2010 के दिनों की बात थी। जून में चिलचिललाती गर्मी से मैं परेशान था। फ़ोन पर सुनील से बात की कि चले लंबी कवरेज पर… सुनील मेरा क्लासमेट था जब हम श्रीनगर में मास कॉम करते थे। पढ़ने का बहुत शौक था उसे। हिस्ट्री से एमए कर चुका था और सिविल सर्विसेस की तैयारी में भी जुटा रहता। सुनील को मैंने पूछा कि क्या नीति घाटी चले जहाँ आज तक कोई मीडिया चैनल नही गया। मैं देहरादून में ईटीवी में स्ट्रिंगर था और सुनील रुद्रप्रयाग में…..उसने हामी भरी और मैंने अपने बॉस गोविंद कपटियाल जी से बात की लेकिन बात करने से पहले ही मेरे दिमाग में एक सवाल घूमने लगा कि देहरादून से 400 किमी दूर नीति घाटी जाने की अनुमति गोविंद जी देंगे कैसे? क्योंकि वहाँ पर पहले से ही प्रभात पुरोहित काम कर रहा है। एक तरह से ये मेरे लिए स्पेशल शूट था। खैर मैंने थोड़ी रिसर्च शुरू की और गोविंद जी से इसकी अनुमति लेने के लिए उनके कमरे में चला गया।

उस साल गर्मी अपने चरम पर थी देहरादून में जून के महीने में तापमान 42 डिग्री तक पहुँच गया था। मैंने उनसे अनुमति मांगी तो फौरन उन्होंने मना कर दिया। उसके बाद बात आई और गई। मैंने हिम्म्मत नही हारी। उन दिनों साधना न्यूज़ बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा था और कई खबरे ऐसी कर रहा था जिसकी किसी को उम्मीद नही थी। मैंने बॉस को इसी आधार पर विश्वास में ले लिया और कहा सर उस घाटी की आज तक रिपोर्टिंग नही हुई है। वहाँ की परंपराएं रीति रिवाज, खूबसूरती और कई समस्याओं पर हम स्टोरी कर सकते है। मेरे तर्कों को वो मान गए।
अब बारी सुनील के लिए थी। मैंने उसे भी चलने के लिए बॉस से पूछा तो फौरन मना कर दिया। बोले वो अपना जिला नही छोड़ सकता क्योंकि चमोली में प्रभात भी छुट्टी पर था। मैंने फिर उन्हें कविंसड करने की कोशिश की लेकिन वो नही माने। श्याम को हमने सुधीर भट्ट जी से बात की और उनसे कहा कि मैं और सुनील नीति घाटी जाना चाहते है लेकिन गोविंद जी मना कर रहे है।आखिर हम दोनों जाए कैसे। सुधीर भाई पहले चमोली जिले में काम कर चुके थे। चमोली, रुद्रप्रयाग और पौड़ी इन तीनो जिलों पर उनकी पकड़ ठीक थी। गोविंद जी की चिंता इस लिए ज्यादा थी क्योंकि प्रदेश में चार धाम यात्रा अपने चरम पर थी। खैर हमने येन केन करके गोविंद जी को भी पटा लिया और उसके अगले दिन यानी 8 जून 2010 को मैं अपने जीवन की सबसे लंबी बाइक यात्रा पर निकलने की तैयारी करने लग गया।
8 जून को सुबह मैं जल्दी उठा और अपनी बाइक जो मैंने उसी साल अप्रैल में खरीदी थी उसमें 700 का तेल भरवा दिया। कैमरा, माइक और जरूरी कपड़े रख कर मैं करीब 11 बजे देहरादून से रुद्रप्रयाग के लिए निकल पड़ा। मैंने सुनील को फोन किया। ऋषिकेश के आगे बद्रीनाथ नेशनल हाइवे देश के सबसे खूबसूरत हाइवे में से एक है क्योकि ये गंगा नदी के किनारे किनारे बद्रीनाथ तक जाता है। उस दिन भी काफी उमस थी बाइक में सफर करना वो भी चारधाम यात्रा के दौरान सबसे ज्यादा मुश्किल होती है। इस दौरान गाड़ियों का रेला चलता और और आप कई बार मिट्टी से नहा लेते है।
