क्या आप विश्वास करेंगे कि आज के वैज्ञानिक और प्रौद्यौगिकी युग में परियां मौजूद है। उनकी आहट सुनाई देती है। उन्हे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लोग महसूस करते है। देवभूमि उत्तराखंड में एक ऐसा ही क्षेत्र मौजूद है जिसे परियों का देश कहा जाता है। मान्यता है यहां परियां सदियों से विचरण कर रही है। स्थानीय भाषा में इन्हे आँछरी, डागणी, ऐड़ी, भराड़ी, वन देवियों और योगिनी इत्यादि नामों से पुकारा जाता है। गढवाल और कुमाऊं के कई जिलों में इनसे जुडे अनेकों वृतांत है। माना जाता है कि टिहरी गढवाल के खैट पर्वत श्रृंखला में इन परियों का वास है। देहरादून से 110 किमी टिहरी और फिर टिहरी से 41 किमी दूर भिलंगना नदी की झील पर बना पीपलडाली पुल पार करते ही परिय़ों के देश की सीमा शुरु हो जाती है। सवाल खडा होता कि आखिर कौन है ये परियां कहां से आई है और क्या ये मनुष्यों को नुकसान पहुचाती है। इन सभी सवालों के जवाब आपको जल्द मिल जाएंगे।
खैट पर्वत श्रृंखला में की रहस्यमय दुनिया में है परियों की गाथा

पौराणिक लोकजागरों में परियों की कहानी सुनाई जाती है। कहा जाता है कि चौंदाणा गांव में आशा रावत थोकदार की कोई संतान नही थी। उम्र लगातार बढ रही थी। आशा रावत की सात पत्नियां होने के बावजूद उसे यह चिंता सता रही थी उसके खेत, खलिहान, दौलत का क्या होगा।कौन होगा उसका उत्तराधिकारी। सात रानियों के बाद भी निसंतान आशा रावत ने थात गांव से पंवार परिवार की पुत्री से आठवी शांदी की। शादी के बाद आशा रावत के यहां नौ कन्याओं का जन्म हुआ। कहते है कि ये कन्याएं दैवीय शक्तियां थी। मात्र 6 दिन में ही ये कन्याएं चलने लगी 6 वर्ष की आयु में इन कन्याओं ने अपने पिता से नए कपडे और सोने के आभूषण की इच्छा जाहिर की। पिता ने उन सभी को नए कपडे और आभूषण दिए। बचपन से सभी नौ कन्याएं बेहद खूबसूरत थी जब वे 12 वर्ष की हुई तो उनका यौवन खिलने लगा था। उसी दौरान गांव में मंडाण(धार्मिक आयोजन)लगा तो सभी बहनें सजधज कर मंडाण में चली गई और मंडाण में जैसे ही जागरों की गूंज शुरु हुई तो सभी बहनें नाचने लगी। सुबह से श्याम हो गई लेकिन नौ बहनें मंडाण में नाचती रही। जब श्याम का वक्त हुआ तो उन्होने अपने घर की ओर देखा तो अंधेरा नजर आया और खैट पर्वत की ओर उजाला और वे खैट पर्वत की ओर चल दी। इसी बीच उन्हे अपना ममाकोट थात गांव नजर आया तो वहां भी अंधेरा था और खैट पर्वत पर रंग बिरंगे फूल खिले से चमक रहा था वे अपने ममाकोट से आगे चलती हुए खैट पर्वत पहुच गई।
यहां पर कैटव नामक राक्षस रहता था। पौराणिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण जो इस क्षेत्र में नागार्जा के रुप में पूज्यनीय है उन्होने कैटव राक्षस कन्याओं को कोई नुकसान ना पहुचा दे इसलिए उसकी मनस्थिति को परिवर्तित कर दिया। कैटव ने इन कन्याओं को अपनी बहन मानते हुए धर्मभाई बना लिया। यहां से नौ बहने पीढी पर्वत पर पहुची जहां भगवान कृष्ण ने उन्हे हर लिया। गढवाल में परियों को ही स्थानीय भाषा में अछरी, वन देवी, भराडी कहा जाता है। नौ देव कन्याएं ही परियों के रुप में खैट और पीड़ी में पूजी जाती है। ये नौ कन्याएं आशा रौतेली, बासा रौतेली, इंगला रौतेली, गर्धवा रौतेली, सतेई रौतेली, बरदेई रौतेली, कमला रौतेली, देवा रौतेली, बिगुला रौतेली के नाम से जानी जाती है। जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण ने ख्रैट की अछरियों और पीड़ी की भराड़ी लोगजागरों पर काफी शोध किया। प्रीतम भरतवाण कहते है परियों का जिक्र जागरों में सबसे अधिक है।
खैट पर्वत एक आध्यात्मिक स्थल

