उत्तराखंड की हसीन वादियों में बसा है एक ऐसा गांव है जो उधार देता है। ये सुन कर आपको भी अजीब लग रहा होगा लेकिन ये हकीक़त है। टिहरी जनपद के सीमान्त विकासखंड भिलंगना में स्थित है एक हैरतंगेज गांव……….जिसकी अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान है.. इस गांव के लोग दूसरी घाटियों को उधार देते जिसमें केदारघाटी प्रमुख है।

प्राचीन काल में चारधाम यात्रा पैदल मार्ग का केन्द्र बिन्दु हुआ करता था घुत्तू
घनसाली से करीब 30 किमी की दूरी पर बसा है खूबसूरत कस्बा घुत्तू……घुत्तू से एक पैदल मार्ग पंवालीकांठा बुग्याल के लिए जाता है और दूसरा मार्ग भिलंगना घाटी में स्थित देश के अंतिम गांव गंगी के लिए निकलता है। प्राचीन समय में जब सडकें नही थी तब गंगोत्री से पैदल सफर कर घुत्तू होते हुए केदारनाथ की यात्रा की जाती थी। उस दौरान घुत्तू पैदल यात्रा का केन्द्र बिन्दु हुआ करता था।घुत्तू से करीब दस किमी कच्ची सड़क से सफर करने के बाद रीह तोक पडता है…..रीह तोक भी गंगी गांव का ही हिस्सा है।यहां से करीब दस किमी सड़क मार्ग से सफर कर गंगी गांव पहुचा जाता है। समुद्र तल से करीब 2700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गंगी को प्रकृति ने अनमोल खजाने से नवाजा है।

खेती और पशुपालन ने बनाया गंगी को लोन विलेज

गंगी गांव खेती और पशुपालन के लिए प्रसिद्व है। पूरी भिलंगना घाटी में गंगी ही ऐसा गांव है जहां सबसे अधिक खेती योग्य जमीन है। गांव के अधिकतर महिलाएं और पुरुष अनपढ़ है। नौनिहालों के लिए गांव में स्कूल तो है लेकिन केवल खानापूर्ति के लिए ही बच्चे स्कूल जाते है।गाँव में साक्षरता की दर यहां काफी कम है। गांव की आबादी इस समय 700 से अधिक है और करीब 140 परिवार इस गांव में रहते है और प्रत्येक घर में आपको बडी संख्या में भेड़,बकरी,गाय और भैंस दिख जाएंगी। गंगी गांव के पूर्वज पहले से कम धनराशि में अपना जीवन यापन करते थे।बचत के कारण उनके पास जो धनराशि जमा होती गई उसे धीरे धीरे 2 प्रतिशत ब्याज पर लोन देना शुरु कर दिया। यानी 1 लाख पर प्रति वर्ष 24 हजार ब्याज और फिर धीरे धीरे ये गांव लोन विलेज के रुप में विकसित होता गया। 1970 से 80 के दशक में डीएम रह चुके पूर्व आईएएस एसएस पांगती कहते है कि गंगी गांव की अपनी अर्थव्यवस्था है। गंगी गांव के लोग ही प्राचीन समय में केदारघाटी,गंगोत्री और तिब्बत के साथ व्यापार करते थे।गंगी गांव के प्रधान रहे नैन सिंह कहते है कि वे भेड़ पालन,आलू,चौलाई और राजमा को बेचने के बाद जो धनराशि बचाते है उसे ही 2 प्रतिशत ब्याज पर लोन दे देते है।
अमूल्य वन संपदा से घिरा है गंगी गांव
गंगी गांव हिमालय की गोद में बसा है।प्राकृतिक सौन्दर्य और चारों तरफ से घने जंगलों से घिरा ये गांव आलू,चौलाई और राजमा की खेती के लिए ही प्रसिद्व नही है बल्कि यहां की आबोहावा और हिमालय की ठंडी हवाएं आपको अलग की दुनिया में होने का अहसास कराती है। गंगी गांव से लगे जंगल में बांज, बुरांश, खर्सू, मोरु, थुनेर, पांगर, राई और मुरेंडा सहित कई प्रजाति के पेड जंगलों में पाए जाते है।जीव जन्तुओं के लिए भी ये इलाका किसी स्वर्ग की भांति है।जहां काला भालू, भूरा भालू, हिमालयन थार, कस्तूरी मृग,मोनाल,भरल,सांभर और बारहसिंघा पाए जाते है। इसके चारों ओर स्थित जैवविविधता को देखते हुए राज्य सरकार इसे गंगी कंजर्वेशन रिजर्व के रुप में संरक्षित करने जा रही है। इसके अलावा कई जड़ी बूटियों का खजाना भी यहाँ छुपा है

