29 September, 2023

नंदी कुंड – जहाँ आज भी मौजूद है पांडवो के हथियार | Nandi kund Uttarakhand

Nandi Kund Uttarakhand
Nandi Kund Uttarakhand

उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है यहां कण कण में देवताओं का वास है।चार धाम के अलावा पंच केदार,पंचबद्री,पंच प्रयाग ही नही बल्कि सैकडों देवस्थान है जहां पहुचने के लिए मीलों लम्बा सफर तय करना पडता है।सीमान्त जिले चमोली गढवाल में एक ऐसी ही घाटी है जहां मान्यता है देवासुर संग्राम के समय के हथियार आज भी मौजूद है।चमोली गढवाल के उर्गम घाटी क्षेत्र के लोग हर साल यहां पूजा अर्चना के लिए जाते है।चमोली जिले में स्थित नंदी कुंड एक ऐसी है रहस्यमय और अनोखी यात्रा है जो कई पौराणिक कथाओं से भरी है और इस सफर में स्वर्ग की अनुभूति होती है।किवदंती है कि नंदीकुंड में ही मां काली ने रक्तबीज का वध किया था और आज भी वो हथियार हिमालय के इस दुर्गम कुंड के पास रखे हुए है।

पहला पड़ाव बंशीनारायण मंदिर,जहां केवल रक्षा बंधन को होती है पूजा

बंशीनारायण मंदिर समुद्र तल से करीब 12 हजार फीट की ऊचाई पर स्थित है।ऊर्मग घाटी के देवग्राम से वंशीनारायण मंदिर 12 किमी की दूरी पर स्थित है। जहां साल में मात्र एक दिन रक्षाबंधन को पूजा होती है।मंदिर 6 फीट से भी लम्बी विशालकाय शिलाओं से बना है।मान्यता है कि पांडवों यही से होकर बद्रीनाथ के लिए आगे बढे।मंदिर के पास नारायण की फूलों की बगिया है जहां स्थानीय लोग फूल नही तोडते साथ ही स्थानीय भेड बकरियां और जानवर भी इस स्थान पर नही जाते।स्थानीय लोग रक्षा बंधन के दिन यहां पूजा अर्चना के लिए बडी संख्या में पहुचते है।

vanshi narayan mandir
Vanshi Narayan Mandir

सबसे बड़ा आश्चर्य कि कुंवारी कन्याएं और विवाहित महिलाएं पहले वंशीनारायण को राखी बांधती है और फिर अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है।पौराणिक मान्यताएं है कि बामन अवतार धारण कर भगवान विष्णु ने दानवीर राजा बलि का अभिमान चूर कर उसे पाताल लोक भेजा।बलि ने भगवान से अपनी सुरक्षा का अनुरोध किया तो भगवान विष्णु स्वयं पाताल लोक में बलि के द्वारपाल हो गये।ऐसे में पति की मुक्ति के लिए स्वयं लक्ष्मी देवी पाताल लोक पहुची और राजा बलि को राखी बांधकर भगवान को मुक्त कराया।लोकमान्यताएं है कि तभी से भगवान विष्णु इस स्थान पर प्रकृत हुए। 

मन को हरने वाला है दूसरा पड़ाव मनपाई बुग्याल

नंदी कुंड यात्रा के पडाव में वंशीनारायण के बाद मनपाई बुग्याल पडता है।यकीन मनाए वंशीनारायण के बाद तो आप जैसे स्वर्ग में चल रहे हो।हरी चादर ओढे रंग बिरंगे फूलों की खूशबू मदहोद कर देती है।बंशीनारायण के बाद करीब 4 किमी का सफर बेहद आरामदायक है जो करीब 13 हजार फीट की ऊंचाई तक पहुचता है।अब ढलान का करीब 2 किमी सफर तक करने के बाद गोदला खर्क स्थान स्थान पड़ता है गोदरा खर्क से मनपाई बुग्याल की पहली झलक दिखती है जो मनमोहक.अतुलनीय सौन्दर्य.से परिपूर्ण है।

Manpai Bughyal
Manpai Bughyal

मनपाई बुग्याल से आपको अहसास होगा कि  सूरज की किरणें नंदा देवी और त्रिशूल पर्वत को अपनी लालिमा से जगमगा रही है।मनपाई बुग्यालन उत्तराखंड के सुन्दरम बुग्लायों में से एक है।ये बुग्याल इतना खूबसूरत है कि बस इसे देखने का ही मन करता है।बुग्लाय काफी बडा है यहां जगह जगह पर जलधाराएं और सुन्दर बनाती है।करीब तीन से चार किलोमीटर मेें फैले मनपाई बुग्याल में हाथों से फूलों को तोडने की परम्परा नही है।बल्कि यहां फूुलों को दातों से तोडते है।भेड बकरियों की भी यह पसन्दीदा बुग्याल है।स्थानीय निवासी लक्ष्मण सिंह नेगी कहते है इस बुग्याल को संरक्षित करने के लिए कई प्रयास किए गये है।