हिमालय में ऊचाई वाले मखमली घास के मैदानों को बुग्याल कहा जाता है। अधिक ऊचाई पर स्थित इन बुग्यालों में कई सुन्ग्धित जडी बूटियां मिलती है जो कई बार मदहोश भी कर देती है। टिहरी गढवाल में स्थित खैट पर्वत भी काफी ऊचाई पर स्थित है जिसे परियों का देश भी कहा जाता है। पीपलडाली से करीब 30 किमी की दूरी तय करने के बाद रजाखेत कस्बा पडता है और यहां से करीब पांच किमी की दूरी तय करने के बाद खैट पर्वत की तलहटी पर स्थित कोलगांव स्थित है। परियों के देश यानी खैट पर्वत के बारे में कहा जाता है कि इस क्षेत्र में बासुरी या फिर कोई सुरीली आवाज में गीत नही गा सकते………कोई चटकीले कपने भी आप पहन कर नही जा सकते। लोकमान्यताएं है कि परियां इस क्षेत्र में देवी के रुप में पूज्यनीय है। जागरों में परियों की उत्पत्ति और उनसे जुडे रहस्य छुपे है। उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में जागर भी किसी रहस्य से कम नही है। जागर पहाड की एक ऐसी विधा है जिसमें लोकवाद्य यंत्र या फिर ढौर थाली से देवताओं का स्तुतिगान किया जाता है। दैवीय शक्तियों को आत्मसात करने की नृत्य और संगीतमय विधा को ही जागर कहा जाता है। परियों का सबसे ज्यादा जिक्र इन्ही लोकजागरों में आता है। चौंदाणा गांव सडक के नीचे स्थित है और खैट पर्वत पहुचने के लिए आपको ननवा होते हुए 2 किमी का सफर तय कर थात गांव पहुचेंगे। थात से खैट पर्वत की दूरी 5 किमी रह जाती है लेकिन यहां से पूरा रास्ता खडी चढाई को पार कर जाना होता है। थात गांव से खैट पर्वत का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। मानसून के मौमस में बादलों के घेरे में यह पर्वत ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी विशालकाय दैत्य के गले में सफेद रस्सियों का फंदा लगा है।

कोहरा जिस तेजी से यहां आता है उतनी ही तेजी से हट भी जाता है। इस गांव की एक और खासियत है कि यहां अखरोट बडी मात्रा में होता है।यहां स्थानीय लोग परियों से जुडी कई विचित्र लोकगाथाएं बताते है। जैसे जैसे आप खैट पर्वत की चढाई चढते जाएंगे प्रकृति के अनुपम नजारे बदलते रहेंगे। खेत खलिहान पार करते हुए अब घने जंगल का रास्ता शुरु हो जाता है जहां दिन के उजाले में भी अंधेरा सा रहता है। थात गांव निवासी रोशन पंवार कहते है यह पूरा क्षेत्र परियों की चहलकदमी से जुडा है। बरसात के समय पैरों में जोंक चिपकने का खतरा बना रहता है।थात गांव से 5 किमी की दूरी तय करने के बाद ऊचाई पर छोटा का मखमली मैदान दिखाई देता जहां पर कैटव राक्षस का मंदिर स्थित है।मान्यता है कि खैट पर्वत पर मधु और कैटव नाम के दो राक्षण रहते थे जिनका इलाके में काफी आतंक था। मां भगवती ने कैटव राक्षण का वध कर इस पूरे क्षेत्र में राक्षस के आंतक को खत्म किया। बाद में कैटव शब्द ही खैट पर्वत के रुप में प्रचलित हो गया। इस क्षेत्र को राक्षखाल या दैत्यखाल भी कहा जाता है। दैत्यखाल से करीब थोडी दूर खैट पर्वत स्थित है। इसी चोटी को कहा जाता है परिलोक…चारों ओर का नजारा देख आप मदहोश हो जाएंगे। पौराणिक मान्यता है कि कात्यायन ऋषि ने मां भगवती की कठोर साधना की और मां भगवती को पुत्री के रुप में जन्म लेने के लिए तप किया।

