हैंगिंग वैली में रोमांच और रहस्य से भरी मेरी हरकीदून यात्रा

बात 2010 की है जब मैं ईटीवी में स्ट्रिंगर हुआ करता था। गोविंद कपटियाल सर हमारे ब्यूरो चीफ हुआ करते थे। प्रोग्रामिंग के पूरे उत्तराखंड में करीब 14 से ज्यादा एपिसोड शूट करने थे और जिम्मा मुझे दिया गया था। पहला एपीसोड हरकीदून का था और कैमरामैन विभु कांडपाल….ये मेरी जिंदगी का पहला आउटडोर शूट था जिसमे खुद मुझे नही मालूम था कि कहा रुकेंगे और क्या क्या ले जाना है। लखनऊ से हमने एडवांस मंगाया और बाजार जाकर रेन कोट, प्लास्टिक की शीट, छाता और अन्य जरूरी सामान लेकर आ गए। घर से कंबल, गर्म कपड़े, कैमरा यूनिट ली और 6 सितंबर 2010 को करीब 2 बजे देहरादून से पुरोला के लिए निकल पड़े। हम खुद काफी डरे हुए थे क्योंकि पूरे प्रदेश में लागातर बारिश हो रही थी और कई जगह सड़कें लैंड स्लाइड के कारण बंद हो गई थी।
जब हम मसूरी से आगे बढ़े तो सेब के ट्रक मिल रहे थे जो कई दिनों से ऊपरी इलाको में फंसे हुए थे। पुरोला पहुचते ही रात हो गई। हमने पहले ही अनिल असवाल के फ़ोन पर पीडब्लूडी गेस्ट हाउस बुक करने को कह दिया। रास्ते में कई जगह लैंड स्लाइड आया था। खैर रात करीब ढाई बजे हम पुरोला पहुँचे। इस बीच हमने कई बार मौत को करीब से देखा जब हमारी गाड़ी के आगे ही लैंड स्लाइड हो गया। मैंने विभु भाई से कहा कि क्या करे। तो वह बोले अब तो ओखली में सर डाल दिया है देखी जाएगी। मेरी शादी को एक साल हुए थे और वाइफ कोटद्वार थी। वो लगातार फोन करती कि कहाँ पहुँचे।

विभु कैमरा की दुनिया में एक ऐसा चेहरा था जिसे सभी पहचानते थे। श्रीनगर गढ़वाल विवि में जब हम 2006 में पढ़ाई कर रहे थे तो विभु उस समय कैमरामैन थे। अब खुद सोचिए कि वो हमसे कितने सीनियर रहे होंगे। खैर अगले दिन हमने पुरोला बाजार से और खरीदारी की और कुछ और खाने पीने का सामान लेकर हम आगे निकल गए। बारिश अभी भी लागातर हो रही थी।हमारे साथ दैनिक जागरण से फोटोग्राफर अरुण सिंह भी शामिल थे। अब हम सोच रहे थे कि इतना लंबा सफर कैसा पूरा होगा और इतनी बारिश में शूट कैसे होगा। लेकिन अब इंद्रदेव पर ठीकरा फोड़ने से क्या फायदा। इस टूर में विभु और मैं तो थे ही एक जाँबाज फोटोग्राफर अरुण भी था। हमारे पास समान काफी था इसलिए हम ये सोच रहे थे कि इतना लंबा सफर कैसे तय करेंगे।
पुरोला से हम आगे बढ़े तो मोरी कस्बा पड़ता है जहाँ से एक रोड आराकोट के लिए निकल जाती है और दूसरी हरकीदून के लिए।मोरी से आगे टोंस नदी का रौद्र रूप बता रहा था कि उच्च हिमालयी इलाको में कितनी बारिश हो रही है। विभु और अरुण दोनों ये सोच रहे थे कि आज की रात कहाँ रुकेंगे। मोरी से आगे सकड़ कई जगह टूटी हुई थी और कई स्थानों पर गदेरे सड़क पर आए थे। अब मोरी से आगे नैटवाड़ कस्बा आया जहाँ पर रूपिन सूपिन नदी आकर मिलती है और पोखु देवता का मंदिर है।नैटवाड़ में थोड़ी देर के लिए रुके और पोखु देवता के दर्शन कर वापस अपने आज के सफर पर लौट आये। हमें आज साँकरी पहुँचना था और फिर वहाँ से तालुका पहुँचना था।

