04 October, 2023

बर्फीले इलाकों में कैसे रहते है ग्रामीण…जानेंगे तो चौंक जाएंगे आप

उत्तराखंड के कई गाँव बर्फ में ढक चुके है। उत्तरकाशी, देहरादून, चमोली, रुदप्रयाग, बागेश्वर, टिहरी और पिथौरागढ़ के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भारी बर्फबारी से जन जीवन अस्त व्यस्त है। पहाड़ के सैकड़ो गाँवों में वाईट अटैक ने सब कुछ जम गया है। ये जानकर आप हैरान हो जाएंगे कि जब कई फीट बर्फ जमी हो और हाड़ काँपने वाली सर्दी हो तो आप खुद सोचिए कि ग्रामीण कैसे जीते होंगे। भले ही आज आवागमन के लिए सड़के हो,बिजली और संचार की व्यवस्था हो लेकिन जब कुदरत का वाईट अटैक शुरु होता है तो सब कुछ ठप हो जाता है। क्या आप जानते है कि बर्फ में पहाडों के लोग कैसे चलते होंगे और कौन से कपडे पहनते होंगे

Snow life in pithoragarh uttarakhand

बर्फीली दुनिया में रह रहे लोगों का जीवन भी बन जाता है ऐसे आसान

बर्फबारी किसे अच्छी नही लगती है लेकिन ये बर्फबारी अगर ज्यादा हो तो कई मुश्किलों को लेकर आती है। बर्फबारी होते हुए देखना तो किसी रोमांच से कम नही है लेकिन बर्फबारी के बाद स्थितियां चुनौतीपूर्ण हो जाती है। उत्तराखंड के सैकडों गांवों में इस बार बर्फबारी ने ग्रामीणों की मुश्किलें बढा दी है। हर जगह 4 से 6 फ़ीट बर्फ जमा है। बर्फबारी के बाद जब पाला पड़ जाता है तो  बर्फ में चलना भी मुश्किल हो जाता है। सालों से उच्च हिमालयी क्षेत्र के ग्रामीण भारी बर्फबारी में भी बिना किसी मुश्किल के रहते है। क्योंकि उनके पारम्पिक परिधान ही ऐसे है।

snow life pithoragarh uttarakhand

पहाडों में भेड और बकरी पालन उनका मुख्य व्यवसाय है और उन्ही के ऊन से बने कपडे वे पहनते थे। देहरादून के चकराता, उत्तरकाशी के मोरी, पुरोला, यमुनोत्री घाटी और गंगोत्री घाटी, टिहरी के घनसाली, रुद्रप्रयाग के उच्च हिमालयी क्षेत्र,केदारघाटी, मदमहेश्वर घाटी चमोली गढवाल के नीति माणा, ऊर्गम, घाट, देवाल जैसे दुर्गम क्षेत्र और पिथौरागढ के मुनस्यारी और धारचूला में इन्ही भेड और बकरियों के ऊन से बने कपडे बनाए जाते है। चकराता से आगे के गांवों में स्थानीय लोग पुरुषो के जो वस्त्र तैयार करते है उन्हे ऊपरी हिस्से को चूडा और नीचे के पायजामा जंगेल कहा जाता है जबकि महिलाएं ठालकी पहनती है। बर्फ में पाला पडने के बाद काफी फिसलन होती है लिहाजा ऊन से ही जुते बनाए जाते है जिन्हें खुरसा कहा जाता है। जिसे फर्जी कहते हैं जिनसे बर्फ में फिसलन नही हो

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उत्तरकाशी जिले के मोरी क्षेत्र के दोणी, भितरी, कलाप, धाटमीर, ओसला गॉंव में पुरुष ऊन के बने कपड़े पहनते हैं जिन्हें कोट और  सुतन कहते हैं जबकि महिलाएं लंबी पोशाक पहनती हैं।ती। लोहरी गांव के दर्शनी राणा कहती है कि जब बर्फ ज्यादा होती है तो वे इन्हीं कपडों को पहनते है जिससे ना तो ठंड लगती है और ही बर्फबारी में ये गीले होते है।

