
आपने हिमाचल प्रदेश के मंडी , कुल्लू, शिमला, किन्नौर शहरों में बने भव्य नक्काशीदार मंदिरों के दर्शन जरूर किये होंगे। इन मंदिरों को बनाने वाले देवशिल्पी मंडी जिले के सिराज क्षेत्र में रहते है। मंडी जिले के जेहरा धनोट गाँव देवशिल्पियों के गॉंव के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ भारद्वाज जाति के लोग सदियों से मंदिर निर्माण का कार्य कर रहे है।
पीढ़ी दर पीढ़ी सीख रहे है यह कार्य
जेहरा गाँव के जीवन चंद्र भारद्वाज कहते है कि 9 साल की उम्र में उन्होंने अपने ताऊ और दादाजी से यह कला सिखी।

हिमाचल में मंदिरों की कई शैलियां प्रसिद्ध है जिनमे काष्ठकोणी, पैगोडा शैलियां प्रमुख है। जीवन भारद्वाज बताते है कि बचपन से ही उन्हें मंदिर निर्माण का पुश्तैनी कार्य पसंद आया। जीवन भारद्वाज बताते है कि उनके 3 बेटे है और तीनों इस कार्य में जुटे है। देवताओ के मंदिर निर्माण करना बड़े सौभाग्य की बात है।
जेहरा गॉंव हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के सराज ब्लॉक में स्थित है। जो मंडी से जिले की बालाचौकी तहसील से 25 किमी की दूरी पर बसा है। जेहरा गाँव आने के लिए आपको थलौट से दूरी 26 किमी की दूरी तय करनी होगी जो कि यहाँ पहुचने का दूसरा मार्ग है। इस गॉंव में भारद्वाज जाति के लोग मंदिर निर्माण शैली में पारंगत है। गाँव में करीब 40 परिवार है। लगभग सभी का प्रमुख व्यवसाय मंदिर निर्माण ही है।
किन किन मंदिरों का निर्माण किया है?

इस गॉंव के लोगों में लकड़ी के नक्काशी के मंदिरों का निर्माण किया है। थनॉट में विष्णु मंदिर, जेहरा गाँव में विष्णु भगवान जूही में विष्णु, चौथ विष्णु मतलौडा, शितवाड़ी में विष्णु, स्यालगाड़ में चिंज्वाला देवता, नारायनमन में माता अम्बिका माता का मंदिर बनाया गया है। इसके अलावा यहाँ के कारीगरों द्वारा उत्तराखंड के मोरी ब्लॉक के दोणी गाँव में भी शेरकुड़िया महाराज का मंदिर बनाया जा रहा है।
कैसे बनाये जाते है लकड़ी के मंदिर?
सबसे पहले मिट्टी और पत्थरों की फॉउंडेश तैयार की जाती है। उसके बाद देवता द्वारा बताये गए वास्तु के आधार पर ही गर्भ गृह तैयार किया जाता है। गर्भ गृह का वर्गाकार, त्रिभुज, अष्टभुज ही मुख्य होते है। मंदिर की पहली मंजिल बनाने के बाद दूसरी मंजिल तैयार की जाती है और मंदिर की छत गोलाकार और त्रिभुज आकर में बनाई जाती है।

धनोट गॉंव हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में स्थित है। इस गॉंव की मंडी से दूरी लगभग 100 किमी है। यह गाँव सोमगड़ पंचायत का हिस्सा है जबकि ब्लॉक बाड़ीचौकी है। समुद्र तल से धनोट गाँव लगभग 2600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस गाँव लोगों का मुख्य बाजार मंडी है। गॉंव में प्राथमिक स्कूल है। गाँव से करीब 6 किमी की दूरी पर थाची कस्बा है जहाँ इंटरमीडिएट कॉलेज और हॉस्पिटल की भी सुविधा है। इस इलाके में संचार की सुविधा भी है।
धनोट गाँव में भी है देवशिल्पी

