उत्तराखंड सहित हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर में इस साल कई बार हुई बर्फबारी ने प्राकृतिक जलस्रोत को रिजार्च कर दिया है। अभी तक करीब 4 बार हिमालयी राज्यों में पश्चिमी विक्षोभ के कारण बर्फबारी हो चुकी है। लगातार हो रही बर्फबारी से ना सिर्फ एशिया का वाटर हाऊस हिमालय की चोटियां बर्फ से लदगत है बल्कि गर्मियों में पेयजल की किल्लत और जंगलों में लगने वाली आग में भी भविष्य में मदद मिलेगी साथ ही ग्लेशियर के स्वास्थ में भी इजाफा होगा।
उत्तराखंड में 968 ग्लेशियर और सैकडों बुग्यालों में जमी बर्फ की सफेद मोटी चादर गर्मियों में राहत देगी ना सिर्फ उत्तराखंड के जंगलों, नदियों में पानी का संचार होगा बल्कि उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, हरियाणा, पश्चिम बंगाल सहित देश की आधी आबादी भी इसी हिमालय से पेयजल, बिजली और सिंचाई के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

ग्लेशियरों की पिघलने की दर इस बार कम होगी

पिछले 10 सालों में ऐसा नही है कि हर साल हिमालय में अच्छी बर्फबारी हुई है।2013 में आए विनाशकारी जल प्रलय के बाद 2014-15 में भी हिमालय में बहुत ज्यादा बर्फबारी हुई थी। केदारनाथ धाम में ही करीब 5 फीट तक बर्फ गिर गई थी।2019-20 में भी करीब 1400 मीटर तक बर्फबारी रिकार्ड की गई।इस साल हिमालय में 8 बार बर्फबारी रिकार्ड की गई। सालों से मसूरी, नैनीताल, राखीखेत, लैंसडाऊन जैसे मध्य हिमालय में अच्छी बर्फबारी हई जिसने ना सिर्फ पुराने स्प्रिंग को रिचार्ज कर दिया बल्कि नदियों, जंगलों, बुग्लायों और ग्लेशियर के स्वास्थ्य में भी इजाफा किया। हिमालय में स्थित ग्लेशियरों के लिए ये बर्फबारी वरदान साबित हो रही है।
वाडिया इन्ट्यूटिट आफ हिमालय जियोलाजी में वरिष्ठ ग्लेशियर वैज्ञानिक रह चुके डाक्टर डीपी डोभाल की मानें तो इस बार बर्फबारी काफी अच्छी हुई है जिससे ग्लेशियर के ऊपर बर्फ की मोटी चादर बिछ गई है।गर्मियों के समय पहले बर्फ पिघलेगी और उसके बाद ग्लेशियर पिघलने शुरु होंगे।डा डोभाल ने कहा कि इस वर्ष नदियों में पानी का डिस्चार्ज भी ज्यादा होगा।


वही वाडिया संस्थान में कई ग्लेशियर पर शोध कर रहे वैज्ञानिक मनीष मेहता कहते है ग्लेशियर में इस वर्ष नमी ज्यादा रहेगी और बर्फबारी ज्यादा होने से ग्लेशियर की हेल्थ भी ठीक होगी लेकिन अगर इसी तरह की बर्फबारी 5 सालों तक लगातार होती रहे तो ग्लेशियर तब ग्लेशियर में बढोत्तरी हो सकती है।डा मेहता बताते है कि जब बर्फबारी ज्यादा होती है यह ग्लेशिर के ऊपर कवर बनाता है जबिक इस बर्फ को ग्लेशियर में बदलने के लिए समय लेता है।और यह करीब 5 से 10 साल का समय लेता है और यह तापमान और ताजी बर्फ के दबाव पर निर्भर करती है लेकिन अगर ज्यादा बर्फबारी होने के बाद गर्मियों में जंगलों की आग और तापमान में ज्यादा वृद्वि हुई तो फिर ताजी बर्फ पिघल जाएगी।
भारी बर्फबारी के बाद एवलांच का खतरा बढा
उत्तराखंड,हिमांचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर में हुई भारी बर्फबारी के बाद एवलांच का खतरा बढ गया है। वाडिया संस्थान में वरिष्ठ वैज्ञानिक डा डीपी डोभाल की मानें इस वर्ष कई बार बर्फबारी हो चुकी है जिससे उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी के बाद बर्फ की कई परत जम चुकी है।इन परतों में जब तापमान में भिन्नता होती और ऊपरें परतों के दबाव के बाद सबसे नीचे की परतें का अचानक मूवमेंट होगा तो एवलांच की संभावना बढ जाती है।डा डोभाल ने कहा कि केदारनाथ में भी एवलांच की संभावना काफी बढ गई है। केदारनाथ में अभी तक 8 फीट से ज्यादा बर्फबारी हो चुकी है।

