उत्तराखंड 53500 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ प्रदेश है।पूर्व में काली नदी से लगे नेपाल का बॉर्डर है तो पश्चिम में टोंस नदी से हिमांचल प्रदेश की सीमा उत्तराखंड से मिली है।325 किमी ली लंबाई में बसे उत्तराखंड हिमालय में 10 प्रतिशत भूभाग बर्फ और ग्लेशियर से ढका हुआ है।उत्तराखंड में 4 बड़े नदी समूह है जिनमे यमुना,भागीरथी,अलकनंदा और काली नदी प्रमुख है।2013 की आपदा के बाद इन सभी नदियों के जल संग्रहण क्षेत्र आपदा की दृष्टि से ज्यादा कमजोर और नाजुक हो चुके है।केदारनाथ मंदिर मंदाकिनी नदी के उद्गम में स्थित है जो अलकनंदा की सहायक नदी है और 2013 में सबसे ज्यादा यही पर मानव और आर्थिक क्षति हुई थी।

मंदाकिनी नदी चोराबाड़ी ग्लेशियर से निकलती है।इसमें कई नदियों मिलती है जो रुद्रप्रयाग में अलकनंदा नदी में मिल जाती है।इसकी टोपोग्राफी काफी जटिल है जो ऊँचे 3 दिशाओं से ऊंची ऊंची पर्वतों से घिरा है जबकि चोराबाड़ी और कम्पेनियन दो ग्लेशियर और मोरेन क्षेत्र है।

केदारनाथ मंदिर मंदाकिनी नदी के किनारे बसा हुआ है और केदारघाटी का कुल क्षेत्र रामबाडा से आगे 67 वर्ग किमी है।केदारघाटी का 23 प्रतिशत क्षेत्र बर्फ से ढका रहता है।यह घाटी अंग्रेजी के U आकृति में बसी है।यह घाटी 2740 से 6578 मीटर के बीच में स्थित है जिसमें विभिन्न प्रकार के फ़्लोरा और फौना मौजूद है।भरत खूंटा(6578) केदारनाथ(6940),महालय पीक(5970) और हनुमान पीक(5320) प्रमुख चोटिया है।मंदाकिनी नदी चोराबाड़ी ग्लेशियर से निकलती है जिसमें कम्पेनियन ग्लेशियर से सरस्वती नदी मिलती है।इसके अलावा मधु गंगा और दूध गंगा भी इसमें शामिल होती है जो मंदाकिनी नदी के प्रमुख सहायक नदियां है।केदारनाथ क्षेत्र ग्लेशियर के रिसाव और बोल्डर के डिपाजिट से बनी हुई है।मंदिर दोनो ग्लेशियर के आउटवाश प्लैन में स्थित है।हर साल मंदाकिनी और सरस्वती नदी अपने किनारे को काट रही है।2013 के बाद ये दोनो नदियों के किनारे और भी कमजोर हो चुके है।रामबाडा,गौरीकुंड और सोनप्रयाग भी नदी द्वारा लाए कमजोर बोल्डर और बलुई मिट्टी पर बसे है।

वाडिया संस्थान ने केदारनाथ आपदा के बाद एक शोध किया जिसमें बिरबल साहनी संस्थान लखनऊ,गढवाल विवि,फिजीकल रिसर्च लैबोरेटरी अहमदाबाद और नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी नई दिल्ली के वैज्ञानिक शामिल थे।वैज्ञानिकों ने केदारनाथ में करीब 130 सैम्पल एकत्रित कर पांच प्रयोगशालाओं में भेजे।इस रिपोर्ट में इसका भी उल्लेख किया गया कि वैश्विक जलवायु का केदारनाथ धाम पर क्या असर पडा।भू वैज्ञानिकों ने केदारनाथ के 10 हजार सालों का जलवायु का रिकार्ड हासिल किया।इस रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि केदारनाथ में जलवायु परिवर्तन का असर पहले भी था।वाडिया संस्थान के पूर्व ग्लेशियर वैज्ञानिक डॉ डीपी डोभाल ने कहा कि 2013 की आपदा के बाद वैज्ञानिकों ने केदारनाथ में भारी निर्माण कार्य ना करने की नसीहत दी थी लेकिन हुआ बिल्कुल अलग।केदारनाथ में जो भी कार्य हो रहे है उसके दुष्परिणाम जल्द दिखाई देंगे।

वाडिया हिमालयन भू विज्ञान संस्थान ने आपदा के बाद जो सुझाव पुनर्निर्माण के लिए दिए धरातल पर उनपर कोई अमल नही हुआ।वाडिया संस्थान के वैज्ञानिकों ने कहा था कि जो मलबा और बोल्डर आपदा के बाद आया है उसे ना छेड़ा जाए।भू वैज्ञानिक पीएस नेगी ने कहा कि मंदिर के आस पास किसी भी तरह का निर्माण कार्य नही किया जाए।मंदिर के पीछे और आस पास ग्लेशियर मलबा के साथ छेड़छाड़ ना की जाए।केदारनाथ मंदिर में कोई निर्माण कार्य बिना एक्सपर्ट जियोलॉजिस्ट की राय ली जाए।

भूवैज्ञानिक डॉ एमपीएस बिष्ट ने कहा कि केदारनाथ आपदा के बाद केदारपुरी में कई नए भूस्खलन क्षेत्र चिन्हित हो गए है जो भविष्य में कभी भी तबाही ला सकते है।वैसे भी केदार मतलब दलदल होता है और वैज्ञानिक शोध से पता चला है के केदारनाथ के नीचे दलदल भूमि है।केदारनाथ धाम में मंदाकिनी और सरस्वती नदी के अलावा दूध गंगा और मधु गंगा नदी में भी काफी पानी रहता है।इसके अलावा रामबाडा से केदारनाथ मंदिर तक नए पैदल मार्ग पर कई एवलांच पॉइंट है।कुल मिलाकर पिछले 7 सालों से लागातर हो रहे भारी निर्माण कार्य ने केदार की धरती पर नई आपदा के संकेत दे दिए है।
भाई संदीप जी आपने बहुत अच्छी जानकारी दी है। वास्तव में कहीं अति विकास विनाश का कारण न बन जाए।नीति नियन्ताओं को इस पर विचार करना चाहिए कि प्रकृति से अधिक छेड़छाड़ नहीं की जाए। आप ऐसे ही मुद्दे उठाते रहिए आपका कार्य सराहनीय है।
धन्यवाद। ठीक है
ये एक बहुत अच्छी खबर है ।
इस website के माध्यम से जानकारी और दुरुस्त हो जाएगी । बहुत अच्छे संदीप जी धन्यवाद ।
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संदीप जी सर आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं, आप यूं ही प्रगति करते रहे हमारी दुआए आपके साथ है। आपको बहुत बहुत धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद.
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद|