एक अनदेखी घाटी को देख कर मंत्र मुग्ध हो गए हम दोनों

10 जून 2010 का दिन मेरे लिए खास था। मलारी में सुबह जब हमारी नींद खुली तो उस समय 6 बज रहे थे। पंचायत घर से जैसे ही हम बाहर आये तो देखकर हैरान हो गए कि आखिर ये किस दुनिया में आ गए। उच्च हिमालयी में क्या पहाड़, घाटियां, गाँव ऐसे होते है। नीति घाटी में जोशीमठ से जब सफर शुरू हुआ तो उस समय रात का समय हो गया था। हम अंधेरे में कुछ भी नही देख पाए थे। नीचे धौलीगंगा अब शांत बह रही थी। मलारी गाँव नीति घाटी का सबसे बड़ा गाँव है।
मैंने सुनील डौंढियाल को उठाया। हम दोनों से पहले ही दरबान नैथवाल जी उठ चुके थे। पंचायत घर से हम थोड़ा नीचे आये और एक दुकान में चाय पीने लगे। नैथवाल जी मुझे और सुनील को यहाँ की बारीक जानकारी दे रहे थे। मलारी गाँव के ठीक ऊपर कुंती का भंडार पर्वत है। जिसमें हमेशा बर्फ रहती है। सुनील और मैने अपने अपने कैमरे निकालने शुरू कर दिया।मलारी गाँव से हमने अपने कैमरे से चारों तरफ की सुंदर दृश्यों और गाँव की चहलकदमी की कवरेज शुरू कर दी। सामने बर्फीले पहाड़, एक प्यारा गाँव….गाँव के नीचे सीढ़ीदार खेत, खेत के नीचे कल कल बहती नदी और हाथ में लकड़ी की आग में बनी चाय….पिछले 2 दिन से लगातार बाइक की थकान अब खत्म हो गई। अब नैथवाल जी ने कहा कि आगे बढ़ते है नीति गाँव में नाश्ता करेंगे।
हमने चाय पी। तभी गाँव में एक हलचल होने लगी। फौज का एक ट्रक खड़ा था जिसमे गाँव की महिलाएं अपने पारंपरिक परिधान में बैठ रही थी। उन दिनों नीति घाटी में मद्रास रेजीमेंट तैनात थी। मलारी, नीति बम्पा, कैलाशपुर, फरकिया के ग्रामीण हर साल पार्वती कुंड में पूजा के लिए जाते है। पहले ग्रामीण खुद ही घोड़े खच्चरों के माध्यम से जाते थे लेकिन बाड़ाहोती के नजदीक होने के कारण इस इलाके में सेना के साथ ग्रामीण जाते है। इसका फायदा भी सेना को होता है क्योंकि उन्हें भी ग्रामीणों से इलाके की पूरी जानकारी हो जाती है। हमने मद्रास रेजिमेंट के अधिकारियों से पूछा तो उन्होंने कहा कि ये हमारी लिए भी एक रोमांचक सफर है। पार्वती कुंड की यात्रा की सभी तैयारियां सेना करती है।

हम बाइक स्टार्ट कर आगे हम बढ़ने लगे। नीति घाटी सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। मलारी से एक किमी आगे बढ़ने पर एक सड़क सुमना घाटी और लपथल की तरफ बढ़ती है। इसी इलाके में बाड़ाहोती का ढलुवा मैदान है जो 1962 के युद्ध के बाद विवादित हो गया है। यह भारत का हिस्सा है मगर चीन जानबूझकर ऐसे विवादित करने पर तुला है। हम आगे बढ़े तो मेरे पीछे बैठे सुनील ने फौरन बाइक रुकवा ली। बाइक से उतर कर जब मैंने खुद पीछे मुड़कर देखा तो आश्चर्य हुआ। मलारी गाँव के ऊपर कुंती का भंडार पर सूरज की किरणें पड़ने के बाद ऐसी लग रही था जैसे वहाँ हीरे, जवाहरात, नगीने सजें हो। तभी हमारे आगे कुछ दूरी पर भेड़ बकरियों का एक विशालकाय झुंड दिखाई दिया। ये भेड़ बकरियां पहाड़ो के बुग्यालों में चलती है।भेड़ पालकों को पालसी कहते है। सुनील ने कहा एक स्टोरी कर लेते है।