पुरोला में हमने गोविंद नेशनल पार्क के उपनिदेशक से फ़ोन पर बात कर ली थी लिहाजा हमें उम्मीद थी सब ठीक होगा। करीब 2 बजे हम साँकरी से पहले करीब 3 किमी पहले पहुँच गए। यहाँ पर फफराला नाला जो काफी खतरनाक होता है उसने सड़क बंद कर दी लिहाजा अब वक्त आ गया कि हम अपनी गाड़ी को अलविदा कह दें। क्योंकि अगले 6 दिन तक हमे केवल पैदल चलना था। हमने अपना सारा सामान निकाल लिया और गाड़ी वाले को विदा कर दिया लेकिन हम समान के साथ उस खतरनाक नाले को कैसे पार करते। उस जगह पर कुछ ग्रामीण खड़े थे उन्होंने कहा कि वे हम सभी को नाला पार कर देंगे।इसके बदले उन्होंने 300 रु लिए। खैर मरता क्या ना करता हमने समान उसके पास दिया और फिर धीरे धीरे आगे बढ़ने लगे।फफराला नाला पूरी हरकीदून और जखोल क्षेत्र के करीब 24 गांवो के लिए बरसात के समय नासूर बना रहता है।
बड़ी मुश्किल से हमने नाला पार किया। स्थानीय लोगों ने नाले के दोनों तरफ एक रस्सी बांधी हुई थी जिसे पकड़कर पार करना था। पार करने के बाद हमने साँकरी के लिए एक लोकल गाड़ी में बैठे और करीब ढाई बजे साँकरी पहुँचे। साँकरी में हम तीनो ने खाना खाया और फिर प्लान करने लगे कि क्या करें। थोड़ी देर चर्चा करने के बाद तय हुआ कि आज रात तालुका में बिताई जाएगी। 3 बज चुके थे। साँकरी से तालुका की दूरी 11 किमी थी और रास्ता पूरा सड़क मार्ग से होकर जाना था लेकिन बरसात में सडक करीब एक दर्जन जगह क्षतिगस्त हो चुकी थी इसलिए केवल पैदल ही इस रास्ते को नापना था। हमारे पास अभी भी काफी समान था।साँकरी से करीब सवा तीन बजे आगे बढ़े। गाँव वालों ने हमे डरा दिया कि आगे बड़े ही खतरनाक गदेरे है जिन्हें पार नही कर पाओगे और एक जगह बड़ा भूस्खलन भी हुआ है। इस बीच हमारी मदद के लिए साँकरी गाँव का एक व्यक्ति आगे आया।

विभु काफी मिलनसार रहता है। कही भी हो और कैसी परिस्थिति हो वो उस चुनौती को कुबूल कर लेता है। उस व्यक्ति ने कहा कि वो पहले 3 खतरनाक नाले पार करवा देगा उसके बाद कोई दिक्कत नही है। हमने उससे पैसे पूछे तो कहने लगा बाबूजी आप लोग इतनी दूर से हमारे इलाके की खबरों को दिखाने के लिए आये है और मैं आपसे पैसे लूंगा। उस दिन मुझे एहसास हुआ कि वाकई में खबर गांवो में है वो भी जो दूरस्थ गाँव है। तालुका के रास्ते में जैसे ही करीब एक किमी आगे बढ़े तो एक बड़ा लैंडस्लाइड मिल गया। यकीन मानिए करीब 200 मीटर की गहरी खाई और नीचे नदी का रौद्र रूप। रास्ता केवल इतना जितना हमारे पैर के निशान है। विभु ने वो लैंडस्लाइड जोन पार कर लिया। हल्की बारिश भी शुरू हो गई। उसके बाद अरुण और गाँव का साथी भी पार हो गया। मैं थोड़ा डर गया था। सर पर मेरे प्लास्टिक था जो हम देहरादून से लाये थे। एक जगह पैर स्लिप हो गया और मैं गिर गया लगा मैं गया तभी विभु चिल्लाया “गुसाई” मौत नीचे मेरा इंतज़ार कर रही थी और मैं एक पत्थर पर अटका था। विभु फटाफट जो रस्सी हम लेकर आये थे उसे निकाल कर मेरे ऊपर फेंक चुका था। तब तक अरुण भी एक्टिव हो गया और फिर तीनो ने मुझे निकाला। सभी ने राहत की सांस ली।