मकान भी ऐसे है जो सर्दियों में आपको रखेंगे गर्म

जब चारों तरफ बर्फ की चादर बिछी हो तो ऐसे में रोजमर्रा की खाने पीने की दिक्कत भी हो जाती है।स्थानीय लोग पहाड़ी दालें, आलू,सब्जियों को सुखा देते है । कई गांवों के लोग मीट के टुकड़ों को भी सूखा कर सर्दियों में खाते है। कुछ सब्जियां भी बर्फ में दबी होती है लेकिन खराब नही होती।चकराता,हर्सिल,यमुनोत्री घाटी में पत्तागोबी सब्जियों को सर्दियों में उगाया जाता है। चमोली, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ, टिहरी, देहरादून के चकराता क्षेत्र में राजमा,आलू काफी उगाया जाता है तो सर्दियों में ये ही मुख्य व्यंजन बनाए जाते है। हर परिवार अपने मकानों में अनाज के लिए कोठार बनाते है और उन्ही में राशन संभाल कर रखते है। कृषि और बागवानी के विशेषज्ञ डा महेन्द्र कुंवर बताते है कि जो बर्फीले इलाके के ग्रामीण पारम्परिक ढंग से रहते है वे सर्दियों की तैयारी पहले ही कर लेते है और इनके कोठार में अनाज सुरक्षित रहता है।

बिजली, संचार, आवागमन और पेयजल ठप लेकिन जिन्दगी फिर भी हसीन

कुदरत का वाइट अटैक भले ही स्थानीय लोगो के लिए मुश्किलें खड़ी करता हो लेकिन उन्हें इन विपरीत परिस्थितियों में जीना आता है। सदियों से जब इन इलाकों में बिजली, संचार और सड़क नही थी तब भी वे जीते थे। भारी बर्फबारी होने के बाद भी इस इलाके के लोगों को ज्यादा मुश्किलें नही आती।बर्फबारी में अपने आपको कैसे सुरक्षित रखना है ये भी इन्हें बखुबी आता है। जानवरों के लिए चारा पत्ती को पहले की जमा कर दिया जाता है लेकिन भेड़ बकरियों के लिए थोडी दिक्कत आती है। उत्तराखंड के सैकड़ों गांवों में सर्दियों के समय कुछ इस तरह रहते है ग्रामीण जिससे भारी बर्फबारी में भी उन्हें ज्यादा दिक्कत नही होती।

कुछ अन्य दृश्य :

Sandeep Gusain

नमस्ते साथियों।

मैं संदीप गुसाईं एक पत्रकार और content creator हूँ।
और पिछले 15 सालों से विभिन्न इलेक्ट्रानिक मीडिया चैनल से जुडे हूँ । पहाड से जुडी संवेदनशील खबरों लोकसंस्कृति, परम्पराएं, रीति रिवाज को बारीकी से कवर किया है। आपदा से जुडी खबरों के साथ ही पहाड में पर्यटन,धार्मिक पर्यटन, कृषि,बागवानी से जुडे विषयों पर लिखते रहता हूँ । यूट्यूब चैनल RURAL TALES और इस blog के माध्यम से गांवों की डाक्यूमेंट्री तैयार कर नए आयाम देने की कोशिश में जुटा हूँ ।

7 responses to “बर्फीले इलाकों में कैसे रहते है ग्रामीण…जानेंगे तो चौंक जाएंगे आप”

  1. Chandni Chauhan says:

    Aapda ko avsar m badlna pahad k logo se behtar kaun jaan skta h itni barf m bhi ye log apna jeevan yapan kr rhe hain… Its incredible

  2. Ranjita says:

    Bahut hi kathin jeevan hai lekin bahut hi khubsurat najare darshaye hain aapne Sandeep ji

  3. साधु राम जिंघाला says:

    आपके प्रयास सहारानीय है संदीप जी मैं आपका पुराना सब्सक्राइबर हूँ. आपसे निवेदन है अपना ये सफ़र जारी रखिये. भगवान आपको आशीष दे.

    • Sandeep Gusain says:

      आपका बहुत बहुत धन्यवाद साधु राम जी ! ऐसे ही हमारा उत्साह बढ़ाते रहिये।

  4. Rakesh says:

    Good work sandeep , keep it up

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