
समुद्र तल से केदारनाथ 3500 मीटर और 11500 फ़ीट की ऊंचाई पर बसा हुआ है। उतुंग हिमधवल चोटियों की तलहटी पर बसे केदार को पुराणों में दलदल कहा गया है। दो ग्लेशियर के मुहाने में स्थित ये भूमि सदियों से ऋषि मुनियों को योग, ध्यान और साधना के लिए आकर्षित करती रही है। इस भूमि में चमत्कारिक शक्ति और रहस्य मौजूद है। 2013 की आपदा के बाद भी हिमालय के शिव धाम में श्रद्धालुओं की संख्या कई गुना बढ़ गई है। कपाट खुलने के बाद हर साल यात्रियों की संख्या बढ़ रही है लेकिन जैसे ही दीपावली के बाद श्री केदारनाथ के कपाट बंद हो जाते है तो फिर धाम में सन्नाटा पसर जाता है कुछ समय तक तो वहाँ विभिन्न कार्य कर रहे मजदूर ही रहते है और जब बर्फ और पड़ जाती है तो फिर पूरे धाम में वीरानी छा जाती है। ऐसे समय में भी केदारनाथ धाम में एक हिम योगी साधना में लीन रहता है। ललित रामदास महाराज पिछले 10 सालों केदारनाथ में साधना में लीन रहते है। चाहे बर्फ़बारी हो चाहे बारिश ललित रामदास जी केदारनाथ में साधना और सेवा में लगे है।

2013 की आपदा के बाद केदारनाथ में कर रहे साधना
2008 में सबसे पहले ललित रामदास महाराज केदारनाथ आये तो उनका मन यही रम गया। ललित दास जी ने बताया कि वे सबसे पहले यहाँ आये तो फिर उनके मन में शिव आराधना बस गई। उसके बाद वे 2013 की आपदा के बाद यहाँ 4 महीने तक रहे। वे कहते है कि वे सन्यासी बनने के लिए नही आये थे वे तो साधना करने आये थे। धीरे धीरे उनके केश बढ़ गए और उन्होंने साधु महात्मा के कपड़े पहन लिए। ललित दास जी ने गरुड़चट्टी में भी कुछ समय योग साधना में समय बिताया। केदारनाथ में वे हर दिन मंदिर प्रांगण में भी जाते है।

जब केदारनाथ में शुरू हुई परमात्मा की खोज
ललित दास जी 19 वर्ष की आयु में भगवान की खोज में निकल पड़े। हिमालय में विचरण करते हुए उनकी मुलाकात मानसरोवर में 1008 श्री स्वामी अविराम दास जी से हुई। फिर तो वे उनके साथ कैलाश मानसरोवर से लेकर अमरनाथ तक यात्रा करते रहे और जीवन दर्शन और साधना के रहस्यों को सीखते रहे। 2013 के बाद से ही वे केदारनाथ में प्रभु की साधना में लीन है। वे कहते हैं कि हिमालय तपस्या के लिए सर्वोत्तम स्थान है यहाँ खुद प्रभु का वास है और केदारनाथ का तो खुद भोलेनाथ के जागृत दिव्य स्थान है।

रामानन्द आश्रम की स्थापना कर साधु और श्रद्धालु की सेवा
ललित दास जी अब केदारपुरी में पुराने पैदल मार्ग में रामानन्द आश्रम में निवास करते हैं। इस स्थान में साधु महात्माओं के रहने की व्यवस्था की जाती है। इनके अलावा कोई श्रद्धालु भी आ जाये तो उनके ठहरने और भोजन की व्यवस्था की जाती है। आश्रम में अविराम दास जी और रामदास जी उनके साथ साधना में रहते है। रामदास जी कहते है कि उन्होंने ललित रामदास जी से काफी सीखा है उनका जीवन प्रभु और श्रद्धालुओं की सेवा में बीत रहा है। कपाट बंद होने के बाद 15 से 20 फ़ीट बर्फ में योग साधना करना आसान नही है और वो भी जब तापमान माइनस डिग्री में चले जाएं।

ललित रामदास केदारनाथ धाम में मुख्य मंदिर से मंदाकिनी और सरस्वती नदी के संगम से 200 मीटर की दूरी पर रामानंद आश्रम संचालित करते है। यह आश्रम धाम में कई सामाजिक और पर्यावरणीय कार्यों को भी करता है। प्लास्टिक सफाई अभियान और श्रद्धालुओं के लिए भंडारे की सुविधा भी की जाती है। ललित रामदास जी कहते है कि साधक वही है जो हिंसा ना करे। महज साधु महात्मा की तरह वेशभूषा पहनने से कोई भी साधक नही होता। पहले एक मनुष्य बनकर साधना और तप के मार्ग पर चलना पड़ता है। एक अच्छा इंसान ही अच्छा साधक और सन्यासी होता है।
सर्दियों में हिम साधना में रहते है लीन

केदारनाथ तीन तरफ से ऊंची चोटियाँ से घिरा है। 2700 मीटर से लेकर 6950 मीटर की ऊँचाई में फैले 67 वर्ग किमी का यह पूरा क्षेत्र है। यहाँ सर्दियों में कभी कभी 50 फ़ीट तक बर्फ गिर जाती है। कपाट खुलने पर श्री केदारनाथ की पूजा अर्चना श्रद्धालुओं द्वारा की जाती है और जब 6 महीने बाबा खुद हिम साधना में लीन रहते है तो देवताओ और ऋषि मुनियों द्वारा की जाती है। केदारनाथ मंदिर मंदाकिनी नदी के किनारे बसा हुआ है। इस घाटी का 23 प्रतिशत क्षेत्र बर्फ से हमेशा ढकी रहती है।यह घाटी अंग्रेजी के U आकृति में बसी है। घाटी में विभिन्न प्रकार के फ़्लोरा और फौना मौजूद है।

भरत खूंटा(6578) केदारनाथ(6940), महालय पीक(5970) और हनुमान पीक(5320) प्रमुख चोटिया है। मंदाकिनी नदी चोराबाड़ी ग्लेशियर से निकलती है जिसमें कम्पेनियन ग्लेशियर से सरस्वती नदी मिलती है। इसके अलावा मधु गंगा और दूध गंगा भी इसमें शामिल होती है जो मंदाकिनी नदी के प्रमुख सहायक नदियां है।केदारनाथ क्षेत्र ग्लेशियर के रिसाव और बोल्डर के डिपाजिट से बनी हुई है। मंदिर दोनो ग्लेशियर के आउटवाश प्लैन में स्थित है। सर्दियों के समय हाड़ कंपाने वाली ठंड में भी ललित रामदास जी योग और शिव आराधना में लीन रहते है वो कहते है कि अगर आपका मन पर नियंत्रण है और शरीर एक सूक्ष्म जीव की तरह प्रकृति के रंग में रंग जाता है फिर ठंड , गर्म और बारिश से ज्यादा दिक्कत नही होता है।
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