महासर ताल उत्तराखंड के टिहरी गढवाल जिले में स्थित है। देहरादून से 200 किमी की दूरी तय कर बूढा केदार धाम पहुचा जा सकता है।यहां से देवदार के जंगल के पास धर्म गंगा और बालगंगा नदी के संगम पर बसा बूढा केदार धाम के दर्शन कर करीब 7 किमी घडियाल सौड तक सडक मार्ग से पहुचा जाता है और यहां से 8 किमी की खडी चढाई को पार कर जंगलों के बीच में ये खूबसूरत ताल स्थित है। समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊचाई पर महासर ताल स्थित है और इसका कैचमेंट क्षेत्र बुग्याल और जंगल है जिससे वर्ष भर इसमें पानी रहता है।हर साल इस ताल में बूढा केदार क्षेत्र के थाती कठूड पट्टी के सात गांव महासर नाग देवता की पूजा अर्चना के लिए आते है।महासर नाग देवता इस इलाके के प्रमुख देवता है जिन्हे विष्णु का अवतार माना जाता है।

महासर नाग देवता टिहरी गढवाल के भिलंगना ब्लाक के बूढा केदार क्षेत्र के थाती पट्टी के सात गांव के ईष्ट देव है।लोक मान्यता है कि बूढा केदार क्षेत्र में सूखा और अतिवृष्टि होती है तो ग्रामीण महासर नाग देवता की डोली लेकर हिमालय में स्थित महासर नाग के मंदिर और ताल लेकर पहुचते है।यहां सात गांव के लोग और ढोल वाद्य यंत्र लेकर डोली को महासर ताल में स्नान कराते है।देवता की पूजा अर्चना के बाद क्षेत्र में सूखा होने पर वर्षा होती है और अगर अतिवृष्टि होती है तो फिर बारिश रुक जाती है।हर तीन साल में देवता को यहां लाया जाता है जबकि प्रत्येक वर्ष गंगा दशहरा के मौके पर महासर ताल में आस्था की डुबकी लगाने के लिए आस पास के दर्जनों गांवों के ग्रामीण आते है।
महासरताल करीब 80 मीटर लम्बा और 30 मीटर चौडा है।गंगा दशहरा के दिन बूढा केदार क्षेत्र के करीब 60 गांव के लोग यहां देवता की डोली के आगमन पर आते है।झील की गहराई का आज तक पता नही चला है।महासरताल के बगल में करीब 25 मीटर की दूरी पर दूसरा ताल है जिसे स्थानीय लोग महारणी ताल कहते है।लोक मान्यता है कि ये दोनो झील नाग नागिन है और इन्हें भाई बहन भी कहा जाता है।

लोक मान्यता है कि आज से 14 सौ साल पहले घुमराणा शाह के पुत्र उमराणा शाह हुए थे।उनकी पत्री फुलमाला की कोई सन्तान नही थी।जब फूलमाला ने शेषनाग भगवान की पूजा अर्चाना की तो उन्हें एक पुत्र और एक पुत्री की प्राप्ति हुई।बूढा केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह नेगी ने बताते है कि यही दोनों भाई बहन को क्षेत्र के लोग महासर नाग और महासरणी के रुप में पूजा जाता है।
गंगा दशहरा के दिन थाती पट्टी के सात गावों के लोग ताल में देवता को लाते है।जिनमें थाती,कोट,बिशन,भिगुन दल्ला,जखाणा,तितरना और तोली गाव प्रमुख है।पौराणिक मान्यता भले ही कुछ भी हो लेकिन हर तीसरे साल क्षेत्र के लोग देवता की डोली लेकर महासरताल पहुचते है उसके पीछे पूर्वजों ने समाजिक एकता का भी संदेश देता है।जात से हमें पर्यावरणीय संदेश भी मिलता है कि हमारे ताल और पानी के स्रोत को हमें ही जीवित रखना होगा।महासरताल के पीछे सात ग्राम सभा में करीब 20 से ज्यादा गांव है और इस ताल का पानी नीचे के ग्रामीणों के लिए भी जलस्रोत फूटकर निकलता है।
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