तीसरा पड़ाव रहस्यमय वैतरणी 

मनपाई बुग्याल से करीब ढाई किमी की चढाई के बाद घुडसांगरी टाप पर जहां से पूरी घाटी के दोनो ओर का अदभुत नजारा दिखाई देता है।घुडसांगरी से सामने पंच केदार में से एक चतुर्थ केदार रुद्रनाथ दिखाई पडता है।रुद्रनाथ के पास ही पनार बुग्याल है जो यहां से काफी खूबसूरत दिखाई देता है।घुडसांगरी समुद्रतल से करीब 13000 फीट की ऊचाईं पर स्थित है।यहां से हिमालय नयनाभिराम चोटियां त्रिशूल,नंदादेवी,द्रोणागिरी,हरदेवल और ब्रम्हल साफ दिखाई देती है।

Barma Bugyal
Barma Bugyal

इस स्थान पर मां नंदा का छोटा मंदिर भी स्थित है जहां स्थानीय लोग नंदाजात के दौरान पूजा अर्चना करते है।मान्यता है कि इसी स्थान पर मां भगवती रक्तबीज का वध करने के बाद रुखी थी जिसके बाद इसे घुडसांगरी नाम पडा।यहां पहुच कर पूरा नजारा ही बदल गया।प्रसिद्व पंचकेदार ट्रैक भी इसी से होकर गुजरता है।ऊंचाई बढने के साथ साथ फूलों की प्रजातियां भी बदलती जा रही थी।मनपाई बुग्याल के बाद बर्मा बुग्याल पडता है और उसके बाद इस यात्रा का तीसरा पड़ाव वैतरणी।वैतरणी पहुचक ऐसा लगता है मानों किसी अदभुत..अविस्मरणीय और अलौकिक दुनिया में प्रवेश कर लिया है।एक ऐसा दिव्य स्थान जिसके चारों तरफ ब्रम्हकमल की खुशबू फैली हुई है।किवदंती है कि यहां पर भगवान ब्रम्हा ने तपस्या की थी और वैतरणी का जल गोपेश्वर में स्थित वैतरणी से यहां पहुचता है।

वैतरणी समुद्र तल से करीब 14500 फीट की ऊचाई पर स्थित है। वैतरणी एक कुंड के रुप में पूजनीय है जिसके एक छोर पर स्थानीय लोगों ने पत्थरों से मंदिर निर्मित किया है।स्थानीय लोग इस स्थान को काफी पवित्र मानते है।स्थानीय निवासी राजेन्द्र रावत ने कहा कि इस स्थान पर बेहत शालीनता से रहना होता है।जूठे बर्तन इस कुंड में नही धोए जाते।वैतरणी के आस पर छोटे बडे पत्थर बडी संख्या में है।पर्वतारोही कुलदीप बंगारी बताते है कि समुद्र तल से 14 हजार फीट से अधिक ऊचाई पर बर्फीली हवाओं से सर्द और पेट में दर्द शुरु हो जाता है।वैतरणी में केवल ब्रम्हकमल ही नही बल्कि ,नीलकमल और सूर्यकमल की तेज महक आती है।

अंतिम और चौथा पड़ाव-बस मंत्रमुग्ध होकर निहारते रहे…नंदीकुंड का अद्वितीय सौन्दर्य

वैतरणी में ब्रम्हकमल बडी संख्या में खिले हुए थे।ब्रम्हकलम एक दैवीय पुष्प है जो समुद्र तल से करीब 13000 मीटर से अधिक ऊचाई पर पाया जाता है।पौराणिक मान्यता कि ब्रम्हकमल को नारायण भगवान ने भोलेशंकर की अराधना के लिए पृथ्वी पर भेजा।इसकी खूशबू इतनी तेज होती है कि आप बेहोश भी हो सकते है।वैतरणी से ग्लेशियर के मोरेन यानी पत्थरों पर चलकर आगे बढना होता है।उच्च हिमालयी क्षेत्रों में चलते हुए एक नई ऊर्जा का संचार होता है।नंदी कुंड ट्रैक भी नंदाराज यात्रा का मुख्य मार्ग जिसमें होमकुंड तक यात्रा होती है उसी तरह है।नंदीकुंड से जैसे ही आगे जाने पर फेनकमल पुष्प दिखाई पडता है जो गुलाबी और बैगनी जाल के बीच सफेद रेशों में लिफटा एक और दैवीय पुष्प है और ब्रम्हकमल से भी अधिक ऊचाई पर मिलता है।सूर्यकमल पुष्प भी इस ट्रैक पर जगह जगह दिखाई देता है  बिल्कुल सूरजमुखी फूल जैसा लेकिन बिल्कुल छोटा और नीलकमल भी दिखाई दिया।

Bramh kamal Fain kamal

भारत में ब्रम्हकमल की कई प्रजातियां पाई जाती है।वैतरणी से करीब ढाई किमी की चढाई को पूरा करने के बाद इस ट्रैक का सबसे मुश्किल और खतरनाक दर्रा घियाविनायक है जो करीब 17500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।यहां चारों तरफ केवल पत्थर ही पत्थर दिख रहे थे।पूर्व में ये पूरा क्षेत्र एक ग्लेशियर रहा होगा और अब केवल उसका मोरेन ही था।ऐसे जगह स्थानीय लोग पत्थरों के चट्टे लगाते है जो आगे का मार्ग बताता है।