पिछले 4 घंटे में हम सबकी समझ में आ चुका था कि ये ट्रेक मुश्किलों भरा होगा। करीब 3 घंटे चलने के बाद करीब साढ़े 6 बजे हम अपने पहले पड़ाव तालुका पहुँच गए। घने जंगल और लगातार बारिश से बचते हुए अब हमारे शरीर में ज्यादा ताकत नही थी। लिहाजा हम सीधे वन विभाग के विश्राम भवन चले गए। वहाँ गए तो ताला लगा था। आस पास पूछा तो लोगों ने बताया कि चौकीदार नीचे है। विभु और मैं उसे बुलाने गए तो वो सोया हुआ था और जब कई बार दरवाजा खटखटाया तो वो बाहर निकाला। उसे हमने अपना परिचय दिया और बताया कि हम देहरादून से आये है। पुरोला ने उपनिदेशक ने कहा होगा हमारे बारे लेकिन उसे काफी शराब पी रखी थी। उसने सीधे कहा कि बुकिंग की पर्ची दिखाओ। वन विश्राम बंगले पहले बुक कराए जाते है और उसकी पर्ची मिलती है। जब हमने कहा कि वो नही है तो उसने दरवाजा बंद कर दिया और फिर सो गया। हमने फिर दरवाजा खटखटाया और उसे लेकर किसी तरह ऊपर बंगले में आये लेकिन वो बार बार एक ही बात कहने लगा कि पर्ची दिखाओ मैं नही खोलूंगा। इस बीच गाँव के कुछ युवा आये और चौकीदार से कहने लगे कि कम से कम दरवाजा तो खोलो पहली बार कोई पत्रकार इस दुर्गम घाटी में आये है लेकिन वो फिर भी नही माना। गाँव के युवा काफी खुश थे कि उनके इलाके में मीडिया के लोग आए है। तभी अचानक दो फारेस्ट गार्ड भी वहाँ पहुँच गए उन्होने अपना परिचय दिया और कहा कि चौकीदार को नही मालूम था आप लोग यही रुकेंगे। उन्होंने दरवाजा खोला और चौकीदार को डांटा भी। हम काफी थक चुके थे। पास में ही एक छोटा ढाबा था जहाँ रात के लिए हम तीनों ने खाना खाया और कुछ बातचीत स्थानीय लड़को के साथ कर सो गए।

तालुका की सुबह बारिश की फुहारों को लेकर शुरू हुई। बारिश से हम निराश हो चुके थे क्योंकि इससे शूट करने में दिक्कत हो रही थी। करीब 10 बजे के आसपास थोड़ी बारिश कम हुई। अब यहाँ से पूरा जंगल का रास्ता था। इसलिए हमने फैसला किया कि अब एक पोर्टर भी साथ लेकर जाएंगे। तालुका से आगे सूपिन नदी के किनारे होते हुए आगे बढ़ना शुरू किया। इसी बीच मैं और विभु तालुका गाँव में जाकर राजमा की स्टोरी करने चले गए। स्ट्रिंगर होते हुए मेरे साथ पूरी यूनिट थी। कई बार हमने पीटीसी की थी लेकिन इस बार विभु भाई ने पीटीसी की बारीकियों को समझाया। कैमरा फेस करते हुए विभु ने कई टेक के बाद पीटीसी कराई। अब हमारा सफर और मुश्किल हो गया था मुझे विभु को भी फ्री करना था ताकि वो बेहतर तरीके से शूट कर सके। हमने एक स्थानीय युवक अनिल को पोर्टर रखा और अपना अनावश्यक समान तालुका में ही छोड़ दिया। हमारे साथ अब फारेस्ट के एक गार्ड और एक चौकीदार भी जुड़ गए। सूपिन नदी के किनारे जंगलो को पार करते हुए हमारा सफर अब ओसला की तरफ बढ़ रहा था। ये सफर करीब 14 किमी का था। रास्ते में बेहद मनमोहक नजारों को विभु और