हमने शॉट्स बनाये। भेड़ पालक की बाइट ली। उनसे बताया कि वे खानाबदोश जीवन जीते है गर्मियों के समय उच्च हिमालयी क्षेत्रों में आ जाते है और फिर सर्दियों के समय निचली घाटियों में चले जाते है। ये भेड़ पालक हमारी उच्च हिमालय की रखवाली भी करते है। घाटियों, चोटियों, बुग्यालों और हिमालय के खतरनाक दर्रो की इन्हें सबसे ज्यादा नॉलेज होती है। अब तो नैथवाल जी ने भी अपना कैमरा निकाल दिया। एक अच्छा लोक गायक अपने हर शॉट्स को कितनी तन्मयता से लेता है मैंने उस दिन देखा। हमें हर मोड़ पर नीति घाटी और भी खूबसूरत लग रही थी। दिमाग में खबरों की जगह बर्फीली हवाओ की सरसराहट दौड़ती। सुनील जब अपने कैमरे से वीडियो शूट कर रहा था तो ऐसा लग रहा था जैसे खो गया होगा। मैने कहा सुनील बस कर आगे भी जाना है। दिमाग में बस नीति गाँव की तस्वीर और तेजी से दौड़ने लगी। आखिर कैसा होगा देश का अंतिम गाँव…..आगे बढ़े तो पागलनाला आया जिसे बरसात के दिनों में पार करना मौत से सामना करने के बराबर है उसके बाद गिरथी गंगा पर पुल पार करने के बाद हमारा सुहाना सफर आगे बढ़ने लगा।
अब हमारी सड़क ने अपनी दिशा बदल दी। सड़क के किनारे देवदार के जंगल शुरू हो गए। कुछ दूर चलने के बाद अचानक देवदार का झुरमुट खत्म हो गया। इस जगह को देखकर आखों पर विश्वास ही नही हुआ। ऐसी जगह फिल्मों में देखी थी। 9 बज गए थे। ये जगह रेवलीबगड़ है जो किसी स्वर्ग जैसी लगती है। इसके बगल में धौलीगंगा शांत बह रही थी। नदी के दोनों किनारों पर देवदार के पेड़ और विशाल पर्वत एहसास करा रहे थे कि हम जन्नत में है। रेवली बगड़ को स्थानीय विधायक और गमशाली गाँव के निवासी केदार सिंह फोनिया ने स्वीटरजलैंड से सुंदर बताया था। यहाँ हमने कैमरे निकाले और इन नजारों को आंखों और कैमरे से कैद करते रहे। कैमरा तो थक गया लेकिन आँखे नही थकी। रेवलीबगड़ की खासियत है कि यहाँ धौलीगंगा नदी सर्पीली आकार में बहती है। दरबान नैथवाल जी हमे बता रहे थे कि यहां कभी पालतू यॉक घूमते हुए मिल जाते थे। धौली गंगा नदी के किनारे इन विशालकाय मैदानों में बड़ी संख्या में यॉक हुआ करते थे। लेकिन अब यहाँ याक नही मिलते है।
इस शांत और मनमोहक जगह पर हम थोड़ा रुकना चाहते थे। सुनील ने कहा कि यहाँ थोड़ी देर आराम करते है। इस स्थान से धौलीगंगा बेहद खूबसूरत नजर आ रही थी। थोड़ा आगे बढ़े तो 3 चोटियों दिखाई दी जो बेहद खूबसूरत दिख रही थी। उन्ही के पास बड़ी संख्या में नेपाली मजदूरों के बच्चे दिखाई दिए। इस इलाके में बॉर्डर रोड ऑर्गेनिशन(BRO) नीति गांव से आगे सड़क निर्माण का कार्य कर रही है। नेपाली मजदूर तो अपने कार्य में लगे है लेकिन छोटे छोटे बच्चें हमे दिख गए। उन बच्चों से हमने ढेर सारी बाते की और खूब फोटो भी खिंचवाए।