धनोट गाँव देवशिल्पियों का गाँव है। इसके अलावा जेहरा गाँव में भी देवशिल्पी है। स्थानीय लोग बताते है कि लकड़ी में नक्काशी का कार्य उनके पूर्वजों से उन्होंने सीखा है। प्राचीन काष्ट कुणी शैली के मंदिरों को बनाने में करीब 2 से 5 साल लगते है। इन मंदिरों में सीमेंट वर्जित होता है। पहले स्थानीय पत्थरो से बेस तैयार किया जाता है उसके बाद लकड़ी का ढाँचा तैयार किया जाता है। यह ढाँचा देवदार की लकड़ी का होता है। इस ढांचे की पहली मंजिल के बाद दूसरी मंजिल में देवता होते है और वहाँ जाने के सीढ़ी लगी होती है जिस मंदिर में दो से तीन मंजिला है उसे देवरा कहा जाता है।
मंदिर का मुख्य द्वार होता है आकर्षक

मंदिर का सबसे आकर्षक मुख्य द्वार होता है। मुख्य द्वार में देवदार की मोटी लकड़ियों में अलग अलग देवी देवताओं की आकृति बनाई जाती है। इन आकृतियों में भगवान विष्णु, गणेश, दुर्गा, भगवान शिव, हनुमान और स्थानीय देवताओ की मूर्ति लकड़ी में तराशी जाती है। इसके अलावा हाथी, मोर, बंदर, साँप, की आकृति बनाई जाती है।
सेब के बगीचों से महक उठे है गाँव के बगीचे

जेहरा गाँव में सेब की खेती की जाती है। यहाँ हिमाचल के अन्य गांवों की तरह आलू, राजमा और मटर की खेती की जाती है।जेहरा गाँव छल्ली(मक्का), गेंहूँ, कैश क्रॉप भी होती है लेकिन खेतो में साल भर एक ही खेती की जाती है। जेहरा गाँव में सर्दियों के समय काफी ठंड होती है। मंडी, कुल्लू जिले सहित ऊपरी इलाको में ठंड से बचने के लिए तंदूर जलाए जाते है जिसमे खाना भी बन जाता है। सर्दी के समय सिडे बनाये जाते है। सिडे में आलू और अखरोट का मिश्रण कर भाप में मोमो की तरह पकाया जाता है। इसी तरह भल्ले भी बनाये जाते है।

इस इलाके में सर्दियों के मौसम में कुक्स की सब्जी बनाई जाती है। जिसे कंडाली या बिच्छु घास कहते है। जेहरा समुद्र तल से लगभग 2500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ पर्यटन की अपार संभावनाएं है। जेहरा गाँव से 3 किमी की दूरी पर शेटाधार एक रमणीक जगह है। यहाँ पर शेटी नाग का मंदिर है। जेहरा देवदार, कैल, तोश, रई के पेड़ के बीच स्थित है। इस गाँव में पेयजल की काफी दिक्कत है। गर्मियों में यहाँ सेब की फसल के लिए भी पेयजल संकट बढ़ जाता है। गाँव में जल के स्रोत को बावड़ी कहते है।

जेहरा गाँव में स्थानीय व्यंजन जिसे सीड़ा कहते है वो खास तौर पर सर्दियों में खाया जाता है। ऐसे बनाने के लिए सबसे पहले आटा गूँथा जाता है। आटा गूंथने से पहले थोड़ा ईस्ट मिला लिया जाता है जिससे कि आटा पकने के समय फूल जाए। गूंथने के बाद उसे एक घंटे के लिए छोड़ देते है। अब मोमो बनाने की तरह मसाला तैयार किया जाता है जिसमे आलू और पिसा हुआ अखरोट का मसाला तैयार किया जाता है जिसे भेड़ी कहा जाता है। अब मोमो ली तरह उन्हें बनाकर भाप में पकाया जाता है।सीड़ा को भाप में करीब आधा घंटा पकाया जाता है और फिर तैयार है गर्मागरम सीडे जो सर्दियों में आपको गर्म रखते है। इसे दूध और घी के साथ खाया जाता है।
संपर्क सूत्र
संसार चंद्र भारद्वाज – 9816706529
अमरनाथ – 8091726121
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