
हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में अंतर्राष्ट्रीय महाशिवरात्रि मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में स्थानीय देवी देवताओं की रथ मंडी शहर पहुँचती है। और 7 दिनों तक मेले का आयोजन किया जाता है। मेले में शैव, विष्णु और स्थानीय लोक देवताओ का संगम दिखाई देता है। पहले मंडी रियासत के राजाओं की तरफ से शिवरात्रि पर आने वाले देवी देवताओं की व्यवस्था की जाती थी जिसे अब मंडी प्रशासन करता है। मेले के पीछे इतिहास की एक अनोखी कहानी छुपी है।
कैसे हुई मंडी शिवरात्रि मेले की शुरआत

मंडी शहर की स्थापना सन 1526 में राजा अजबरसेन ने की थी। राजा अजबरसेन मंडी रियासत के शक्तिशाली राजा था जिसने आस पास के कई इलाकों को भी अपने राज्य में शामिल कर लिया। इस मेले को वर्तमान स्वरूप प्रदान करने का श्रेय राजा सूरज सेन को जाता है। सूरज सेन का शासन 1637 से 1664 तक रहा। राजा सूरज सेन ने कुल्लू राज्य से लडाई में काफी हानि उठानी पड़ी। राजा के 18 पुत्रों की एक एक कर मौत होने लगी तो राजा सुराजसेन ने अपना राज पाठ भगवान विष्णु के प्रतीक माधो राय को समर्पित कर दिया। राजा सुराजसेन बाबा भोलेनाथ के भक्त थे लिहाजा उन्होंने सभी देवी देवताओं को महाशिवरात्रि के पर्व पर आमंत्रण भेजा और इस मेले की शुरुआत की।

महाशिवरात्रि के मेले में देवी देवताओं के मंडी शहर में आने के पीछे भी राजशाही परिवार से जुडी एक और कहानी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि 1788 में मंडी के राजा ईश्वरी सेन ने जब मंडी रियासत की बागडोर संभाली तो उस समय वे कांगड़ा के राजा की कैद में थे। कैद से आजाद होने के बाद जब वे वापस मंडी पहुँचे तो प्रजा उनसे मिलने पहुँची। इसी समय शिवरात्रि का भी पर्व था। राजा की रिहाई और शिवरात्रि का पर्व एक दिन होने से एक मेले का शुभारंभ हुआ।
माधोराव कमरुनाग और बाबा भूतनाथ है मेले के मुख्य देवता

शिवरात्रि मेले की शुरआत बाबा भूतनाथ मंदिर से शुरू होती है। मेले में सबसे पहले भूतनाथ भगवान को न्योता दिया जाता है।कमरुनाग लोक देवताओ का प्रतिनिधित्व करते है और माधोराव विष्णुरूपी देवताओ का प्रतिनिधत्व करते है। कमरुनाग का रथ सबसे पहले बाबा भूतनाथ के मंदिर में आता है। उसके बाद मंडी रियासत से जुड़े सभी देवी देवतायें अपने रथ और पालकी में शिवरात्रि के दिन पहुँच जाते है। मंडी शहर में सभी बाबा भूतनाथ मंदिर में हाजिरी लगाते है। वर्तमान में करीब 250 से अधिक देवी देवताओं का संगम इस अंतर्राष्ट्रीय मेले में होता है। मेले में 3 अलग अलग दिन जलेब यानी देवरथ यात्रा निकाली जाती है।
माधोराव की पालकी से शुरू होती है मेले की शुरआत

शिवरात्रि पर्व के अगले दिन कोर्ट परिसर जो पहले राजशाही महल हुआ करता था, उस स्थान पर सभी देवी देवतायें पारंपरिक वाद्य यंत्र और बाबा भोलेनाथ, विष्णु भगवान के जयकारों के साथ पहुँचना शुरू होते है। करीब 2 बजे कोर्ट परिसर से देवताओ के रथ जलेब के रूप में पड्डल मैदान की तरफ प्रस्थान करते है। यह नजारा अपने आप में अद्भुत होता है। लोक वाद्य यंत्रों की ध्वनियां वातावरण में गूंजती रहती है। देवताओ के उद्घोष से सभी भक्त इस अनोखे वातावरण को भक्तिमय होकर देखते रहते है। हम भी कोर्ट परिसर के बाहर से रथ यात्रा जो जलेब के रूप में निकल रही थी उसका इंतजार करते रहे। कुछ देर में झांकियों के रुप में देवडोलियों का आगमन शुरू हो गया।
अंतर्राष्ट्रीय मेले के रूप में विख्यात है मंडी शिवरात्रि