इससे आगे बढ़ने पर एक झरने का पानी मिला तो हम सभी ने ब्रश किया। ठंडे पानी से हाथ पैर और सर धोया। आधे घंटा आराम करने के आगे बढ़ने लगे। पहली बार हमें ग्लेशियर दिखाई दिया। यहाँ पर सड़क पूरी तरह बह चुकी थी। बाइक को आगे निकलना मुश्किल लग रहा था। नैथवाल जी ने अपनी एवेंजर बाइक तो आगे निकाल दी लेकिन मुझे डर लगने लगा। 2 महीने पहले ही 40 हजार में बाइक खरीदी थी। ग्लेशियर से पानी निकल रहा था और बहाव भी तेज था। सुनील ने जूते उतारे और पैदल ही पार कर दिया। मैंने भी थोड़ी हिम्मत कर बाइक बढ़ाई और एक ही झटके में बाइक ग्लेशियर पॉइंट से बाहर निकल गई। इसके बाद बम्पा को पार कर हम उस जगह पहुँच गए जहाँ से आगे पास जरूरी था। दिल की धड़कन बढ़ने लगी।
10 बजे हम गमशाली में बने आईटीबीपी के बैरियर पर पहुँच गए। इससे पहले ही हमारी दिल की धड़कल बढ़ चुकी थी। बैरियर पर खड़े आईटीबीपी के जवानों ने हमें रोका और पास दिखाने को कहा। इस बीच दरबान जी ने अपना परिचय दिया और बताया कि वे नीति गाँव के मूल निवासी है और जोशीमठ तहसील में वित्त अधिकारी भी है। नैथवाल जी ने अपना वोटर कार्ड दिखाया लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया कि आप जा सकते लेकिन बाकी नही। इस बीच आईटीबीपी के कमांडेंट को भी बुला लिया गया। हमने उनसे भी कहा कि हमें नीति गाँव जाने दिया जाए। चूंकि हम ईटीवी के रिपोर्टर थे लिहाजा सभी चौकन्ने हो गए।
कमांडेंट ने कहा कि दरबान जी आप चूंकि नीति गाँव के निवासी है इसलिए आप जा सकते है लेकिन आपके साथी नही जाएंगे।सुनील ने कहा कि हम केवल गाँव को शूट करने जा रहे है आप चाहे तो हमारी पूरी रिकॉर्डिंग देख लीजियेगा। तो कमांडेंट साहब ने कहा कि आप परमिट लेकर भी आएंगे और जो रिकॉर्डिंग करेंगे तो हम उसे भी चेक करेंगे। नीति घाटी में सीमाओं की रक्षा की जिम्मेदारी आईटीबीपी के पास रहती है। हालांकि फौज भी यहाँ तैनात है लेकिन लोगों पर निगरानी और सुरक्षा का जिम्मा आईटीबीपी का है।
काफी आग्रह करने के बाद आईटीबीपी के अधिकारी नही माने साफ कहा हमारी नौकरी पर बन आएगी। आप नही समझ रहे है। लद्दाख में एक बार एक टीवी चैनल ने पूरा इलाका शूट कर दिया। तो उस पूरी यूनिट पर कोर्ट मार्शल की कार्यवाही की गई।हम समझ चुके थे कि यहाँ से आगे बढ़ना नामुकिन है और हमारे पास इनरलाइन परमिट भी नही है। इनरलाइन वह क्षेत्र सीमा है जहाँ से आगे जाने की मनाही होती है और यह इलाका देश की अंतर्राष्ट्रीय सीमा से काफी पहले होती है। परमिट को लेकर हम जोशीमठ में कोशिश कर ही चुके थे। सुनील अब भी नाकाम कोशिश कर रहा था। दरबान जी अब सोच में पड़ गए और मैं सोच में पड़ गया कि सपना अधूरा रह गया।
