पूरी दुनिया में कोरोना महामारी का संकट छाया है। ऐसे समय में उन अनाजों की डिमांड बढ़ती जा रही है जिनसे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। सालों से समय के साथ फसलों, सब्जियों और फलों में पेस्टीसाइड का प्रयोग होता गया और इन खतरनाक रासायनिक तत्वों का नुकसान शरीर को उठाना पड़ा जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता घटती गई। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में पारंपरिक फसलों का ऐसा भंडार हुआ करता है तो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देता है।क्या आप जानते है कि वो कौन से बारह अजान है जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते है।

पहाड़ के इन अनाजो को खाएंगे तो बढ़ेगी शरीर की प्रतिरोधक क्षमता
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में कई ऐसे पारंपरिक अनाज है जो सदियों से पहाड़ वासियों उत्पादन करते आ रहे है। दुनिया भर में जो शोध हुए उसमें पाया गया कि इन अनाजों में सभी मिनरल्स प्रोटीन के साथ प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने तत्व भी पाए जाते हैं। पहाड़ में मंडुवा, झिंगोरा, गहत की दाल, भांग के बीज जीरा सहित 12 अनाजों का उत्पादन किया जाता था लेकिन खानपान और फसल चक्र में आए बदलाव और अत्यधिक रासायनिक खाद के प्रयोग के कारण पर्वतीय क्षेत्र में पारंपरिक फसलों की खेती कम होने से इनका उत्पादन कम होता गया।

लेकिन दुनिया भर में छाई कोरोना महामारी संकट में लोग पारंपरिक अनाजों के साथ जैविक तरीके से उगाई जा रही सब्जियों और फलों को खरीदना पसंद कर रहे हैं। जैविक उत्पाद परिषद की पूर्व अध्यक्ष विनीता साह मानती हैं कि पहाड़ के पारंपरिक अनाजों का बहुत महत्व होता है जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देते हैं कोरोनावायरस संकट में ऐसे उत्पादों की डिमांड काफी बढ़ती जा रही है।
पर्वतीय इलाकों में आज भी कई क्षेत्रों में इन अनाजो का उत्पादन किया जाता है। इनमें प्रमुख है गेहूं, मंडुवा, मक्का, जौ, झंगोरा, काला भट्ट, सोयाबीन, राजमा, कुट्टू, भंगजीरा, रामदना, गहत, फाफर, कौणी, बाजरा, बाकू चना, नौरंगी, लोभिया और तोर की दाल प्रमुख है।
पहाड़ के जंगलों में पाई जाती है कई औषधीय गुणों से भरपूर जड़ी बूटियां और सब्जियां
केवल पारंपरिक अनाज ही नही बल्कि पर्वतीय इलाकों में कई सब्जियों जंगलो में भी होता है। इनमें प्रमुख है लिंगोड़, गेठी, तरुड़, खिरोव, मुंगेल, तिमला, बेडु, बमोर, किलमोड़े, हिसालू, काफल, गिवाई प्रमुख है। इसके अलावा जंगलो और बुग्यालों में कई प्रकार की जड़ी बूटियां भी पाई जाती है जो कई बीमारियों के लिए राम बाण है जिसमे सलाम मिश्री, बज्रदंती, थायम, वन तुलसी, वन हल्दी, सालमपंजा, तित पाटिया, चटकुरा, अतीस, जटामासी, पत्थर चट्टा और सिल फोड़ा का प्रयोग करते है। पहाड़ के पारंपरिक फसल अब धीरे धीरे बढ़ोत्तरी हो रही है।
पहाड़ों में होता है बारहनाजा
उत्तराखंड में पहले 12 अनाज यानी जौ, मंडुआ, गेंहू, धान, चौलाई, राजमा, कौणी, झिंगोरा, गहत, भट्ट, बाजरा का उत्पादन हुआ करता था।जिमसें चमोली, टिहरी, अल्मोड़ा, पौड़ी और उत्तरकाशी जिले प्रमुख है। लेकिन पलायन, बेमौसम बरसात, ओलावृष्टि, सूखा के साथ ही सिंचाई की सुविधा ना होने से इन अनाजो का उत्पादन कम होता गया। अब प्रदेश के कई इलाको में इन फसलों की जगह कैश क्रॉप ने ले ली है जिसमे आलू, मटर, टमाटर, गोभी, बीन, पालक, राई, धनिया, प्याज, लहसून का उत्पादन किया जाता है। इसके अलावा फलों में सेब, आडू, पुलम, कीवी, नाशपाती, खुमानी का उत्पादन किया जाता है