मंडी को छोटी काशी भी कहा जाता है। बाबा भूतनाथ की स्थापना के बाद इस शहर की नींव पड़ी। इस मेले का लंबे समय से भक्तों और पर्यटकों को इंतजार रहता है। हमने जेहरा और नारायनबान गांवों में शिवरात्रि मेले के बारे में जाना। साथ ही गाँवो से देवताओ की यात्राएं भी आते हुए दिखाई दी। 2 मार्च को मेले में सबसे पहले हिमाचल की लोक संस्कृति की झलक दिखाई दी।कुल्लू, किन्नौर और मंडी जिले से लोक कलाकारों की टीमें रथ यात्रा में सबसे आगे नाचते गाते हुए चल रही थी। उसके बाद भक्तों के जयकारों के साथ माधोराव की पालकी चलनी शुरू हुई। कोर्ट परिसर से पड्डल मैदान तक सिर्फ भक्तों और देवताओ के रथ का लंबा सैलाब दिख रहा था।
बदल रहा है अब शिवरात्रि मेले का स्वरूप

मंडी के इस शिवरात्रि मेले का स्वरूप अब काफी बदल चुका है। स्थानीय निवासी खेमराज गुप्ता बताते है कि पहले भीड़ काफी कम हुआ करती थी अब सड़कें बनने से गाँव गॉंव से लोग मेले में आ रहे है। यश राणा कहते है कि यह मेला राजाओं के समय से चल रहा। सबसे पहले देवताओ की डोली माधो राव के दरबार पहुँचती है। वे कहते है इस मेले को राजा सुरजसेन ने ही लोकप्रिय बनाया। स्थानीय निवासी मुकेश ठाकुर कहते है यह मेला ऐतिहासिक मेला है और जिले के सभी देवी देवताओं का संगम होता है। रथ में सवार होकर देवी देवता इस जलेब में शामिल होते है। इन सभी देवताओं में शक्ति होती है। पहले राजाओं के समय मेले का आयोजन राजशाही की तरफ से किया जाता था अब राज्य सरकार और जिला प्रशासन द्वारा इस मेले का आयोजन किया जाता है। यह धार्मिक और सांस्कृतिक मेले के साथ व्यापारिक मेले के रूप में भी जाना जाता है। पुराने समय में तिब्बत और उत्तर भारत के कई राज्यों से व्यापारी यहाँ पहुँचते थे।
क्यों खास है मंडी की शिवरात्रि

यूँ तो पूरे देश में शिवरात्रि का पर्व बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर हो या फिर सोमनाथ हर जगह बाबा के विवाह की धूम रहती है। जगह जगह इस दिन शिव पार्वती की बारात निकाली जाती है लेकिन मंडी में माहौल कुछ अलग होता है। इस दिन छोटी काशी में देवध्वनियों की स्वरलहरियां सुनाई दे है। अगर सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से देखे तो यहाँ भगवान शिव के कई रूप विद्यमान हैं।

यहाँ एक मुखी से लेकर दश मुखी तक शिव विद्यमान है। यह एक ऐसा मेला है जिसमे राजा, प्रजा और देवता सभी शामिल होकर पूरे शहर को भक्तिमय बना देते है। यह भूमि मांडव ऋषि की तपस्थली रही है। भगवान शिव के अलग अलग रुप यहाँ पहाड़ की काशी में मंडी में विद्यमान है। इस मेले में देवताओ का मिलन भी खास होता है जब एक घाटी के देवता दूसरी घाटी के देवता से मिलते है तो वो पल भी देखने लायक होता है।
Good work sandeep
Thank you Manmohan Ji