भारतीय फौज में एक से बढ़कर एक करिश्माई जवान और अधिकारी हुई है जिन्होंने अपने अदम्य साहस के दम पर पूरे दुश्मन को धूल चटा दी।जिनकी वीरता को देखते हुए दुश्मन देश ने भी उन्हें सम्मानित किया।उत्तराखंड के वीर जांबाज जसवंत सिंह रावत हो या फिर राजस्थान के बाड़मेर जिले के संत जनरल हणुत सिंह जिन्होंने दुश्मनों को बुरी तरह युद्ध में शिकस्त दी।

1971 के हीरो जिसने पाकिस्तान की पूरी आर्म्ड ब्रिगेड का सफाया किया
कहानी एक ऐसे वीर सपूत की जिसने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की पूरी आर्म्ड ब्रिगेड का सफाया कर दिया।भारतीय सेना के स्वर्णिम इतिहास में वो हीरा अब हमारे बीच नहीं है लेकिन कर्मभूमि और धर्मभूमि के इस महान सपूत को संत जनरल के नाम से प्रसिद्धि हासिल हुई। लेफ्ट जनरल हनुत सिंह भारतीय सेना का वो चमकता तारा है जिनकी शौर्य गाथा भारतीय सेना में जोश और जूनून पैदा करती रहेगी।संत जनरल के नाम से विख्यात हनुत सिंह ने 1971 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ा दिए।एक तरफ पाकिस्तान की पूरी आर्म्ड ब्रिगेड थी और दूसरी और हनुत सिंह मात्र 17 पूना हॉर्स को कमांड कर रहे थे। बैटल ऑफ़ बसन्तरा के नाम से प्रसिद्ध उस लड़ाई में हनुत सिंह ने अपनी जादुई नेतृत्व क्षमता और अदम्य साहस के दम पर पाकिस्तान की आर्म्ड ब्रिगेड ध्वस्त कर दी । स्वर्गीय हणुत सिंह को टैंक युद्ध का बहुत बारीक ज्ञान था। उन्होंने टैंकों के युद्ध नीति पर एक किताब भी लिखी जो आज भी सेना में पढ़ाई जाती है।
देहरादून में ध्यान योग करते हुए समाधि में लीन
‘संत जनरल’ के नाम से मशहूर और महावीर चक्र से सम्मानित लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर) हनुत सिंह 10 अप्रैल 2015 को बैठे बैठे ध्यान योग की मुद्रा में समाधि(निधन) में प्रवेश कर गए।संत हनुत सिंह आजीवन ब्रह्मचारी रहे।पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह के चचेरे भाई थे। सेना से रिटायर होने के बाद उन्होंने देहरादून के राजपुर रोड पर अपने गुरू शिव बाल योगी के सानिध्य में रहने लगे। उन्ही के आश्रम के पास उन्होंने एक छोटा सा घर भी बना लिया था। 1991 में रिटायर होने के बाद उन्होंने सांसारिक मोह त्याग दिया और यहां राजपुर रोड स्थित शिवबाला आश्रम में तपस्ता करने लगे। हर साल 14 अगस्त को उनकी जयंती को उनके अनुयाई बड़े ही सादगी के साथ मानते है।
बैटल ऑफ बसंतर में अरुण क्षेत्रपाल को मिला परमवीर चक्र

1971 के युद्ध में जब पुना हॉर्स पाकिस्तान की पूरी आर्म्ड ब्रिगेड के साथ युद्ध कर रही है उस युद्ध युद्ध में अरुण क्षेत्रपाल ने अदम्य साहस का परिचय दिया जिसके बाद वो वीरगति को प्राप्त हुए। युद्ध के बाद लेफ्टिनेंट अरुण को सर्वोच्च सम्मान दिया गया।जबकि हणुत सिंह को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। युद में भारतीय सेना का कोई भी टैंक तबाह नही हुआ था जबकि 17 पुना हॉर्स ने पाकिस्तान की पूरी आर्म्ड ब्रिगेड को परास्त किया। यह युद्ध नीति को विश्व की कई सेनाओं को भी पढ़ाया जाता है कि आखिर कैसे यह संभव हो पाया। उनके अनुयायी मानते है कि हणुत सिंह के भीतर दैवीय शक्तियां मौजूद रही। सेना में कार्य करते हुए भी वो नित्य योग और ध्यान करते थे इसलिए उन्हें संत जनरल कहा गया।
संत जनरल का उत्तराखंड से था गहरा लगाव

राजस्थान के बाड़मेर जिले के जसोल गाँव में पैदा हुए सिंह की स्कूली शिक्षा देहरादून में हुई थी। आईएमए के कमीशन लेने के बाद 1949 में उन्हें देश की सबसे पुरानी 17 पूना हॉर्स में जगह मिली। केवल बैटल ऑफ बसंतर ही नही उन्होंने देश में सबसे बड़ा युद्धाभ्यास भी कराया। 1971 युद्ध के बाद पाकिस्तान ने उन्हें फक्र-ए-हिन्द सम्मान से नवाजा। 17 पुना हॉर्स हर साल उनके जन्मदिन पर देहरादून स्थित उनके आवास पर भंडारा करती है।
जनरल हनुत सिंह के साथी और उनके जूनियर अधिकारी बताते है कि हनुत सिंह दैवीय शक्ति के मालिक थे और 1987 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़े सैनिक युद्धाभ्यास में उनकी अदभुत नेतृत्व क्षमता को देखेने को मिली। दो बार मुझे भी उनके दर्शन करने का मौका मिला था। राजपुर रॉड पर वे साधना में लीन रहते थे। जब उनके दर्शन मैंने किये तो उन्होंने एक ही सवाल किया कि 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद तुम कहाँ कहाँ गए। मैंने उन्हें अपनी पूरी कहानी बताई। देश का एक लाल जो अपनी दैवीय शक्तियों के लिए प्रसिद्ध था उनके जाने के बाद कुछ भू माफियाओं और अफसरों ने उनके भवन पर कब्जा करने की कोशिश की।
फिलहाल उनके मकान में कोई नही रहता केवल पूजा अर्चना के लिए उनके अनुयायी जाते है।
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