
सितम्बर माह में उत्तरकाशी जिले की भागीरथी घाटी के उपला टकनौर क्षेत्र में सेलकू त्यौहार की धूम रहती है। इस दौरान अलग अलग गांवों में सेलकु मेला मनाया गया । स्थानीय लोग बताते है कि सेलकू का अर्थ कौन अभागा होगा जो आज रात सोएगा माना जाता है और इस पर्व में रात भर लोक नृत्य का आयोजन होता है।
बेटियों के लिए यह त्यौहार है खास

सेलकु पर्व में स्थानीय लोग अपने खेतों की पहली फसल अपने ईस्ट देवता सोमेश्वर को अर्पित की जाती है। इस पर्व में बेटियों को घर बुलाया जाता है। उनके लिए सोमेश्वर देवता उनके रक्षक होते है। इस त्यौहार को दो दिन मनाया जाता है। सोमेश्वर देवता का सेलकु पर्व गंगोत्री घाटी के उपला टकनौर इलाके में मनाया जाता है। यह पर्व गंगा के सबसे शीतकालीन पर्व मुखवा में मनाया जाता है। सबसे पहले मंदिर प्रांगण से देवता की डोली बाहर निकली जाती है। उसके बाद देवता की पूजा अर्चना की जाती है। इसके बाद गाँव के सभी महिलाएं और पुरुष रासों नृत्य किया जाता है।
जब तिब्बत को हराकर लौटी थी इलाके की सेना

इस अनोखे पर्व के पीछे कई लोक मान्यताएं और संदेश छिपे हुए है। कहा जाता है इस दिन इलाके के लोगो ने तिब्बत के आक्रमणकारियों को हराया था और उसी के जश्न में इस त्यौहार मनाया जाता है। स्थानीय लोग इस त्यौहार के पीछे एक इतिहासिक घटना से जोड़ते है। उनका कहना है कि पहले यहाँ भोट प्रदेश यानी तिब्बत का शासन हुआ करता था। जब भी स्थानीय सेना तिब्बत आक्रमणकारियों से युद्ध करती तो हार जाती। ऐसी बीच नेपाल के सेनापति अमर सिंह थापा से भी यही गुहार लगाई गई लेकिन वे भी तिब्बत आक्रमणकारियों को हरा नही पाए। अंत में आठ गाँव के नौजवान युवाओ ने हिम्मत की और तिब्बत जाकर उन्हें हरा दिया। जीत के जश्न के उपलक्ष्य में यह त्यौहार स्थानीय लोग मानते है।
जब विल्सन ने दी सोमेश्वर देवता को चुनौती

इसके अलावा एक अंग्रेज विल्सन का किस्सा भी यहां से जुड़ा है। जिसे यहां के लोग चाव से सुनाते हैं। ग्रामीण बताते है कि विल्सन ने सोमेश्वर देवता को चुनौती दे दी कि जिन लोहे के डांगर में उनका पश्वा चलता है वै पैनी नही है। सोमेश्वर देवता ने चुनौती स्वीकार की और विल्सन की पैनी तलवारों पर एक एक कर सोमेश्वर भगवान ने जब चार कदम चल दिए तो विल्सन ने अपनी हार स्वीकार कर ली।
फसरों की धार पर चलता है देवता

वहीं पहले दिन रात को मशाल जला कर त्यौहार की शुरुवात की जाती है ।अगले दिन सोमवश्वर देवता की पूजा की जाती है।इसकी डोली को पूजा जाता है ।कहा जाता है इस समय ये देवता गावों के किसी व्यक्ति पर अवतरित होता है।पूजा के लिए सभी गांव के लोग अपने अपने घरों से फरसे लेकर आते है ।इसे स्थानीय भाषा में डांगरी कहा जाता है।और इसे पवित्र माना जाता है ।इसे देवता के आगे रखा जाता है। इसके बाद देवता जिस स्थानीय व्यक्ति पर अवतरित होता है वो इन फरसों की धार पर पैदल चलता है।और लोगों को अपना आशीर्वाद देता है । इस समय सोमेश्वर देवता की स्तुति में कफूआ गया जाता है ।इस दौरान सभी युवा देवता का उत्साह बढ़ाने के लिए शोर मचाते है और सीटी बजाते है।देवता मंदिर प्रांगण से करीब 200 मीटर तक ऐसी तरह से फरसों पर चलता है।देवता इस बीच चावल छिड़कर भक्तों को आशीर्वाद देते है।
संपर्क सूत्र- 9410765983
Photo credit- Mayank Arya
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