पहाड़ अब बदल रहे है क्योंकि यहाँ के पुराने और पारंपरिक मकानों की जगह अब नए मकान ले रहे है। जिन पहाड़ी घर को बनाने में पहाड़ के पत्थर और लकड़ी का प्रयोग होता था उनकी जगह सीमेंट, सरिया और टाइल्स ने ली ही है। स्थिति इतनी खराब है कि जोन 5 में स्थित उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर और पिथौरागढ़ के अति संवेदनशील इलाकों में भी 5 मंजिला कंक्रीट के जंगल खड़े हो चुके है। 1991 में उत्तरकाशी और 1998 में चमोली भूकंप के बाद भी पहाड़ो में सीमेंट और ईंट का प्रयोग लगातार जारी है।
1991 में उत्तरकाशी भूकंप से हुई थी बड़ी तबाही

1991 में जब उत्तरकाशी में भूकंप आया तो सबसे ज्यादा नुकसान सीमेंट से बने मकानों को हुआ जबकि पहाड़ की पारंपरिक शैली से बने भवनों को ज्यादा नुकसान नही हुआ। पूरे उत्तराखंड में भवनों को बनाने की शैली भले ही अलग अलग हो लेकिन स्थानीय पत्थर, लकड़ी, चूना और मिट्टी का ही प्रयोग पुराने समय में होता था लेकिन अब इन घरों की जगह सीमेंट, सरिया और टाइल्स से बने भवनों ने ले ली है। पहाड़ के पारंपरिक घर भी काफी हद तक भूकंप रोधी हैं। पहाड़ी मकान स्थानीय कारीगर स्थानीय सामग्री जैसे पठाल, लकड़ी, पत्थर और लाल मिट्टी से बनाते थे। छत और पहली मंजिल का पूरा सहारा लकड़ी की कड़ियों और पटेलों पर होता है। मिट्टी और पत्थर की मोटी दीवारें होने से ये न सिर्फ कड़ाके की ठंड से बचाते हैं, बल्कि गर्मियों में भी कुछ हद तक ठंडक बनाए रखते हैं। अनोखे आकार और अनोखी शैली से बने ये घर काफी हद तक भूकंप रहित भी हैं।
कड़े वन कानून और पत्थरों के खनन पर रोक से पारंपरिक भवन बनने हुए बन्द

जानकारों की माने तो लकड़ी की कमी और वन कानूनों के आने के बाद पुराने मकान नही बन पाए। इसके अलावा अब वो कारीगर भी नही है जो लकड़ियों पर नक्काशी कर सके। हालांकि उत्तरकाशी, टिहरी, रुद्रप्रयाग में आज भी ऐसे कारीगर है जो पुश्तैनी मकान बना सकते है।उत्तरकाशी जिले के रवाईं, मोरी और गंगोत्री क्षेत्र में अभी भी लकड़ी और पत्थर के मकान बनाये जा रहे है। यमुनोत्री घाटी के कोटी बनाल गाँव, मोरी ब्लॉक के दोणी गाँव में जाकर आप पहाड़ की अनोखी वास्तुकला का नजारा खुद अपनी आंखों से देख सकते है इसके अलावादेहरादून के चकराता टिहरी के घनसाली चमोली गढ़वाल के जोशीमठ पिथौरागढ़ के धारचूला और मुनस्यारी इलाके में पर्वतीय शैली में बने भवन आज भी पहाड़ की संस्कृति की झलक पेश करते है।
पहाड़ों में आज भी खड़े है 5 मंजिला आलीशान लकड़ी और पत्थर के बने भवन

उत्तरकाशी के मोरी और भटवाड़ी उत्तरकाशी के मोरी इलाके में तो केवल लकड़ियों से ही मकान बनाये जाते है वो भी करीब 5 मंजिला तक जो देवदार की लकड़ियों से बने है। डॉ यशोधर मठपाल बताते है कि गढ़वाल और कुमाँऊ में मकान बनाने की परंपरा थोड़ी अलग है लेकिन सभी जगह स्थानीय समान का प्रयोग होता है। आज भी कई भवन 500 से 1000 साल से भी पुराने है।
पुराने भवन के केवल मजबूत ही नही होते थे बल्कि पहाड़ के पर्यावरण के अनुसार सबसे अच्छे होते है। ये भवन आपको गर्मियों में ठंडा और सर्दियों में गर्मी का अहसास कराते है। इन भवनों में रहने से ही कई बीमारियों आप से दूर रहती है।
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