
इस गाँव में बनी है घरों की कॉलोनी
कुमाँऊ में भवन निर्माण की समृद्ध परंपरा रही है। कुमाऊँ में पहले गाँव ऐसी तरह बसते थे जिसमें लंबी श्रृंखला में मकान बनाये जाते थे जिन्हें बाखली कहा जाता है। नैनीताल जिले के मुक्तेश्वर से करीब 20 किमी की दूरी पर एक गाँव है कुमाटी जो आज भी कुमाँऊ की इस समृद्धशाली परंपरा को अपने में संजोए हुए है। आइये जानते है आखिर कैसे बनी यह कुमाटी की बाखली….

ग्रामीण पर्यटन की दृष्टि से नई पहचान बन सकता है कुमाटी
कुमाटी गाँव की इस बाखली में करीब 45 परिवार रहते है। पूरी बाखली की श्रृंखला करीब 150 मीटर की है। निचले तल में तुन की लकड़ियों और स्थानीय पत्थरों का आधार दिया गया है और जानवरों के रहने के लिए बड़े कमरे बनाये गए है जबकि ऊपर की मंजिल में बरामदा बाहर है और दो कमरों के अंतिम में एक छोटा रसोईघर है।रसोईघर से धुंआ बाहर जाने के लिए एक चिमनी का प्रयोग किया गया है। दो घर के बीच में दरवाजे भी है जिससे कोई भी सूचना और सामान का आदान प्रदान किया जा सके। फौज से रिटायर होकर अपने पुश्तैनी घर में रह रहे तारा दत्त जोशी कहते हैं कि अब केवल कुछ परिवार ही यहाँ रहते है।

वे कहते हैं कि इस गॉंव में पहले सभी एक साथ खुशी खुशी रहते थे और अब सब नौकरी और व्यवसाय के कारण अल्मोड़ा, हल्द्वानी, दिल्ली और देहरादून रहते है। गाँव के एक अन्य निवासी आनंद बल्लभ जोशी कहते हैं कि पहले गाँव एक बाखली के रूप में बसते थे। आज जैसे महानगरों में कालोनी बसाई जाती है बस यूं समझ लीजिए कि हमारे पूर्वजों ने भी अपने लिए एक ही जगह पर घरों की श्रृंखला बनाई।

आखिर क्यों एक ही जगह बस बसाए जाते थे गाँव
कुमाँऊ की बाखली बनाने के पीछे पूर्वजो के कई उद्देश्य थे। गढ़वाल और कुमाँऊ में सभी राजस्थान और महाराष्ट्र से आकर बसे। पूर्वजों ने जब गाँव बसाए तो ऐसी जगह चुनी जो भूस्खलन की दृष्टि से सुरक्षित है। अधिकतर समतल भूमि हो और खेती के लिए सीढ़ीदार खेत बनाये जा सके। इसके साथ ही जंगल और पानी भी नजदीक हो।

बाखली बनाने का सबसे बड़ा उद्देश्य आपसी प्रेम भाव और संयुक्त परिवार की परंपरा थी जो कुमाँऊ में धीरे धीरे खत्म होती चली गई और अब गाँव काफी दूर दूर बस गए है। जानकारों की माने तो अब कुमाँऊ में बाखली की परंपरा खत्म हो गई है। कुमाँऊ संस्कृति के जानकार हरेंद्र सिंह बिष्ट कहते हैं कि चंद वंशीय राजाओं के समय कुमाँऊ के अधिकतर गाँव बसे पहले नदियों के किनारे ही मुख्य रूप से गाँव बसते। अल्मोड़ा जिले में पहले बाखली परम्परा हुआ करती थी जिसमे संयुक्त परिवार की भावना थी लेकिन धीरे धीरे यह भावना कम होने लगी।

कुमाँऊ में बाखली के अब नही दिखाई देते ही और जो है भी वो उपेक्षित है। कुमाटी गाँव में बुजुर्ग लोग ही है। कुमाटी गाँव में जब हम गए तो उस समय मात्र कुछ ही परिवार दिखाई दिए। गांव मुक्तेश्वर अल्मोड़ा मोटर मार्ग पर स्थित है और इस गॉंव में आज भी खेतों में पारंपरिक फसल दिखाई दी। गाँव के पास ही पानी की धारा है। ग्रामीण कहते हैं कि पहले घर के भीतर से ही खाने पीने की चीजों को एक कमरे से दूसरे कमरे तक पहुँचाया जा सकता था। पहले गांव में सभी परिवार रहते थे अब सभी पलायन कर चुके है मात्र 1 दर्जन परिवार ही गाँव में रहते है।
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