
केदारनाथ में नया खतरा मंडरा रहा है। यह खतरा प्राकृतिक नही बल्कि मानवीय खतरा है। केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे बड़े स्तर पर ग्लेशियर क्षेत्र में खनन किया जा रहा है। यह खनन पिछले 6 सालों से लागातर जारी है। पूरे केदारपुरी में जो भी निर्माण कार्य किया जा रहा है वह इसी इलाके में हो रहे खनन से किया जा रहा है। ग्लेशियर वैज्ञानिकों के साथ ही स्थानीय तीर्थ पुरोहितों ने इसका विरोध शुरू कर दिया है।
चोराबाड़ी ग्लेशियर में हो रहा है खनन

2013 की हिमालयन सुनामी को ज्यादा समय नही हुआ है। 2013 में चोराबाड़ी ताल फटने और अतिवृष्टि से केदारपुरी का बड़ा क्षेत्र तबाह हो गया था। लेकिन सरकार ने इतनी भीषण तबाही के बाद भी कोई सबक नही लिया। मंदिर से ठीक पीछे चोराबाड़ी ग्लेशियर का मोरेन क्षेत्र में लागातर खनन किया जा रहा है। ग्लेशियर वैज्ञानिक डॉ डीपी डोभाल ने इसे बेहद चिंताजनक बताया है। 2003 से डॉ डोभाल में इस इलाके में शोध किया है। उनकी माने तो जिस इलाके में खनन किया जा रहा है। वह अभी तक नेचुरल बैरियर्स का कार्य करता रहा है और यह पूरा इलाके ने चोराबाड़ी ग्लेशियर के मोरेन को रोक कर रखा हुआ है।

मंदिर प्रांगण से ठीक आधे किमी पीछे चोराबाड़ी ग्लेशियर और कंपेनियन ग्लेशियर के बीच सालो से सेफ्टी दीवार की तरह एक छोटा पहाड़ खड़ा है जो चोराबाड़ी ग्लेशियर का मोरेन है।ऐसी क्षेत्र में लगातार खनन किया जा रहा है जो भविष्य में पूरी केदारपुरी के लिए घातक है। डॉ डोभाल कहते है कि मध्य भाग ने पूरे चोराबाड़ी ग्लेशियर को रोक रखा है अगर यह टूटा तो पूरा ग्लेशियर और बड़े बड़े बोल्डर नीचे आ जाएंगे।
ग्लेशियर में लागातर बनती है कई झीलें
किसी भी ग्लेशियर के दो पार्ट होते है एक जहाँ सर्दियों में बर्फ जमा होती है उसे accumulation (संचय क्षेत्र) और जहाँ से मेल्टिंग होती है उसे ablation(निर्वहन क्षेत्र) कहते है। डॉ डोभाल कहते है कि पहले चोराबाड़ी और कंपेनियन ग्लेशियर एक ही थे। बाद में दोनो अलग अलग हो गए। ग्लेशियर पहले रामबाड़ा तक था। चोराबाड़ी ग्लेशियर करीब 7 किमी तक फैला है जबकि कंपेनियन ग्लेशियर डेड हो चुका है। चोराबाड़ी ग्लेशियर में अभी भी एक्टिव है जिसमें कई झीले बनती रहती है। डॉ डोभाल कहते है कि अभी तक मंदिर के पीछे मोरेन की दीवार खड़ी है अगर यह नेचुरल दीवार खत्म हुई तो भविष्य में तबाही हो सकती है। केदारनाथ मंदिर के दोनों तरफ भी मोरेन क्षेत्र है।

U आकार में फैली है केदारनाथ घाटी
केदारघाटी U शेप में फैली हुई है। सालों तक केदारनाथ मंदिर के आस पास भी ग्लेशियर रहा। वर्तमान में जो मंदिर प्रांगण है वो ग्लेशियर द्वारा लाया गया डिपाजिट है जो आज भी समतल नही है। डॉ डोभाल कहते है कि खतरा केवल एक ही है कि मंदिर के पीछे कोई भी छेड़छाड़ ना की जाए। इसके आलावा मधु गंगा और दूध गंगा भी भविष्य में खतरा पैदा कर सकते है। इसलिए लगातार इस क्षेत्र में निगरानी और शोध जरुरी है।

तीर्थ पुरोहित भी कर रहे है मंदिर के पीछे खनन का विरोध
केदारनाथ तीर्थ पुरोहित लागातर इस स्टोन क्रेशर का विरोध कर रहे है। केदार सभा के अध्यक्ष विनोद शुक्ला कहते हैं कि कई बार प्रशासन को इसकी जानकारी दी जा चुकी है। तीर्थ पुरोहित संतोष त्रिवेदी कहते है कि वैसे केदारनाथ जैसे अति संवेदनशील जगह पर किसकी अनुमति से पूरा स्टोन क्रेशर प्लांट लगाया गया है और आखिर क्यों ग्लेशियर के मुहाने को खनन किया जा रहा है।

वे कहते है 2013 में तो कुछ भी नही किया गया था उसके बावजूद यहाँ इतनी पड़ी त्रासदी आई। अब अगर ग्लेशियर पर ही खनन किया जा रहा है तो इनके परिणाम गंभीर होंगे। वे कहते है कि राज्य सरकार ने इसे बंद नही किया तो यह बड़ी त्रासदी का कारण बनेगा। संतोष त्रिवेदी ने कहा कि जब उनके पूर्वजों ने यहाँ पर मकान बनाये तो उन्होंने ने भी केदारनाथ में कोई छेड़छाड़ नही की।
Aapka video bhi dekha aur ander se bahut aahat mahsoos hua.
Kuch sal baad ye Kedarnath dham agar zameen ke niche chala jaaye landslide aur flash flood aa kar to kya uski bhi dosh kisi Mughal par thop diya jayega?
2013 jaisa nahi, usse bhi bhayankar ho sakta hai human interference ka asar.
Umeed hai desh aur rajya ke sarkar ek din samajh payenge.
Kedarnath dham me jo kaam chal raha hai usse sirf dham ko hi nahi, nichle hisse aur glacier ko bhi nuksan ho raha hai.
Human interference se jo temperature rise hota hai usse us poore region ko khatra hai.
Aapka video jyada log dekhe yehi meri prarthna hai ta ki jyada log iske baare me jaane.