कोटि बनाल गांव की है अदभुत भवन स्थापत्य कला
हिमालय में कभी भी बड़ा भूकंप आया सकता है।उत्तराखंड, हिमांचल और जम्मू कश्मीर क्षेत्र में पिछले सौ सालों में कोई बड़ा भूकंप नही आया है।1905 में कांगड़ा भूकंप के बाद कोई बड़ा भूकंप नही आया है।सोचिये जब हिमालय में 8 तीव्रता का भूकंप आएगा तो दिल्ली तक इसका असर दिखाई देगा।नेपाल में 2015 में आए भूकंप ने भारी तबाही मचाई थी।रिएक्टर स्केल पर 7.8 तीव्रता का भूंकप था जिसने नेपाल में भारी तबाही मचाई।उत्तराखंड में उत्तरकाशी जिले में 1991 और चमोली में 1997 में भूकंप आए थे।लेकिन क्या आपको मालूम है कि हमारे पुर्वर्जों ने ऐसे भवन बनाए थे जो बडे बडे भूकंप को झेल चुके है और उसका बाल बाका भी नही हुआ।

उत्तराखंड में उत्तरकाशी की रवाईं घाटी अपनी लोक संस्कृति और लाल चावल के लिए विख्यात है लेकिन सबसे ज्यादा ये इलाका भवन निर्माण शैली के लिए प्रसिद्ध है।इस भवन निर्माण शैली का केंद्र बिंदु है बड़कोट के 12 किमी की दूरी पर स्थित कोटी बनाल गाँव जहा आज भी 1 हजार साल पुराने भवन खड़े है।वैज्ञानिक इन भूकंप रोधी भवनों को देखकर आज भी हैरान है।आईआईटी रुड़की और उत्तराखंड आपदा विभाग ने जब इन भवनों में प्रयोग की गई लकड़ी और पत्थर की कार्बन डेटिंग कराई तो पता लगा ये भवन एक हजार साल पुराने है और कई बड़े भूकंप को झेलने के बाद भी सुरक्षित है।इस गाँव में पंचपुरा यानी पाँच मंजिल भवन है जो अपनी अद्भुत निर्माण के लिए जानी जाती है।

कोटि बनाल गांव पंचपुरा भवन के लिए प्रसिद्व है
कोटी बनाल गांव देहरादून से 147 किमी की दूरी पर स्थित है।गाँव समुद्र तल से 1400 मीटर की ऊँचाई पर बसा हुआ है।यहां 120 परिवार रहते है। कोटी बनाल गाँव में एक पंचपुरा भवन है जिसके चारों कोने की चौखट बराबर है।इस भवन के पांच मंजिल है और 2 मंजिल की नींव है।इस भवन की डिजाईन ऐसी है कि बडे से बडा भूकंप इसका कुछ नही बिगाड सकता।पहले इस गाँव का नाम बस्तडी था फिर गाँव में एक दो लोग सबसे पहले आकर बसे।उसके बाद उन्होंने अपने लिए पंचपुरा भवन बनाया ।इस भवन से ही इस पूरे गांव का विकास हुआ।पहले इस कोठी कहते थे धीरे धीरे ये गाँव पूरे इलाके में प्रसिद्ध हो गया और कई और गांवों में भी इसी तकनीक से भवन बनने लगे और पूरे बनाल पट्टी का ये सबसे लोकप्रिय गाँव बन गया।

कोटि बनाल गांव का एक हजार साल पुराना है पंचपुरा भवन
कोटी बनाल गाँव में बने पंचमंजिला भवन देश और दुनिया के वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय है।और यहाँ कई भूकंप इंजीनियर भी शोध के लिए आ चुके है।उत्तराखंड के चमोली, उत्तरकाशी,रुद्रप्रयाग, बागेश्वर और पिथौरागढ़ जिले भूकंप की दृष्टि से जोन 5 में आते है।इस कारण भूकंप का सबसे ज्यादा खतरा इन इलाकों में होता है।कोटी बनाल गाँव में भूकंप रोधी भवन बनाये गए गए।इन भूकंपरोधी भवनों की खासियत है कि इनमें लकड़ी,पत्थर प्रयोग किया गया है।