अनोखी खेती परम्परा है गंगी गांव में
खेती की जमीन केवल गंगी गांव में ही नही है बल्कि कई तोक में फैली है।गंगी गांव के लोग रीह,नलाण,देवखुरी और ल्वाणी तोक में भी खेती करते है और यहां पर उनकी छानियां मौजूद है।भेडपालन के कारण वे अस्थाई रुप से वर्ष भर इनमें रहते है या यूं कहे कि धुमन्तु जीवन जीते है।
गंगी गांव के निवासी बचन सिंह रावत कहते है कि वे वर्ष भर अपने अन्य तोक में जाते है।

गंगी के ग्रामीण कहते है सदियों से उनके पूर्वजों ने कड़ी मेहनत की और फिर बचत से द्वारा कुछ धनराशि केदार,गंगोत्री और भिलंगना घाटी में ब्याज पर उधार देनी शुरु की।विगत पन्द्रह वर्षो से गंगी गांव के प्रधान नैन सिंह कहते है कि गांव में अन्न और पशुधन से कमाई होती है।
केदारघाटी में सबसे ज्यादा उधार

गंगी गांव के लोगों ने सबसे अधिक धनराशि लोन के रुप में केदारघाटी में दी है।केदारनाथ से लेकर गौरीकुंड, सोनप्रयाग, त्रिजुगीनारायण, सीतापुर और गुप्तकाशी जैसे बाजारों में सैकडों होटल,ढाबे,घोडे़ खच्चर और छोटे बडे व्यवसायी गंगी गांव से उधार लेते आए है। उधार देने की प्रक्रिया भी अजीबोगरीब है।यहां केवल सोमेश्वर भगवान ही गवाह होता है। केदारघाटी ही नही बल्कि गंगोत्री और भिलंगना घाटी में भी इस गांव के लोगों ने उधार दिया है। गंगी के प्रधान नैन सिंह कहते है कि केदारनाथ त्रासदी के बाद अब अधिकतर लोग ब्याज पर ली गई धनराशि को देने से मुकर रहे है।वही प्रेम सिंह नेगी ने कहा कि उनके 6 लाख से अधिक की धनराशि जगह जगह फंसी हुई है। गंगी गांव का केदारघाटी से सदियों पुराना नाता है। गंगी गांव से त्रिजुगीनारायण और केदारनाथ के लिए आज भी पैदल मार्ग है साथ ही गंगी से खतलिंग ग्लेशियर होते हुए गंगोत्री घाटी में जा सकते है।गंगी गांव के ग्रामीण तिब्बत से भी व्यापार करते थे।
ना कोई खाता ना कोई लिखा-पढ़ी सिर्फ भगवान सोमेश्वर की सौगन्ध

गांव के बीचोबींच भगवान सोमेश्वर का प्राचीन मंदिर स्थित है। उधार देने से पहले इसी मंदिर के प्रांगण में एक दिया जलाकर भगवान सोमेश्वर को साक्षी मान उधार दिया जाता है। केदारनाथ त्रासदी से पहले सबकुछ ठीक चल रहा था लेकिन उसके बाद इस गांव की पूरी तस्वीर बदल गई।सालों से पूर्वजों ने केदारघाटी के व्यवसाईयों को उधार दिया था लेकिन जलजले में कई लोगों के होटल,लाज,घोडे खच्चर सब कुछ खत्म हो गये। अब गंगी के साहूकारों का मूलधन और ब्याज सब रुक गया।साहूकार कई बार केदारघाटी में अपने पैसों के लिए गये लेकिन उन्हें खाली हाथ लौटना पडा। 2013 में केदारघाटी में तबाही के बाद गंगी के ग्रामीण भी सीधे प्रभावित हुए। घनसाली के वरिष्ठ पत्रकार डा मुकेश नैथानी कहते कि गंगी के लोग पहले से ही केदारघाटी से जुडे हुए थे। ना सिर्फ व्यापारिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक रिश्तों से गंगी उस घाटी से जुडा हुआ था लेकिन आपदा के बाद वे भी उधार लौटाने के लिए आनाकानी कर रहे है। ऐसे में इनके सामने कोई विकल्प नही है।
anokhe gaun k safar krli apke itni sundar prastuti k dwara humesa k tarah apka bhut bhut dhanyawad ..🙏🙏🙏
Congratulations for your new website.
धन्यवाद
Guasaiji Namaskar!
Apka lekh bahut informative hai.
Aap kya bata sakte hai ki TOK kya hota hai?
Namaskar! Ji, Tok गॉंव के छोटे हिस्से को कहते है जहाँ पर कुछ परिवार रहते है।