2014-15 में भी केदारनाथ में ऐसी ही बर्फबारी हुई थी।केदारघाटी में रुद्रा प्वाईंट से रामबाडा तक कई एवलांच प्वाईंट है और केदारनाथ मंदिर के पीछे भी चोराबाड़ी और कम्पेनियन ग्लेशियर में कई एवलांच प्वाईंट है। ग्लेशियर वैज्ञानिक मनीष मेहता बताते है कि 2012-13 में भी हिमालय में ज्यादा बर्फबाही हुई थी और चोराबाडी ताल पूरी तरह भर गया था। 16-17 जून को जब अत्यधिक बारिश हुई तो ताल का मुहाना टूट गया और उनके वहां भारी तबाही मचाई।

आपको बताते चले कि हिमालय में 25 डिग्री पर कही पर भी एवलांच आ सकता है। एवलांच आने का सबसे बडा कारण स्लोप है जो उसके कैरिंग कैपेसिटी पर निर्भर करता जब अत्यघिक बर्फबारी होती है तो उसके बाद एयर बोर्न एवलांच की संभावना सबसे ज्यादा होती है जबकि गर्मियों के समय सीट एवलांच प्रमुख है। प्रदेश में यूं तो हिमालय में बर्फीली चोटियों में लगातार एवलांच आते रहते है लेकिन बर्द्रीनाथ हाईवे, मलारी हाईवे, फूलों की घाटी,हेमकुंड साहिब,केदारनाथ,गंगोत्री,यमुनोत्री प्रमुख घाटियां जहां एवलांच से सड़क,बिजली,संचार जैसी सुविधाएं ध्वस्त हो जाती है। कुमाऊं में पिंडारी. काली, दारमा और मिलम घाटियों में एवलांच की संभावना बढती। उत्तराखंड हिमालय में अभी बहुत कम शोध हो रहा है। वाडिया हिमालयन भू विज्ञान संस्थान के अलावा, गढवाल विवि, जीपी पंत हिमालय संस्थान, कुमाऊ विवि प्रमुख संस्थान हो जो ग्लेशियर पर शोध कर रहे है। वाडिया संस्थान चोराबाडी ग्लेशियर, द्रोणागिरि, गंगोत्री, ढोकरान और लद्दाख में कारिगल क्षेत्र में ग्लेशियर पर शोध कर रहे है।

बर्फबारी अच्छी होने से जंगलों में आग की घटनाओं में आएगी कमी
इस वर्ष हुई अच्छी बर्फबारी ने एक तरफ सेब की फसल अच्छी होने के साथ ही काश्तकारों के चेहरों पर रौनक ला दी है वही वन विभाग के अधिकारियों ने भी राहत की सांस ली है। दरअसल पिछले 5 सालों से लगातार जंगलों में आग की घटनाओं ने वन विभाग के लिए मुश्किलें खडी कर दी थी क्योंकि कम बर्फबारी के कारण जंगलों में नमी कम हो जाती है और फायर सीजन में आग की घटनाओं में बढोत्तरी हो जाती है।
2016 में उत्तराखंड के जंगलों में भीषण आग लग गई थी।हालात इतने बदतर हुए कि भारतीय वायुनेना की मदद लेनी पडी। 2020 में भी जंगलों में भीषण आग लगी और करोडों की वन संपदा स्वाहा हो गई। बर्फबारी के कई अच्छे स्पेल इस वर्ष आए है जिससे बुग्लायों और जंगलों में प्राकृतिक जल स्रोत रिचार्ज हो जाएंगे।वही पर्यावरण विशेषज्ञ जे पी मैठानी ने कहा कि इस बर्फबारी का असर गर्मियों में दिखाई देगा। उन्होने कहा कि हिमालय की सदानीरा नदियों में इस वर्ष जल प्रवाह ज्यादा होगा और गर्मियों में उत्तराखंड सहित पूरे उत्तर भारत में पेयजल किल्लत की ज्यादा समस्या पेश नही आएगी।