कोटी बनाल में जो भवन है उसे पहले देवदार की लकड़ी के डिजाइन से तैयार किया जाता है।देवदार की लकड़ी के चारों तरफ बड़े बड़े बीम तैयार किये जाते है फिर उसके बीच पत्थर की चिनाई की जाती है।स्थानीय भाषा में देवदार की लकड़ियों के जो जोड़ बनाये गए है उन्हें गुज्जा खूंटी कहा जाता है।कोटी बनाल गाँव में जो पंचपुरा भवन है उसके चारो कोने बराबर है और चारो दीवारों में ऊपर से नीचे लकड़ी लगाई गई है जिससे पूरे भवन में मजबूती आ जाती है।भूकंप आने पर ये देवदार के लकड़ियों के सहारे पूरा भवन मजबूती से खड़ा होता है और भूकंपीय ऊर्जा को जमीन में स्थान्ततित कर देता है।भवन के मालिक कहते है कि जब उत्तराखंड में गोरखों का राज था तो उन्होने इस भवन को बम से उडाने की कोशिश की लेकिन कामयाब नही हुए।इस भवन की पांचवी मंजिल से पूरे इलाके के दर्शन होते है।भवन के नीचे से एक गुप्त मार्ग है जो सीधे नदी में जाता है।आईआईटी और उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग ने जब यहां शोध किया तो पाया कि भवन की आयु एक हजार वर्ष है।
कोटि बनालगांव – देवलांग के लिए भी जाना जाता है

कोटी गाँव बनाल पट्टी का सबसे बड़ा गाँव है। इसी पट्टी के नाम से इस गांव को कोटि बनाल भी कहा जाता है। इस गाँव में प्राचीन पंच कोटी का भवन है जो इस इलाके में विख्यात है।समय के साथ बाद में 4 मंजिला,3 मंजिला और फिर 2 मंजिला भवन बनने लगे।गाँव का इतिहास करीब एक हजार साल पुराना है।गाँव में सड़क,बिजली और संचार की सुविधा भी है।गाँव में बैंक और पोस्ट ऑफिस भी है और एलोपैथिक हॉस्पिटल की भी सुविधा है।गाँव की एक और खासियत है कि यहाँ चारों दिशाओं में पानी की जलधाराएं है।पूर्वजो ने इस गाँव को बसाने से पहले काफी अध्ययन किया।

कोटी बनाल में देवलांग और शिवरात्रि बड़े ही देवधाम के साथ मनाया जाती है।देवलांग पर्व में दुनिया की सबसे बड़ी मशाल बनाई जाती है।गढ़वाल में मंगशीर की दीवाली के दिन आस पास के करीब 50 गांवो के लोग इस दिन देवलांग मनाने कोटी बनाल गाँव पहुचते है।देवलांग में देवदार के पेड़ की मशाल बनाई जाती है।और फिर उसके बाद रासो,तांदी लोक नृत्य करते है।इस पंचपुरा भवन की तर्ज पर ही देहरादून में बीजेपी का मुख्यालय बनाया जा रहा है।अगर आप पहाड की भवन वास्तुकला के शौकीन है तो फिर इस गांव में जा सकते है।
कोटि बनाल गांव कैसे पहुचें-
इस गांव में पहुचने के लिए नजदीकी हवाईअड्डा जौलीग्रांट है।उत्तरकाशी जिले की यमुनाघाटी में बडकोट तहसील से मात्र 12 किमी की दूरी पर गांव बसा है।इस गांव में जाने के लिए देहरादून-मसूरी-नौगांव और बडकोट होते जा सकते है जबकि दूसरा मार्ग ऋषिकेश-चम्बा-धरासू बैंड से यमुनोत्री धाम हाईवे पर बडकोट से आगे कोटि बनाल गांव जाना है।
संपर्क सूत्र-ईलावर रावत:7895111614
Very nice …keep up the good work if you mention the homestays and attractions around it will be helpful..
Thanks
thank you urmila ji