देवप्रयाग में ही मुझे 5 बज गए। यहाँ से अब अलकनंदा नदी के किनारे सफर आगे बढ़ता है। अब मौसम बदलने लग गया थोड़ी देर में बारिश शुरू हो गई। मैने अपना बैग बरसाती से ढक लिया और धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा। हर एक घंटे में सुनील का फोन आ रहा था। सुनील को मेरी चिंता भी होने क्योकि लागातर बारिश हो रही थी। करीब 8 बजे जब मैं रुद्रप्रयाग पहुँचा तो तब तक पूरा भीग चुका था और गर्मी में भी मुझे ठंड का अहसास होने लगा। सुनील ने मेरे लिए बढ़िया मटन तैयार किया हुआ था।
रूद्रप्रयाग पहुँच कर मैं अपने एक और साथी से मिला जो हमारी इस यात्रा के सबसे खास सख्सियत थे। दरबान नैथवाल एक बेहतरीन लोक गायक, वित्त विभाग में नौकरी करते थे और नीति गाँव के मूल निवासी थे। दरबान नैथवाल जी से हमने पूरा फीड बैक ले लिया था। कहाँ कैसे क्या क्या खबरें करनी है। जोशीमठ में पास कैसे बनाना है इसकी भी जानकारी ले ली थी। थोड़ी देर और बातचीत की और तय किया गया कि सुनील, मैं और दरबान नैथवाल तीनों रूद्रप्रयाग से करीब 11 बजे निकलेंगे। क्योंकि उन्हें डीएम से अपने लिए छुट्टी भी मंजूर करवानी थी। उत्तराखंड में दरबान नैथवाल जैसे लोकगायक बहुत कम है जो अपने हर गाने के लिए अच्छी लोकेशन और बेहतरीन शूटिंग के लिए हिमालय में घूमते रहते है। नीति घाटी का ये लोकल लोकगायक वहाँ काफी पॉपुलर था और हमारा पथप्रदर्शक भी।
9 जून को 11 बजे मैं, सुनील और दरबान जी अपने एवेंजर बाइक पर निकल पड़े। हमे ये तो मालूम था कि सफर रोमांचक है लेकिन हम मौत के करीब से होकर बच जाएंगे ये नही सोचा था। करीब ढाई बजे हम नंदप्रयाग पहुँच गए यहाँ सबने मच्छी भात खाया। सुनील और मेरे मन में नीति घाटी की एक काल्पनिक तस्वीर घूम रही थी। जब आप किसी भी नये डेस्टिनेशन पर जाते है या बिल्कुल नई जगह पर जाते है तो आपके मन में एक काल्पनिक तस्वीर उभर जाती है क्योंकि आप उस जगह के बारे में जानने के लिए काफी उत्सुक रहते है और बार बार सोचने रहते है। हम दोनों अपने खयालो में खोए थे तभी नैथवाल जी की आवाज से खामोशी टूट गई। तुम दोनों जल्दी करो अभी काफी लंबा जाना है अगर एसडीएम आफिस से चला गया तो फिर पास कैसे बनेगा।
बरीदनाथ माना हाइवे उत्तराखंड का सबसे व्यस्त हाइवे रहता है। चारधाम यात्रा के समय तो इस हाइवे पर कई जगह जाम की स्थिति रहती थी। हमारे पास बाइक थी इसलिए हम आड़ी तिरछी करके निकल जा रहे थे। चमोली से आगे बीआरओ कई जगह पर रोड कटिंग का काम कर रहा था। पातालगंगा, टंगड़ी, गरुड़ गंगा, को पार करते हुए हम साढ़े 5 बजे जोशीमठ पहुँच गए।जोशीमठ समुद्र तल से करीब 6000 फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित है। बद्रीनाथ, फूलोंकीघाटी, हेमकुण्ड साहिब, सतोपंथ, नीति घाटी, नंदा देवी नेशनल पार्क और लार्ड कर्जन ट्रेक के अलावा जोशीमठ उच्च हिमालय के करीब 2 दर्जन रोमांचक ट्रेक का बेस कैम्प है।