2 हजार मीटर से बर्फबारी पहाडों के लिए शुभ संकेत
पूरी दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग और क्लाईमेट चेंज का असर दिखाई दे रहा है। आज से 50 साल पहले देहरादून के राजपुर रोड तक बर्फ गिर जाती है।खुद राहुल सांस्कृत्यान ने अपनी गढवाल यात्रा में उत्तरकाशी में बर्फ गिरने का जिक्र किया है। 2019-20 में करीब 1200 मीटर तक बर्फ गिर गई थी। इस वर्ष भी पूरे प्रदेश में अच्छी बर्फबारी हुई है।
मौसम विभाग के निदेशक विक्रम सिंह ने कहा कि प्रदेश में इस वर्ष काफी अच्छी बर्फबारी हुई है और औसतन 1500 मीटर तक स्थित बर्फबारी हुई है। उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केन्द्र के निदेशक एमपीएस बिष्ट ने कहा कि अगर अगले 5 साल इसी तरह बर्फबारी होती रहे तो फिर ग्लेशियर और बुग्यालों का स्वास्थ्य बेहतर हो सकता है।
डा. बिष्ट ने कहा कि इस साल की बर्फबारी से प्राकृतिक जल स्रोत रिचार्ज हुए है क्योंकि पिछले कई वर्षो से सर्दियों में बर्फबारी काफी कम हो रही थी। मौसम विभाग के निदेशक विक्रम सिंह बताते है कि सर्दियों के समय हर 5-6 दिन में पश्चिमी विक्षोभ आता है लेकिन हर बार वह इतना ताकतवर नही होता लिहाजा जम्मू कश्मीर और हिमांचल के ऊपरी इलाके में बर्फबारी हो जाती है लेकिन उत्तराखंड में इसका असर नही पडता लेकिन जब पश्चिमी विक्षोभ ज्यादा मजबूत होता है तो फिरउत्तराखंड में भी अच्छी बर्फबारी होती है और इस बार लगातार ऐसा हो रहा है।
बुग्यालों में बर्फबारी से जडी बूटियों के उत्पादन में होगा इजाफा

बर्फबारी ज्यादा होने से ग्लेशियर ही नही बल्कि हिमालय एल्पाइन मिडो यानी बुग्लायों के लिए भी फायदेमंद होगा।
भारतीय वन्यजीव संस्थान में डीन डा. जीएस रावत की ने कहा हिमालय में स्थित बुग्यालों में कई बेशकीमती जडी बूटियां होती है और अगर बर्फबारी कम हो तो जडी बूटियों का उत्पादन सही से नही हो पाता या फिर ये जल्द खत्म हो जाती है। उच्च हिमालय क्षेत्रों में स्थित इन बुग्यालों में कई औषधीय जडी बूटियों को निश्चित समय तक शून्य से नीचे तापमान की आवश्यकता होती है।

वरिष्ठ भू वैज्ञानिक और जडी बूटियों पर शोध कर चुके डा. एमपीएस बिष्ट ने कहा कि जितनी बर्फ बुग्लायों में गिरेगी उतनी ही स्वस्थ जडी बूटियों का उत्पादन होगा।हिमालय में ब्रम्हकमल, फेनकमल, सूर्यकमल, आरचा, डोलू, अतीस, सालमपंजा, कीड़ाजडी और गुच्छी सहित सैकडों बेशकीमती जडी बूटियों के लिए बर्फबारी काफी फायदेमंद होती है।
पद्विभूषण और रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित पर्यावरविद चन्डी प्रसाद भट्ट ने कहा कि उच्च हिमालय क्षेत्रों में कई घाटियां है जहां पर स्थानीय लोगों की आर्थिकी का मुख्य कारण हिमालय में पाए जाने वाली जडी बूटियां होती है। उत्तरकाशी में निलांग घाटी, टिहरी में गंगा घाटी, रुद्रप्रयाग में केदार और मदमहेश्वर, चमोली में नीति, माणा, ऊर्गम, बागेश्वर में पिंडारी और पिथौरागढ में मिलम, व्यास, चौदार, दारमा घाटियों में बर्फबारी कम होने पर जडी बूटियों के उत्पादन नही हो पाता साथ ही इन इलाकों में इनकी खेती भी कम होती है। चन्डी प्रसाद भट्ट ने कहा कि भारी बर्फबारी इन घाटियों के लिए बेहद फायदेमंद है।
बर्फबारी के लिए जरुरी है नमी रखने वाले पेड़ो का अधिक संख्या में लगना, जैसे बांज बुरांस देवदार।
1200 मीटर से बांज के अच्छे जंगल तैयार किये जा सकते है। यहाँ तक की 1000 मीटर में भी यह ठीक से हो जाता है।
और आग से बचने हेतु चीड़ का कम होना भी बेहद जरुरी है। इन्होने उत्तराखंड के जंगलो का नाश मार दिया है।
बिल्कुल sunil ji
यह बहुत ही अच्छी खबर है। कुदरत अपना काम कर रही है हमें भी जल को समझदारी से इस्तेमाल कर प्रकृति का संतुलन बनाये रखना होगा।
हाँ जी!
Informative and well said. Hope more locals get involved with activities to protect their local environment and keep the larger aspect in shape. Thank you.
absolutely pravin ji and thank you
Very Good Information.
thank you Sushant Narabg ji
Sandeep Gusain ji namaskar! I see all your videos of you tube and appreciate your energy.I want that sometimes I will also join your mission .Thanking you.
thank you rakesh ji. Shure! your most welcome. you can join