यहां से करीब 3 किमी की दूरी तय करने के बाद स्थित है नंदी कुंड।नंदी कुंड पहुचकर आपको भी अहसास होगा कि जैसे जन्नत में पहुच गये…..अविश्वसनीय…..उच्च हिमालय में एक दुर्लभ कुंड……..नंदीकुंड के चारों ओर ब्रम्हकमल,फेनकमल,सूर्यकमल और अनेकों जडी बूटियों की खूशबू आपको मदहोश कर सकती है। 

पौराणिक मान्यता है इस कुंड में सती नाग रहता था।एक बार मां नंदा देवी(पार्वती) यहां से गुजर रही थी तो उन्हे यह कुंड बेहद प्रिय लगा।सतीनाग से कुंड लेने के लिए मां पार्वती ने छोटी कन्या का रुप धारण कर लिया।धनियाढुंग में जैसे ही छोटी कन्या ने धनिया तोडा तो उसकी खूशबू सतीनाग को लग गई।सती नाग उस स्थान पर पहुचा और क्रोधित होते हुए नन्ही बालिका को डसने ही वाला था कि बालिका बोल पडी मामा ये जगह मुझे काफी पसन्द है।मामा शब्द सुनकर सती नाग का गुस्सा शांत हुआ और सती नाग ने ये कुंड मां पार्वती के लिए छोड दिया।

एक दूसरी किवदंदी है कि नंदीकुंड ही वो स्थान है जहां महाकाली ने इसी स्थान पर रक्तबीज का वध किया था।कुंड के किनारे एक छोटा मंदिर है जहां पर करीब दो दर्जन प्राचीन हथियार रखे हुए है जिसमें तलवारें,खड्ग है।मान्यता है कि ये प्राचीन हथियार उसी देवासुर संग्राम के है।नंदीकुंड स्थानीय उर्गम घाटी के गांवों के साथ ही कलगोट,डुमक की अराध्य देवी है और जब बडी जात का आयोजन होता तो इसी स्थान पर छतोलियों के साथ स्थानीय ग्रामीण पहुचते है।लेकिन नंदा राजजात के विपरीत यहां मां नंदा को छोडने के बजाय लाने के लिए जाते है।नंदीकुंड में ब्रम्हकमल को नंदाअष्टमी के बाद ही स्थानीय लोग तोडते है।

इसके पीछे पूर्वजों की पर्यावरण संरक्षण का संदेश रहा होगा क्योंकि नंदाअष्टमी के बाद ही ब्रम्हकमल में बीज बनने लगते है।नंदीकुंड केवल रहस्यमय ही नही आध्यात्मिक स्थल भी है।।उर्गम घाटी के देवग्राम से करीब 60 किमी का पैदल सफर तय कर नंदीकुंड पहुचा जाता है।यहा पहुचकर आपको भी अहसास होगा कि वाकई में ये एक जादुई कुंड है जहां भक्ति के साथ ही शक्ति का भी अहसास मिलता है।

नंदी कुंड के कुछ दृश्य :

Sandeep Gusain

नमस्ते साथियों।

मैं संदीप गुसाईं एक पत्रकार और content creator हूँ।
और पिछले 15 सालों से विभिन्न इलेक्ट्रानिक मीडिया चैनल से जुडे हूँ । पहाड से जुडी संवेदनशील खबरों लोकसंस्कृति, परम्पराएं, रीति रिवाज को बारीकी से कवर किया है। आपदा से जुडी खबरों के साथ ही पहाड में पर्यटन,धार्मिक पर्यटन, कृषि,बागवानी से जुडे विषयों पर लिखते रहता हूँ । यूट्यूब चैनल RURAL TALES और इस blog के माध्यम से गांवों की डाक्यूमेंट्री तैयार कर नए आयाम देने की कोशिश में जुटा हूँ ।

8 responses to “नंदी कुंड – जहाँ आज भी मौजूद है पांडवो के हथियार | Nandi kund Uttarakhand”

  1. arvind says:

    uttarakhand ki bahut hi behtareen jankari dete h aap. thank you😊

  2. Jitendra Rawat says:

    Apko Karya behad hi sarahniya yog h… uttrakhand ki parampara ar sanskriti ko sanjone k liye dhanyawad !!

  3. Rahul bhatt says:

    Sandeep ji bahut sundar video hai, aapki lagbhag sabhi videos dekhi hai, Rural tales ka subscriber hun kafi samaye se, or main bhi pahad se hi hun pauri Garhwal se ab Rishikesh main rehta hun, aapko join karne ki iccha hai aapke sath trek par jana hai ek din, Jankari jo aap dete ho video ke Madhyam se, kabil- ae – taarif hai, Pranam🙏

  4. सुरेश शर्मा पाउड़ी, गढ़वाल says:

    पहाड़ी संस्कृति को सज्वॉयाओ रखने के लिए धन्यवाद देते हैं

    • Sandeep Gusain says:

      धन्यवाद सुरेश जी ! अपनी संस्कृति को बचाये रखने के लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा।

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