आईएएस वी षणमुगम एक कड़क और ईमानदार छवि के अधिकारी है। दक्षिण भारत से है….और हिंदी भी टूटी फूटी बोल लेते है। हम तीनों उनके पास इनर लाइन परमिट के लिए गए तो अपने स्वभाव के अनुरूप उन्होंने नियम कायदे कानून सब छाड़ दिया। पहले एक एप्लीकेशन लिखो, फिर उसकी हम एलआईयू जाँच कराएंगे उसके बाद तुम्हे इनर लाइन परमिट मिलेगा। मैंने पूछा इसमें कितने दिन लग सकते है तो बोले 4 से 7 दिन का समय लग सकता है। सुनील ने उनसे कहा कि सर तब तक तो हम वापस चले जाएंगे। हमारे सभी तर्क को उन्होंने नही सुना। आखिर में हम एक आवेदन देकर वहाँ से बाहर आये।
नैथवाल जी जा सकते थे क्योंकि वे नीति गॉंव के रहने वाले थे। इनर लाइन परमिट उत्तराखंड के तिब्बत सीमा से लगे उत्तरकाशी की नीलांग घाटी, चमोली की नीति घाटी, पिथौरागढ़ की मिलम, व्यास, चौदास और दारमा घाटी के लिए बनता है और ये सभी इलाको को भारत की दृष्टि में संवेदनशील मना गया गया है। इनर लाइन परमिट लेकर ही आप इन इलाकों में जा सकते है। हमें परमिट नही मिला तो हम निराश हो गए और बनने में भी 3 से 7 दिन लगने थे। सुनील ने कहा कि संदीप अब क्या करे हम तो बॉस से बड़ी बड़ी डींगें हांक कर आये है। इस बीच नैथावल जी ने कहा कि चलो देखते है कहाँ तक जा सकते है। पहले चलो तो सही आईटीबीपी से आग्रह कर लेंगे।
वक्त 5 बजकर 50 मिनट हो चुका था। सबसे मिलकर फैसला किया कि आगे बढ़ना है रूकना नही है। अब हमारी टीम में एक और साथी जुड़ गया। जोशीमठ शहर से प्रदीप सती को भी हमने चलने के लिए कहा तो वो भी फौरन तैयार हो गया। प्रदीप भी उस घाटी को अच्छी तरह जानता था। जोशीमठ से हम बड़ागाँव में रुके। जोशीमठ से एक सड़क बद्रीनाथधाम और माणागाँव के लिए चली जाती है जबकि दूसरी जोशीमठ-नीति हाइवे शुरू हो जाता है। इस सड़क को भी बीआरओ बना रही है। बड़ागांव पार करने के बाद अब अंधेरा होने लगा। हम उच्च हिमालय में थे। ठंडी बर्फीली हवाई मदहोश कर रही थी। नीचे धौलीगंगा का रौद्र रूप डरा रहा था। 7 बजे हम तपोवन पहुँचे जो अपने हॉट स्प्रिंग के लिए प्रसिद्ध है। नैथावल जी ने कहा कि यहाँ पर आते हुए रुकेंगे। थकान और बढ़ गई थी।

मेरे साथ सुनील बैठा हुआ था। दोनों भाई गप्पे लड़ा रहे थे। सुनील को बाइक चलानी नही आती थी इसलिए मुझपर ही सारा दारोमदार था। जोशीमठ से नीति गाँव करीब 87 किमी है और हमें मलारी पहुँचना था जो 60 किमी दूर था। सकड़ पूरी तरह उबड़ खाबड़ थी। बाइक की लाइट केवल सड़क पर जल रही थी। पहाड़ के ऊपर और नीचे अंधेरा छाया हुआ था। सुनील से मैने कहा कि डर लग रहा है तो बोला हाँ भाई…दरबान नैथवाल हमसे आगे चल रहे थे। उनकी बाइक की पकड़ सड़क पर मजबूत थी। तपोवन से आगे रैणी गाँव पड़ता है। हम इस घाटी में पहली बार जा रहे थे।