अरुण ने कैमरे में कैद किया जबकि मैने अपनी आँखों में। इस ट्रैक ने भी काफी थका दिया था। करीब रात 8 बजे हम सीमा गाँव पहुँचे जो ठीक ओसला के समाने था। विभु पोर्टर के साथ पहले ही सीमा गाँव के जीएमवीएन गेस्ट हाउस पहुँच चुके थे और हमारे लिए खाने पीने की व्यवस्था भी कर चुके थे। यहाँ बिजली नही थी। कमरे में एक मोमबत्ती जल रही थी। इससे आगे भी कही बिजली नही थी। रात को इतना थक गए कि ठीक से खाना भी नही खा पाए।
अब सीमा से आगे आज सीधे हरकीदून जाना था। सीमा से करीब 14 किमी की दूरी है। सुबह का मौसम देख मन खुश हो गया।आसमान साफ था और धूप खिली हुई थी। सीमा जीएमवीएन गेस्ट हाउस में इंडियन ऑयल की टीम रुकी हुई थी और रुईनसेरा पास जा रही थी। इस टीम के कुछ मेंबर की तबियत खराब हो गई सो उन्होंने हमसे पूछा कि क्या उनके पास दवाइयाँ है। हम अपने साथ कुछ दवाइयां दून हॉस्पिटल से लेकर आये थे। कुछ दवाइयाँ उन्हें सौंप दी। सीमा गाँव से हमने सफर शुरू किया और धीरे धीरे आगे बढ़ने लगे। विभु कलकल बहते झरने, हरियाली ओढ़े पहाड़ की घाटियों को अपने कैमरे में कैद कर रहा था।सचमुच हरकीदून घाटी स्वर्ग से कम नही बादल आपको छू कर निकल जाते है। ये मेरा पहला प्रोग्रामिंग शूट था और मुझे कुछ भी आइडिया नही था कि कैसे करना है। सब कुछ विभु कैमरे में कैद हो रहा था। मैं केवल अपनी खबरे करता और विभु मेरी एक सुंदर पीटीसी करा देता। सीमा गाँव इस घाटी के अंतिम गाँव ओसला का एक तोक है।

यहाँ से करीब ढाई किमी की दूरी तय कर हम हरकीदून घाटी की उस जगह पर पहुँच गए जहाँ से रुईनसेरा पास, सूपिन घाटी और हरकीदून घाटी के दीदार हो रहे थे। इस स्थान को कलकत्तिधार कहते है। मखमली बुग्याल, बुग्यालों के ऊपर बादलों की चहलकदमी को विभु लगातार अपने कैमरे में कैद कर रहा थे। मेरी तो आँखे निहारते निहारते भी नही थक रही थी। पहाड़ में जब भी आप चढ़ाई कर एक ऊंचे स्थान पर पहुचते तो वो पहाड़ आपको दुगुना सुंदर दिखाई देता है। इसी बीच विभु अरुण से अपनी सुंदर फ़ोटो भी खिंचवा रहा था। अरुण और मैं मजाक करते कि शादी के लिए लकड़ी को यही फ़ोटो भेजना। इस जगह पर हम साढ़े 11 बजे पहुँच गए और एक घंटे यहाँ पर प्रकृति के सौंदर्य का दीदार करते रहे। करीब 12 बजे हमने कलकत्ति धार से चलना शुरू किया। मैं और अरुण साथ साथ चल रहे थे जबकि विभु पोर्टर और 2 अन्य वन कर्मियों के साथ निकल पड़े। रास्ता बेहद मनमोहन था लेकिन अब बारिश शुरू हो चुकी थी। मैं और अरुण एक ही छाते से बचते हुए धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे। रास्ते में हमे बंगाली टूरिस्ट भी मिले और हमने उनसे पूछा कि कोई कैमरामैन देखा तो कहने लगे कि वो काफी आगे जा चुके है। रास्ते में झरने, छोटे बुग्याल, देवदार के झुरमुट और रंग बिरंगे फूलों को देख मन प्रफुल्लित हो गया। बार बार ये अहसास हो रहा था कि हम ना जाने कौन सी दुनिया में है। बारिश के साथ अब कोहरा भी आ चुका था। रास्ता भी मुश्किल से