आँखों के सामने अभी भी नीति गाँव घूम रहा था। आईटीबीपी के कमांडेंट ने हमे अपने आफिस ले गए और चाय पिलाई। हमने उनसे पूछा कि हम गमशाली गाँव तो शूट कर सकते है तो फौरन बोले कि हमें कोई दिक्कत नही है लेकिन हमारी पोस्ट को शूट मत करियेगा।
11 बज चुके थे। हम निराश थे लेकिन हताश नही। मेरा और सुनील का जाना मुश्किल था तो हमने नैथवाल जी से कहा कि आप हो आइए लेकिन उन्होंने भी साफ मना कर दिया। हम आईटीबीपी चेक पोस्ट से गाँव आ गए। गमशाली गाँव नीति घाटी का एक खूबसूरत गाँव है। हम वापस गाँव की तरफ बढ़े। नैथवाल जी हमें गाँव में सीधे प्रधान रुक्मणी देवी के घर ले गए। उन्होंने अपना परिचय दिया और हमें ग्रामीणों से मिलाना शुरू किया। गाँव में हमारा आदर सत्कार शुरू हो गया। हम भी अब नीति गाँव ना जाने की मायूसी को छोड़ कर घाटी के समस्याओं, रहन सहन और परंपराओं पर फोकस करना शुरू कर दिया।

नीति घाटी में करीब 2 दर्जन से अधिक गाँव है। जिसमें रैणी, लाता, मलारी, बम्पा, गमशाली और नीति प्रमुख गाँव है लेकिन मलारी से आगे करीब आधा दर्जन गांव ही सर्दियों में निचली घाटियों में आते है। 1962 से पहले घाटी में काफी रौनक थी लेकिन 1962 के बाद तस्वीर बदलने लगी। गमशाली गाँव में हमे या तो छोटे बच्चे दिखाई दिये या फिर बुजुर्ग और महिलाएं। रुकमणी देवी एक बहुत ही समझदार महिला थी। सुनील और मैंने तय किया कि गमशाली गाँव में ही खबरे करेंगे। सबसे पहले हम केदार सिंह फोनिया के घर को देखने गए। लकड़ी के नक्काशी से तैयार फोनिया जी का घर बेहद सुंदर लग रहा था। उन्ही के घर के पास एक बुजुर्ग दंपति भेड़ की ऊन कात रहे थे।
पास में गाँव की बुजुर्ग महिलाएं थी। इस इलाके में भोटिया जनजाति के लोग रहते हैं। वे अपनी भाषा में कुछ कह रहे थे। हमारी समझ में कुछ नही आया तो नैथवाल जी बोल पड़े कह रहे है ये लड़के कितने मेहनती है जो बाइक से पहुँच गए। भेड़ पालन इस घाटी का मुख्य व्यवसाय हुआ करता था। 1962 युद्ध के बाद केंद्र सरकार ने जनजाति समुदाय को 2 प्रतिशत आरक्षण मुहैया करा दिया। जिसके बाद तेजी से इस घाटी के लोग आईपीएस, आईएएस, डॉक्टर , इंजीनियर और अन्य नौकरियों में निकलने लगे। पहाड़ की इन घाटियों से पलायन और तेज हुआ और अब यहाँ केवल बुजुर्ग लोग ही ज्यादा दिखाई देते है। विषम भौगोलिक परिस्थितियों में भी देश की द्वितीय पंक्ति में खड़े लोगों ने अपने गांवों को वीरान नही होने दिया।
दोपहर हो चुकी थी। मैंने और सुनील ने लगभग तय कर लिया था कि खबरों को कैसे करना है। पहले खबरों को लेकर चर्चा हुई। इस बीच हमने ग्रामीण लोगों से भारत तिब्बत व्यापार से जुडी पुरानी जानकारियां ली। बुजुर्ग लोगों ने बताया कि पहले वे नीति दर्रे से तिब्बत के साथ व्यापार करते थे। नीति घाटी से दापा मंडी काफी नजदीक है। 1962 युद्ध के बाद सब कुछ ठहर गया। गमशाली गाँव के लोगों ने बताया कि अब तो आईटीबीपी उन्हें भी नीति गाँव नही जाने देती है। हमारी बेटियों की नीति गाँव में शादी हुई है। मेला त्यौहार और दुख सुख में अपने नाते रिश्तेदारों के पास जाना चाहते है लेकिन आईटीबीपी नही जाने देती।