सड़क पर कई जगह छोटे छोटे पत्थर थे जिससे बाइक फिसलने का खतरा ज्यादा रहता है। अचानक एक स्थान पर नैथावल जी ने गाड़ी रोक दी। बोले ये जगह संदीप बहुत खतरनाक है। यहाँ कई दुर्घटनाएं हुई है। बीआरओ जब सड़क बना रहा था तो बार बार यहाँ चट्टान टूट जाती या फिर भूस्खलन हो जाता। जब काफी मुश्किलों के बाद भी सड़क नही बन रही थी तब सेना के अधिकारी ने यहाँ पर माँ काली की स्थापना की। उसके बाद सकड़ भी बन गई लेकिन कोई भी बिना इस स्थान पर माथा टेके या हाथ जोड़े आगे नही बढ़ता अनहोनी का खतरा बना रहता है। सुनील और मैं दोनों ने यही की मिट्टी अपने माथे पर लगाई और गाड़ी की जलती लाइट से एक छोटे मंदिर पर माथा भी टेक दिया।
गाड़ी 20 किमी की रफ्तार से चल रही थी लिहाजा हमे 9 बज गए। हमने नैथवाल जी से पूछा मलारी अभी कितना दूर है तो बोले बस आ गया। तभी चलती बाइक फिसल गई और थोड़ी आगे गिर गई। सकड़ पर बजरी गिरी थी। मेरी और सुनील की सांसें अटक गई। एक पल को लगा गाड़ी गहरी खाई में गिर गई। हम दोनों एक साथ चिल्लाए। दरबान नैथावल भी फौरन लौट आए।देखा तो मैं अलग सुनील अलग और बाइक अलग गिरी है। गनीमत रही कि कोई खास चोट नही आई और बाइक भी ठीक थी।लेकिन 5 मिनट में ही पूरा शरीर डर से काँपने लगा। 10 मिनट हम वही रुक गए। उसके बाद बाइक स्टार्ट की और धीरे धीरे चलाने लगा। पीछे से सुनील कहता भाई धीरे चलाओ। काली माता की मूर्ति के पास तेज हवाएं चल रही थी। धौलीगंगा का शोर सुनकर अन्दाजा लग रहा था कि नीचे सैकडों फ़ीट गहरी खाई है। अगर नीचे गिर गए होते तो शायद कभी मालूम नही चलता किसी को कि कहाँ गए।
साढ़े 9 बजे हम मलारी पहुँचे। इस सीमांत घाटी के लोग जल्दी सो जाते है। गाँव में सन्नाटा पसरा था। नैथावल जी ने प्रधान को उठाकर पंचायत भवन के कमरे खुलवाए। दो दिन लागातर मैंने 200 किमी बाइक चलाई। पूरा शरीर थक के चूर हो चुका था।उस समय यहाँ बिजली भी नही थी। कैंडल जलाई गई तो कमरों में रोशनी हुई। ठंड से हम ठिठुर रहे थे। रात को खाने का प्रबंध किया गया और करीब साढ़े 10 बजे रोटी और दाल बनकर तैयार हो गई। खाना कहाँ से आया और किसने बनाया ये सब पूछे बिना हमने खाना खाया और फिर सो गए। अगली सुबह का इंतजार करने लगे।
आगे इस रोमांचक यात्रा में गमशाली, मलारी, बम्पा की रोचक घटनाएं आपके साथ शेयर की जाएंगी। इस घाटी को प्रकृति ने दिल खोलकर अपना सौंदर्य बिखेर है। जुम्मा गाँव से द्रोणागिरिगांव के लिए ट्रैक रुट जाता है। मान्यता है कि इसी गाँव से भगवान हनुमान संजीवनी बूटी लेकर आये थे जब लक्ष्मण के मूर्छित होने पर वो द्रोणागिरी पहाड़ का एक हिस्सा लेकर आये थे।सुरईथोटा गांव से नदा देवी नेशनल पार्क आऊटर सर्किट ट्रैक शुरू होता है। भविष्य बद्री धाम, लाता में स्थित नंदादेवी मंदिर भी इसी घाटी में स्थित है। कैलाश मानसरोवर की यात्रा नीति घाटी से सबसे आसान और नजदीक है यहाँ से दिल्ली से मात्र 658 किमी की दूरी पर कैलाश मानसरोवर झील स्थित है और ऐसी घाटी में अमरनाथ की तरह बाबा बर्फानी। नीति घाटी का स्वर्ग रेवलीबगढ, मलारी के पास कुंती भंडार, रति कुंड और कई बुग्लाल यहाँ की रौनक बढ़ाते है।
To be continued……
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