उत्तराखंड में मांगल और जागर की अनोखी लोकसंस्कृति है। मांगल और जागरों में देवाताओं का स्तुति गान होता है। लुप्त होती इस लोकसंस्कृति को बचाने और प्रचलित करने की दिशा में महिलाएं ही सबसे ज्यादा आगे आ रही है। पद्मश्री बसंती बिष्ट को कौन नही जानता जिन्होंने जागर को एक नई पहचान दी। रुद्रप्रयाग की सारी गांव में एक ऐसी ही लोकगायिका है रामेश्वरी भट्ट जिनकी आवाज में करिश्माई जादू और जब वो मांगल और जागर गाती है तो लगता है कि जैसे खुद देवी गा रही हो।

दादी से मिला मांगल गीतों की शिक्षा

रामेश्वरी देवी बचपन से ही मागंल और लोकगीतों को गाती रही है। मदमहेश्वर घाटी के रांसी गांव में जन्मी रामेश्वरी देवी ने अपनी दादी मैना देवी से मांगल गीत सीखे। अपनी दादी के साथ शादी और धार्मिक आयोजनों में उन्होने मांगल और जागर गीतों गुनगुनाए। मां मौला देवी और पिता बचन सिंह भंडारी के घर जन्मी ये स्वर कोकिला को अपनी आवाज की पहचान हालांकि 2000 के बाद हुई लेकिन शादी के बाद उन्हें उऩके पति ने काफी प्रोत्साहित किया। 1982 में उनकी शादी मोहन सिंह भट्ट के साथ हुई। पति गढवाल राईफल में तैनात थे और रामेश्वरी देवी अपनी गांव सारी में गीतों को गुनगुनाती। पति के फौज से सेवानिवृृत्त होने के बाद उन्होनें जागर और मांगल गीतों को गाना शुरु किया।
बाबा भोलेनाथ के मंदिर बनने के बाद मिलती गई ख्याति
रामेश्वरी देवी कहती है उन्हें सारी गांव में मंदिर बनने के बाद ख्याति मिलती गई। दरअसल उनके पति के सपने में सारी गांव में शिवालय बनाने का सपना आया। मोहन भट्ट ने इसे बाबा तुंगनाथ का आशीर्वाद माना और 1998 में प्राचीन शैली से मंदिर निर्माण शुरु कर दिया। अपनी सारी जमा पुंजी लागने के बाद भी मंदिर निर्माण कार्य पूरा नही हो सका लेकिन उन्होने मंदिर निर्माण जारी रखा। 2003 में शिव नारायण रत्नेश्वर महादेव का निर्माण पूरा हुआ। इस बीच रामेश्वरी देवी मांगल और जागर गीत गाती रही।
आकाशवाणी में बी हाई ग्रेड मिलने के बाद बदली किस्मत
जागर गायिका बसन्ती बिष्ट ने रामेश्वरी देवी से संपर्क किया और उनसे पारम्परिक जागर की जानकारी ली। बसन्ती बिष्ट ने ही उन्हे आकाशवाणी में संपर्क करने का सुझाव दिया। रामेश्वरी देवी ने आकाशवाणी में जब अपना आडीशन दिया तो उन्हें बी हाई ग्रेड दिया गया। इस कार्य में उन्हें भणज गांव आयोजित मांगल गीतों के मेले से काफी पहचान मिली जिसे केदारनाथ विधायक मनोज ने आयोजित किया था। अपनी सुरुीली आवाज से और पुराने जागर गीतों को गाने से धीरे धीरे रामेश्वरी देवी धीरे धीरे पूरी केदारघाटी में प्रसिद्व हो गई। रामेश्वरी देवी ने कहा वे जीवन भर देवताओं के जागरों को गांव गांव में प्रचलित का है। रामेश्वरी देवी कहती है वे शिव पार्वती, पांडव और बगड्वाल जागर इसके साथ ही भगवान तुंगनाथ और मदमेश्वर की पयेरी भी गाती है।
मांगल गीतों को दे रही है नई पहचान
रामेश्वरी देवी तुंगनाथ घाटी में रहती है। वे बचपन से मांगल गीत गाती रही है। अपनी दादी से उन्होने मांगल गीतों को सिखा। रुद्रप्रयगा जिले में मांगल आज भी अपने पुराने स्वरुप में जिंदा है। यहां भगवान शिव पार्वती ही मांगल के मुख्य आधार है। रामेश्वरी देवी ना सिर्फ मांगल को कई मंचों पर गाती है बल्कि ग्रामीण इलाकों में महिला मंगल दल को मांगल सिखा भी रही है। उन्होने नामकरण, मुंडन के लुप्त मांगलों को भी फिर से तैयार किया है।

देवताओं के जागर को गांव गांव तक पहुचाने का है लक्ष्य
रामेश्वरी देवी कहती है कि पहाड में मांगल गीतों की परंपरा काफी प्राचीन है। सारी गांव में देवरियातल मार्ग में वे अपनी पति के साथ मंदिर परिसर में ही रहती है। भोलेनाथ का स्तुतिगान के साथ ही देवाताओं के जागर को आगे बढाने का प्रयत्न कर रही है। हाल ही में शहीद हुए देश के सीडीएस विपिन रावत पर भी उन्होेंने झुमेलो गीत तैयार किया है। पद्मश्री बसन्ती बिष्ट कहती है कि मांगल और जागर गीतों को पुराने स्वरुप में जिंदा रखने की दिशा में रामेश्वरी देवी का योगदान काफी महत्वपूर्ण है।
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