कात्यायन ऋषि की तपस्या से खुश होकर मां भगवती ने उनकी पुत्री के रुप में जन्म लिया और कात्यायनी कहलाई। पौराणिक मान्यता ये भी है रावण ने कठोर तपस्या कर भगवान शिव से इसी स्थान पर रिद्वि सिद्व का वरदान प्राप्त किया। वरिष्ठ पत्रकार गोविन्द सिंह बिष्ट कहते है कि खैट और पीढी की अछरियों(परियों) ने ही जीतू बगडवाल,लाल सिंह कैन्यूरा और मदन नेगी जैसे सुन्दर और वीर भडों का हरण किया। इन सभी में जीतू बगड़वाल की कहानी काफी प्रचलित है। लोक कथाओं के अनुसार जीतू बगडवाल एक शक्तिशाली और सुन्दर नौजवान था जो बेहद सुरीली बासुरी बजाता था। उसकी साली ने जीतू से शिकार की इच्छा जताई जिसके बाद जीतू खैट पर्वत पर शिकार करने पहुचा। जीतू को स्थानीय लोगों ने बासुरी बजाने से मना किया लेकिन अपनी ताकत के कारण उसने लोगों की बात अनसुनी कर दी। जीतू खैट के जंगलों में जब शिकार के लिए पहुचा तो परियां उसे हरने के लिए पहुच गई। जीतू ने परियों से अपनी साली की इच्छा बताते हुए कुछ दिनों की मोहलत मांगी।परियों ने उसे तारीख बताई और जिस दिन जीतू खेतों में धान की रोपाई कर रहा था ठीक समय और दिन परियों ने जीतू बगडवाल को हर लिया। खैट पर्वत समुद्र तल से लगभग दस हजार फीट की ऊचाई पर स्थित है। खैट पर्वत से घनसाली, टिहरी, पौडी सहित कई शहर और विशाल टिहरी लेक का दीदार होता है। मान्यता है कि इसी स्थान पर इन्द्रलोक की अप्सराएं भूलोक में नृत्य करने के लिए आती थी। खैट पर्वत के साथ ही पीडी पर्वत में परियों से जुडी कई प्रमाण है। स्थानीय लोगों ने बताया कि आज भी उल्टी ओखली चट्टान पर बनी हुई है।
श्रीकृष्ण भगवान की गोपियां ही परियां है

उत्तराखांड के पर्वतीय इलाकों खास तौर पर उत्तरकाशी, टिहरी, रुद्रप्रयाग, पौडी, चमोली, अल्मोडा और पिथौरागढ जिलों में परियों की अनगिनत लोकगाथाएं मौजूद है। आस्था और विश्वास और जागरों में उल्लेख इसे और भी प्रमाणित करता है। परियों के देश यानी खैट पर्वत इन्ही अदृश्य शक्तियों की शरणस्थली है। थात गांव के बुजुर्ग जयदेव सिंह कहते है उन्होने अपने गांव से मंडाण के समय छोटी कन्याओं को नाचते देखा है। साहित्यकार डा विरेन्द्र बर्थ्वाल परियों की उत्पत्ति को श्रीकृष्ण भगवान की गोपियों से जोडते है। वे कहते है जब भगवान श्रीकृष्ण हिमालय में तपस्या के लिए पहुचे तो उनके साथ गोपियां भी यहां आ गई और इन्ही गोपियों देवीयों के रुप में पूज्यनीय हो गई। वे कहते है चौंदाणा गांव में जो नौ देव कन्याएं आशा रावत के घर जन्मी वे मूलत श्रीकृष्ण भगवान की गोपियां ही है।
इस पूरे क्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण को नागार्जा के रुप में पूजा जाता है। कोलगांव निवासी विद्यादत्त पेटवाल कहते है कि यह पूरा क्षेत्र आध्यात्मिक और दैवीय शक्तियों से भरा हुआ है।खैट और पीडी पर्वत चोटियों पर परियों के निशां मौजूद होने के कई प्रमाण है। पीडी पर्वत पर तीन वर्षो तक साधना करने वाले तपस्वी स्वामी प्रकाशान्द कहते है कि उन्होने परियों की मौजूदगी कई बार महसूस की है। डिवाइन गर्ल यानी अदृश्य शक्तियों से जुडी ये कई कहानियां इस क्षेत्र में प्रचलित है।देश और दुनिया इस पूरे क्षेत्र से अनजान है जिसे परियों का देश कहा जाता है।कोलगांव निवासी विद्यादत्त पेटवाल कहते है कि इस धरती में प्रकृति ने चारों ओर अपने सौन्दर्य का खजाना बिखेरा हुए है लेकिन राज्य सरकार की उपेक्षा के कारण खैट पर्वत को पर्यटन मानचित्र पर उभारा नही जा सका। आखिरकार जहां परियों का वास है वहां सैलानियों की विरानी क्यों है।

वैज्ञानिक युग में परियों की कहानी केवल मिथक
लोककथाओं में खैट की अछरी और पीडी की भराड़ी के रुप में इन्ही नौ देवियों की पूजा की जाती है। प्रत्येक वर्ष मई जून में यहां भगवती का पाठ और मेले का आयोजन किया जाता है। हिमालय में ऊचाई वाले इलाके प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ साथ आध्यात्मिक स्थान भी रहे है। इन स्थानों में बडी संख्या में सुगन्धिक जडी बूटियां पाई जाती है। जो कभी कभी मदहोश कर देती है। वरिष्ट पत्रकार राजीव नयन बहुगुआ कहते है यह केवल एक मिथक है कि परियां आज भी विद्यमान है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखे तो खैट,पीडी जैसे पर्वत चोटियों में इन्ही सुगन्धित फूलों की खूशबू और आक्सीजन की कमी के कारण मूर्छित होने की घटनाएं होती जिन्हे परियों द्वारा हरने की घटनाएं बताई जाती है। वे कहते है कि यह केवल एक मिथक है।
Kahani bahut achhi lagi
धन्यवाद