दिख रहा था। करीब 7 बजे हम हरकीदून के फारेस्ट गेस्ट हॉउस पहुँचे। तब तक विभु हमारे लिए पानी गरम कर चुका था और हमारे पहुचते ही गरमा गरम चाय चौकीदार से बनवा दी। चौकीदार से पूछा तो उनसे बताया कि कई दिनों के बाद आज सुबह मौसम खुला था नही तो इतना कोहरा है कि कुछ पता ही नही चलता। हम सोच में पड़ गए कि अगर सुबह भी कोहरा लगा होगा तो फिर शूट कैसे करेंगे। थक चुके थे तो दाल और रोटी खाई और सो गए।
सुबह कानों में आवाज सुनाई दी “गुसाई जी उठो” मैं आखों को मलता हुआ बाहर आया तो चौक गया। पूरा हरकीदून साफ….सूरज की किरण स्वर्गारोहिणी पर्वत पर पड़ रही थी। हरकीदून से जौनधार ग्लेशियर साफ दिख रहा था। समुद्र तल से हरकीदून करीब 3500 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। मैंने पूछा क्या क्या शूट कर लिया तो बोले कि करीब 20 मिनट का शूट कर लिया। अब तुम बताओ क्या करना है। उसके बाद मैं तैयार हुआ। हरकीदून में एक गेस्ट हाउस जीएमवीएन का भी है वहाँ पर कुछ बंगाली पर्यटक भी रुके थे। सो उनकी बाइट की और अपनी खबरों को लेकर पीटीसी कर हम करीब 10 बजे वापस आने लगे। आने का मन नही कर रहा था लेकिन अभी बहुत काम बाकी था और सफर भी बहुत लंबा था। हरकीदून को भगवान भोलेनाथ की तप भूमि कहते है। मान्यता है पांडव इसी रास्ते स्वर्ग गए थे। यहाँ से बोसासू दर्रा पार कर हिमाचल प्रदेश में पहुँचा जा सकता है। अब हमारे कदम तेजी से नीचे बढ़ रहे थे।
हमारे साथ ओसला से रगुवीर भी थे जो वन विभाग में संविदा पर तैनात थे। उन्होंने कहा कि आप आज मेरे घर पर रुकेंगे। हमें ओसला गाँव में एक दूसरी जगह रुकना था लेकिन रघुवीर भाई ने बार बार आग्रह को हम ठुकरा ना सके। विभु तेजी से रघुवीर जी के साथ जाने लगा ताकि खाने की तैयारी की जा सके। मैं और अरुण के साथ धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे। करीब ढाई घंटे में हम इस घाटी के सबसे खूबसूरत गाँव पहुँच गए। जब हम पहुँचे तो हमारे लिए खाना रेडी हो चुका था। विभु सबके साथ ऐसे घुल मिल गया जैसे सालों पुरानी दोस्ती हो चुकी हो। खाने में राजमा की दाल, चावल, हरी सब्जी, घी, रोटी और फाफर के आटे की रोटी साथ में शहद रखा हुआ था। रघुवीर ने अपने घर जब खाना परोसा तो मन अथिति सत्कार से खुश हो गया। रघुवीर की पत्नी ने कहा कि फाफर की रोटी जरूर खाइएगा। तो मैंने सबसे पहले उसी का एक टुकड़ा तोड़ कर मुँह में डाल दिया और जबकि वो कहते रह गए कि शहद के साथ खाना ….मेरा पूरा मुँह कड़वा हो गया और सब हंसने लग गए। खाना बहुत स्वादिष्ट था हमने जमकर खाया। रघुवीर ने कहा कि आप लोग आराम कर ले लेकिन गाँव में ख़बर फैल गई कि मीडिया वाले आये है तो कई लोग रघुवीर के घर आ गए। पिछली 3 रातों से नींद पूरी नही हुई थी जैसे ही सोने की कोशिश की ग्रामीणों की आवाज से नींद खुल गई। विभु अरुण और मैने तय किया कि अब सोए क्या तो फिर निकल गए गाँव भ्रमण पर।

