिता जगमोहन सिंह रावत ने इसकी शुरुआत की थी लेकिन वे सफल नही हुई।बार्सू में ही कपिल के पिता ने ट्राउट मछली के लिए 15 मीटर लम्बा,1 मीटर चौड़ा और 1 मीटर गहरा रेसवे बनाए।लेकिन तकनीकी जानकारी ना होने के कारण ट्राउट मछली का उत्पादन नही हो सका।कपिल ने कहा कि उन्होने अपनी नौकरी को छोडकर बार्सू गांव आकर ट्राउट मछली का उत्पादन शुरु करने की ठानी।
नौकरी छोड ट्राउट मछली उत्पादन में जुट गए कपिल
उत्तरकाशी के सीमांत ब्लाक भटवाडी के बार्सू गांव में कपिल ने ट्राउट मछली का उत्पादन शुरु कर दिया है।पहले कपिल के पिता जगमोहन सिंह रावत ने इसकी शुरुआत की थी लेकिन वे सफल नही हुई।बार्सू में ही कपिल के पिता ने ट्राउट मछली के लिए 15 मीटर लम्बा,1 मीटर चौड़ा और 1 मीटर गहरा रेसवे बनाए।लेकिन तकनीकी जानकारी ना होने के कारण ट्राउट मछली का उत्पादन नही हो सका।कपिल ने कहा कि उन्होने अपनी नौकरी को छोडकर बार्सू गांव आकर ट्राउट मछली का उत्पादन शुरु करने की ठानी।

कपिल ने कहा कि जब वे नौकरी छोडकर कर आए तो उन्हें ट्राउट मछली पालन में कोई अनुभव नही तो उन्होने इंटरनेट और कई पत्रिकाओं में इसकी खोजबीन शुरु की और अंत में उन्हें ट्राउट मछली उत्पादन के बारे में एक लेख मिला।कपिल ने कहा कि उन्होने पुराने टैंक को दोबारा बनाया जिसमें एक टाप वाटर टैंक था और दूसरा उसके नीचे का वाटर टैंक।इस दोनो पाउण्ड में जब ट्राउट मछलियों के सीड डाले गये तो उनकी मृत्युदर काफी कम हो गई।उसके बाद मस्त्य विभाग की ओर से करीब दो लाख 40 हजार का अनुदान दिया गया जिसमें 3 नई रेसवे वाटर टैंक बनाए।
ट्राउट मछली उत्पादन की उत्तराखंड में है बहुत संभावनाएं

उत्तराखंड में ट्राउट मछली का उत्पादन शुरुआती दौर में है।मस्त्स विभाग चमोली गढवाल के मंडल में ट्राउट मछली की सीड तैयार कर रही है। कपिल के पौंड में अभी 4 हजार ट्राउट मछली के सीड है और अगले 4 महीने में 1 टन मछलियों का उत्पादन हो जाएगा।कपिल का हौंसला बढाने के लिए प्रदेश के जिले से लेकर मुख्य सचिव तक बार्सू गांव पहुचे है।कपिल ने अब ट्राऊड मछली के सीड तैयार करने का प्रोजेक्ट शुरु कर दिया है जिससे गंगोत्री घाटी में अन्य युवा भी इस रोजगार से जुड सके।उत्तराखंड में ट्राउट मछली का उत्पादन देहरादून के चकराता,उत्तरकाशी के भटवाडी,मोरी,नौगांव ब्लाक में किया जा रहा है।रुद्रप्रयाग,टिहरी,चमोली,बागेश्वर और पिथौरागढ में भी किसान ट्राउट मछली के उत्पादन में काश्तकार जुड रहे है।
ट्राउट मछली ह्रदय और कैंसर रोगियों के लिए रामबाण

ट्राउट मछली का अन्तर्राष्ट्रीय कारोबार है।120 वर्ष पहले नार्वे के नेल्सन ने डोडीताल में ट्राउट मछली के अंडे डाले थे और तब से डोडीताल में एंगलिंग के लिए देश विदेश के सैलानी यहां पहुचते है।ट्राउट मछली में केवल एक कांटा होता है इसे निकालने के बाद आप इसे चिकन और मटन की तरह पका सकते है।ट्राउट मछली में ओमेगा थ्री फाइटीएसिड नामक तत्व होता है जो बहुत दुर्लभ पोषक तत्व है।।ट्राउड मछली ह्रदय रोगियों के लिए रामबाण है साथ ही यह मोटापा,हाई ब्लड प्रेश और कोलस्ट्राल को भी नियंत्रित करती है।
उत्तराखंड ट्राऊड फार्मिंग का बन सकता है हब

मत्स्य विभाग उत्तराखंड में कई जिलों में ट्राउट मछली उत्पादन को प्रोत्साहित कर रहा है।विशेषज्ञों की मानें तो ट्राउट मछली के लिए पानी का तापमान 12 से 15 डिग्री सेल्सियस चाहिए और ग्लेशियर से आने वाला पानी ट्राउट मछली के लिए सर्वोत्तम है।ट्राउट मछली एक शाकाहारी मछली है और इसमें केवल एक कांटा होता है।जम्मू कश्मीर और हिमांचल में काश्तकार पिछले लम्बे समय से इसका उत्पादन कर रहे है।उत्तराखंड में कई ग्लेशियर नदियों है जो मुख्यत अपने उदगम में कई छोटी छोटी जलधाराओं से मिलकर आगे बढती है।उत्तरकाशी की गंगोत्री,यमुनोत्री,रुपिन,सूपिन नदियों के कैचमेंट,टिहरी में भिलंगना घाटी रुद्रप्रयाग में केदार,कालीमठ और मदमहेश्वर घाटियों में इसका उत्पादन हो सकता है।जबकि चमोली में अलकनंदा,पिंडर,नन्दाकिनी सहित दर्जनों ग्लेशियर और बुग्यालों से निकलने वाली नदियों में इसका उत्पादन किया जा सकता है।चमोली जिले के अंतिम गांव वाण में पान सिंह ट्राउड की खेती कर रहे है।
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