कहती है जोशीमठ से पास बनाकर लाओ। अब आप ही बताइये कि हम 70 किमी जाकर 3 दिनों में पास बनाकर लाएंगे और तब नीति गाँव जाएंगे। दरअसल 1962 युद्ध से पहले ऐसा नही था। स्थानीय लोगों ने हमे जानकारी दी कि भारत और तिब्बत को जोड़ने के इस घाटी में 2 प्रमुख दर्रे है। इसमे एक दर्रा नीति और दूसरा बाड़ाहोती है। इन दोनों दर्रो से उस समय व्यापार हुआ करता था। मलारी से एक सडक सुमना घाटी से होते हुए रिमझिम चौकी तक जाती है और वहां से आगे बहाडोती क्षेत्र है जो मलारी से 40 किमी की दूरी पर स्थित है।
दूसरी सड़क मलारी से गमशाली होते हुए नीति गांव तक जाती है और नीति गांव से नीति पास करीब 45 किमी की दूरी पर स्थित है। इस घाटी में ये दोनों दर्रे काफी संवेनदशील है। लेकिन एक दर्रा और है जो काफी मुश्किल है लेकिन उस पर भी आईटीबीपी की नजर रहती है। नीति गाँव से 3 किमी पहले टिमरसैंण को भारत सरकार ने इनर लाइन बना दिया है लेकिन आईटीबीपी ने अपनी सुविधा के लिए गमशाली में ही चेक पोस्ट बनाकर इनरलाइन बना दी। गमशाली गाँव के बुजुर्ग लोगों में इस बात को लेकर काफी आक्रोश था। वे कहते हम कर भी क्या सकते है। अधिकारी हमारी बात सुनते ही नही। कहते है पास लेकर आओ। ये भले भी देश की सुरक्षा में लगे हो लेकिन हम भी तो देश की रक्षा कर रहे है।

श्याम होने लगी थी करीब 4 बजे आसमान से बादल बरसने लगे। बारिश से ठंड और बढ़ गई। नैथवाल जी ने अपने भाई से स्थानीय पेय पदार्थ जान मँगवा ली। इस घाटी में स्थानीय लोग जब धार्मिक त्यौहार आयोजित करते है तो छंग और जान का प्रयोग करते है। मैं सुनील और प्रदीप ने जान पी और तो नैथावल जी ने हारमोनियम मंगवाया और एक मोमबत्ती की रोशनी में रंग जमना शुरू हो गया। बाहर बारिश और तेज हो गई और अंदर लोकगीतों का सिलसिला भी तेज हो गया। नैथवाल जी ने कई गीत गाये जिसमे “कख रै गे नीति और कख रै गे माणा एक श्याम सिंह पटवारी कख कख जाणा” और “धी या इंति जनम भूमि, लबु पयार सोंस्पाइन्ही रोंपा रोंपा हे रोंपा” जैसे कई गानों से समां बांध दिया। दरबान जी ने ना केवल गाने गाए बल्कि उनका मतलब भी सुनाया।
नींद कब आ गई हमें मालूम ही नही चला। अगले दिन भी हमने घाटी लोकसंस्कृति, परंपरा, जैव विविधता, पर्यटन और सुरक्षा को लेकर खबरें की और देहरादून आकर करीब 15 दिनों तक नीति घाटी की सीरीज चलाई। ये कवरेज मेरे जीवन के स्वर्णिन दौर का हिस्सा बन गई और इसके बाद नीति गाँव देश के लोगो के लिए खोल दिया गया बस आपको गमशाली में अपना परिचय दिखाना है जबकि विदेशी पर्यटकों के लिए इनरलाइन परमिट जरूरी है।
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