इस गाँव में देवदार की लकड़ी के नक्काशीदार मकानों को विभु अपने कैमरे में कैद कर रहा था और ग्रामीण मुझे यहाँ की दुखभरी समस्याएं बता रहे थे। इस गाँव में सड़क आजादी के बाद तक नही आई। गोविंद नेशनल पार्क की सीमा में होने का खामियाजा इस गाँव के ग्रामीण भुगत रहे है। स्वास्थ्य केंद्र के लिए भी लोगों को मोरी जाना पड़ता है।कैमरा और माइक देख कर बच्चे हमारे साथ साथ आने लगे। इसी बीच एक युवक आया और हमे एक बुजुर्ग महिला के पास लेकर चला गया। महिला भेड़ की ऊन को कात रही थी। काफी बीमार थी हमे डॉक्टर समझ के बुला लिया। महिला ने रोती आखों से हमे अपनी पूरी दास्तान बता दी। हमने कहा कि हम डॉक्टर नही है मीडिया से है लेकिन वो कहती रही कि मुझे दवाई दे दो। उन्हें कई बीमारियाँ थी लेकिन उम्र के इस पड़ाव में घुटनो हाथों में काफी दर्द रहता था इसलिए हम केवल दर्द और बुखार की दवाई दे दी।
इसी तरह एक और बुजुर्ग भी काफी परेशान थे। बुखार था और हाथ पैर भी कांप रहे थे। हमें लग रहा था कि ये हम किस दुनिया में आ गए है। उन्हें भी बुखार, दर्द की दवाई दी। इस बीच हम गाँव में लगे सेटेलाइट फोन को देखने गए। गाँव वाले बारी बारी से अपने परिजनों को फोन कर रहे थे। हमने भी अपने घर फोन पर अपनी कुशल क्षेम बताई। अब शाम का वक्त होने लगा था। ओसला गांव में सोमेश्वर भगवान की डोली आई थी। मंदिर प्रांगण में ही ग्रामीणों ने रात को पारंपरिक लोक नृत्य का आयोजन किया हुआ था। खाना खाने के बाद हम इसे शूट करना चाहते थे ताकि भारत के इस अंतिम गांव की लोक संस्कृति को दिखा सकें। रात्रि 10 बजे के आसपास सभी महिलाएं और पुरुष मंदिर प्रांगण में पहुंचे और पारंपरिक लोक नृत्य शुरू हो गया। कुछ देर बाद हम वापस आ गए। बारिश भी शुरू हो गई। मंदिर के ही बगल में रघुवीर जी का घर था इसलिए वाद्य यंत्रों और महिलाओं की गाने आवाज हमें सुनाई दे रही थी। करीब 12 बजे तक तो हम सुनते रहे लेकिन उसके बाद थकान के कारण हमें नींद आ गई। अगले दिन हमने रघुवीर जी से पूछा तो उन्होंने बताया कि सुबह 3 बजे तक लोकनृत्य का आयोजन हो रहा था। जबकि गाँव की महिलाएं हमसे पहले उठ गई थी और अपने खेतों के कार्य में जुट गई।

ओसला गाँव से विदाई का समय आ गया था। इतना खूबसूरत गांव मैंने पहले कभी नहीं देखा। बुग्यालों और जंगलों के बीच हिमालय की गोद में बसे यह खूबसूरत गाँव नक्काशी दार लकड़ी से बने मकानों के लिए प्रसिद्ध है। जब आप हरकीदून जाए तो इस गांव में जरूर जाइएगा। आपको असली ग्रामीण भारत की तस्वीर दिखाई देगी। गांव में मैंने कई खबरें की इसमें स्वास्थ्य शिक्षा, रोजगार और बिजली के साथ-साथ सबसे बड़ी समस्या सड़क से जुड़ी हुई थी। इन सभी खबरों को अपने कैमरे में कैद कर ओसला गांव से साँकरी के लिए निकल पड़े। आज हमें करीब 25 किलोमीटर का सफर तय करना था। हमारे साथ रघुवीर और फॉरेस्ट गार्ड, पोर्टर की टीम थी। नाश्ता करने के बाद सब लोग साँकरी के लिए निकल पड़े। मौसम साफ था और बारिश नहीं हो रही थी करीब 6:00 बजे शाम को हम लोग साँकरी गांव पहुंच गए। अब थकान काफी ज्यादा लगी हुई थी क्योंकि दिन में केवल तालुका में चाय और बिस्कुट खाया था। हमारे साथ जो फारेस्ट गार्ड और चौकीदार थे वह भी साँकरी आने के बाद अपने अपने घर निकल गए। साँकरी में हमारी मुलाकात रेंजर से हुई तो उन्होंने इस पूरे इलाके की कई कहानियां बताएं रात को भोजन भी उन्हीं की तरफ से था।
