बेजुबान की जान इतनी सस्ती तो नही

केदारनाथ पैदल मार्ग में घोड़े खच्चरों की मौत रुक नही रही है। सोनप्रयाग से केदारनाथ धाम तक समान और हजारों यात्रियों को ले जा रहे घोड़े खच्चरों की मौत ने पूरे यात्रा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए है। हर दिन पैदल मार्ग में 2 से 3 खच्चर मर रहे हैं। प्रशासन और पशुपालन विभाग की कोशिश के बाद भी खच्चरों की मौत नही रुक रही है। विभाग के आंकड़े बताते है कि अभी तक 134 घोड़े खच्चर ही मरे हैं लेकिन पैदल मार्ग में घोड़े खच्चर मालिको से बातचीत के बाद हकीकत कुछ और ही पता चलती है। यात्रा शुरू होने से पहले ही घोड़े खच्चरों की मौत शुरू हो गई थी।
केदार यात्रा की लाइफलाइन है घोड़े खच्चर
वर्तमान समय में केदारनाथ धाम में यात्रियों की जान ही नही जा रही है बल्कि बेजुबान घोड़े खच्चर भी अकाल मृत्यु के शिकार हो रहे हैं उनकी मृत्य के कई कारण है लेकिन प्रशासन और घोड़े खच्चर के संचालक सबसे ज्यादा इसके लिए जिम्मेदार है। घोड़े खच्चर पूरे यात्रा की लाइफलाइन है। हजारों परिवार इन घोड़े खच्चरों से पल रहे है।

पूरा समान केदारनाथ धाम इन्ही घोड़े खच्चरों की बदौलत पहुँचता है। एक तरह देखे तो ये भगवान श्री केदारनाथ के असली दूत हैं जो भक्तों को भोलेनाथ से मिलाते है। घोड़े खच्चर ना सिर्फ यात्रियों को केदारपुरी तक लाते है बल्कि सारा सामान भी पहुँचाते है। घोड़े खच्चरों में सामान सोनप्रयाग और गौरीकुंड से आता है। सोनप्रयाग से 21 किमी और गौरीकुंड से 16 किमी की चढ़ाई को पार कर घोड़े खच्चर केदारधाम में सामान और यात्रियों को लाते है। यात्रा मार्ग में बारिश ना होने से घोड़े खच्चरों में लगी लोहे की नाल पत्थरों पर टकराकर फिसलन करती है।
आखिर इनकी मौत का जिम्मेदार कौन ?
यात्रा शुरू हुए मात्र 32 दिन में 134 से ज्यादा घोड़े खच्चरों की मौत ने कई सवाल खड़े कर दिए है। क्या घोड़े खच्चरों का मेडिकल नही किया जा रहा? आखिर पशु चिकित्सक यात्रा से पहले ही तैनात क्यों नही किये गए। घोड़े संचालक आखिर सही खाना क्यों नही दे रहे? जबकि घोड़े खच्चरों की मौत यात्रा शुरू होने से पहले ही शुरू हो गई थी। पशु चिकित्सकों की माने तो खाने की डाइट की कमी से कई घोड़े की मौत हो रही है।

जब वो यात्रा से पहले आते है तो घास खाते है लेकिन यहाँ उन्हें, गुड़, चना, भूसा जो सूखा होता है वही खिलाया जा रहा है इससे घोड़े खच्चरों के पेट में गैस और दर्द उत्पन्न हो रहा है अंत में खच्चरों का पेट फूल जाता है और उनकी मौत हो रही है। कई घोडो को ज्यादा काम कराने के कारण मौत हो रही है। हमने पशु चिकित्सक से भी जाना तो उन्होने ऑफ रिकॉर्ड बताया कि मौत ये प्रमुख वजह है।
घोड़े खच्चरों का सही आंकड़ा नही है मालूम
केदारनाथ धाम में 5 हजार घोड़े खच्चर ही पंजीकृत है इनमें से करीब 4 हजार यात्रा संचालन कर रहे है। लेकिन हकीकत में इनकी संख्या 10 हजार से अधिक है। खच्चर मालिक राहुल बताते है वे अपने घोड़े की डायट का पूरा ध्यान रखता हूँ। गुड़, चना के साथ हर दिन घास भी खिलाता हूँ। चंपावत से अपने खच्चर लेकर आये सुंदर सिंह ने कहा कि ज्यादा दौड़कर चलाने उन्हें एक दिन में 2 से 3 चक्कर कराने के कारण ये मौत हो रही है। केदारनाथ में घोड़े खच्चरों की मौत पर श्रद्धालु भी चिंतित है।

मुम्बई से आई दिशा ने कहा कि वो घोड़े पर नही बैठना चाहती थी पैदल ही चलकर केदारनाथ धाम की करना चाहती थी लेकिन चढ़ाई काफी मुश्किल थी इसलिए घोड़ा किया लेकिन वो 2 बार गिर गया। दिल्ली से आई पूजा ने कहा कि घोड़े खच्चर के मालिक केवल एक ही चक्कर लगाए जिससे उन्हें आराम मिल सके। गुजरात से आई प्रकाश ने कहा कि घोड़े खच्चर तो बाबा भोलेनाथ के असली वाहक है जो हमे यह कठिन यात्रा करवा रहे है और असली पुण्य कमा रहे है उन्होंने प्रशासन और पीएम मोदी ने आग्रह किया कि बेजुबान की मौत ना हो भविष्य में इसके प्रबंध किए जाएं।
Sach puchhe to tirth yatra sirf paidal karna hi thik hai.
Bejuban janwar par sawar ho kar, unke maliko ko jyada paise ka lalach de kar hum log hi unke maut ke karn bane hai.
Ek samay tha jab log khud mehnat karke in dham tak pohunchte the. Aajkal paison ke dum par.
Kya bhagwan aisi bhakti swikar kar lete hain?