अरुण ने साँकरी गाँव से अगले दिन जब देहरादून फोन किया तब जाकर मालूम पड़ा कि पूरे प्रदेश में भारी बारिश से काफी जान माल का नुकसान हुआ है और चारों धाम की यात्रा भी रुक गई है । खुद अरुण की पत्नी भी आदि कैलाश यात्रा मार्ग पर फंस गई है। इसलिए वह सुबह ही हमसे विदा लेकर देहरादून के लिए रवाना हो गया। हमे साँकरी गांव को शूट करना था। सुबह विभु ने साँकरी गांव की खूबसूरती रहन-सहन खान-पान को शूट किया और फिर दोपहर के बाद गाँव से पुरोला के लिए निकल पड़े। हमारे पास गाड़ी नही थी तो पहले हम नैटवाड़ तक गए उसके बाद नैटवाड़ से मोरी तक क्योकि कई जगह सड़को पर मलवा आया हुआ था। अब हमे भी लगने लगा कि पूरे प्रदेश में बड़ी तबाही आई है। मोरी से हम श्याम तक पुरोला पहुँचे।पुरोला में अनिल से रात को रहने की व्यवस्था की हुई थी। अनिल ने पूरी आपदा की कहानी बता दी। पुरोला में पेट्रोल डीजल की किल्लत होने लगी थी और कई दिनों ने यमुनोत्री हाइवे बंद होने के कारण जरूरी सामानों की किल्लत होने लगी।

पुरोला में हमें एक शो तैयार करना था इसलिए हम पुरोला में ही रुक गए। उसके अगले दिन हम पुरोला से पहले नौगाँव दो अलग अलग जीप बदलकर गए। नौगाँव से डामटा के लिए एक ट्रक में बैठे जो डामटा से आगे तक लेकर आ गया। डामटा से आगे यात्री जो यमुनोत्री से वापस लौट रहे थे उनकी परेशानियों को दिखाया। कई जगहों पर यात्री रुके हुए थे और भजन कीर्तन कर रहे थे। सड़क जगह जगह लैंडस्लाइड होने के कारण क्षतिग्रस्त थी। विभु ने देहरादून फोन किया और गाड़ी भेजने को कहा लेकिन आफिस ने कहा कि गाड़ी कैसे भेजे। जगह जगह टूटी हुई है। डामटा से आगे कई किमी पैदल चलकर आखिरकार हम रात को नैनबाग पहुँचे। रात वही बिताई और अगले दिन 2 गाड़ियों को बदलकर देहरादून पहुँचे। विभु कांडपाल से इस टूर में काफी कुछ सीखा। कितनी भी मुश्किल चुनौती हो विभु कभी टेंशन में नही आता।
Bahut hi achi story hai sir?
Thank You Ranjita Ji
अति सुन्दर और उच्च कोटि का यात्रा वृत्तांत है। साधु वाद।
Thank You Prem Ji
बहुत ही अच्छी कहानी गुसांई जी पढ़ कर अच्छा लगा
धन्यवाद रमेश नाथ जी।
Nice and romanch se bhari story hai. Me aap ke video regularly dekhati hu. Bahut accha lagta hai man ko sukun milta hai gaon ki vandiya dekh kar.👍👍
Thank You Purvi Ji
गुसाईं जी विवरण इतना जानदार है लगता है rural tales का एपिसोड देख रहा हु। यह ट्रैक हमेशा map पर देखता हूं और कई एपिसोड भी देखा। आपका प्रेजेंटेशन बहुत लाइव है बहुत जल्दी आपसे कनेक्ट हो जाते है
Thank You Sanjay Ji