और ये देहरादून के चकराता, उत्तरकाशी जिले के मोरी, पुलोरा, यमुनोत्री और गंगोत्री, टिहरी के प्रतापनगर और घनसाली, थत्यूड़ और चंबा रुद्रप्रयाग में जखोली, उखीमठ, चमोली में जोशीमठ, दशोली, घाट, देवाल, नारायणबगड़ और अलकनंदा घाटी में भी कैश क्रॉप का उत्पादन किया जाता है। पौड़ी जिले में पश्चमी नायर और पूर्वी नायर के साथ ही कोट, थलीसैंण, नैनीडांडा सहित कई इलाकों में कैश क्रॉप का उत्पादन किया जा रहा है। कुमाँऊ में बागेश्वर जिले में कपकोट,ताकुला जबकि अल्मोड़ा ब्लॉक में रानीखेत, धौलादेवी, चौखुटिया, सेराघट, सल्ट और स्यालदेह इलाको में कैश क्रॉप का उत्पादन किया जा रहा है। पिथौरागढ़ जिले में मुनस्यारी, बेरीनाग धारचूला, कनालीछीना, डीडीहाट नैनीताल जिले में धारी, रामगढ़, भीमताल, ओखलकांडा और बेतालघाट में कैश क्रॉप का उत्पादन किया जाता है।
प्रदेश में गांवो के क्लस्टर बनाकर जैविक उत्पादन किया जा रहा है
उत्तराखंड में 12 अनाज व्यवस्था सदियों से चली आ रही थी और इसमें बैलेंस डाइट भी हुआ करती थी जो सर्दियों में शरीर को गर्म रखने के साथ ही कई बीमारियों से भी बचाती थी। उत्तराखंड के कई इलाकों में अब धीरे-धीरे 12 अनाजी व्यवस्था के साथ-साथ जैविक उत्पाद शुरू किए जा रहे हैं। राज्य के 3970 गांवो का क्लस्टर बनाये जा चुके है।
नैनीताल के रामगढ़, धारी ब्लॉक में कई काश्तकारों ने जैविक तरीके से सब्जियों फलों का उत्पादन शुरू कर दिया है। कोरोना वायरस संकट काल में अब लोग ऐसे उत्पादों की डिमांड कर रहे हैं जो जैविक तरीके से उगाए जा रहे हैं। नैनीताल के रामगढ़ ब्लॉक के काश्तकार योगेश मेहता बताते है कि जैविक खेती से भले ही उत्पादन कम हो रहा हो लेकिन सब्जियों और फलों की गुणवत्ता बहुत अच्छी होती है। गल्ला गाँव के काश्तकार महेश गलिया बताते है कि उन्होंने करीब 5 सालों से जैविक खेती कर रहे है।
सूफी गाँव के दीवान सिंह मेहता ने तो जैविक खेती के लिए एक छोटी सी प्रयोगशाला भी बनाई है उन्होंने कहा कि जैविक खेती करने से फलों और सब्जियों में फंगस और बीमारियों का नुकसान ज्यादा नही होता है साथ ही मिट्टी की गुणवत्ता भी बनी रहती है। प्रताप सिंह पंवार बताते है कि परंपरागत अनाजो का उत्पादन धीरे धीरे किया जा रहा है। उच्च हिमालय के इलाकों में अभी भी पारंपरिक खेती की जा रही है। चमोली जिले के वाण गाँव के पान सिंह बिष्ट कहते है उन्होंने पारंपरिक खेती के साथ ही कैश क्रॉप, जड़ी बूटी उत्पादन और बागवानी भी कर रहे है और सभी जैविक तरीके से उत्पादन किया जा रहा है।
राज्य सरकार ने परंपरागत खेती को बढ़ावा देने के लिए फलसो के समर्थन मूल्य में किया इजाफा
जानकारों की माने तो जिस तेजी से पैक फ़ूड का प्रचलन बढ़ा उसने शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को घटा दिया।चिप्स, कोल्ड ड्रिंग, पिज्जा, बर्गर, चाऊमीन शरीर के लिए काफी नुकसान पहुँचाते है। अब दुनिया में जिस तेजी से कोरोनावायरस महामारी फैल रही है और इससे लोगों की मौत हो रही है उसके बाद पहाड़ के 12 अनाजो की याद सभी को आने लग गई है।

प्रदेश में मंडुआ, झिंगोरा, चौलाई, गहत, काला भट्ट और राजमा शामिल है। प्रदेश में सबसे ज्यादा मंडुआ और झिंगोरा का उत्पादन परम्परागत फसलों में किया जाता है। उत्तराखंड कृषि उत्पादन मंडी समिति ने इन फसलों के लिए प्रोसेसिंग प्लांट लगाया है जिसमे केवल पहाड़ी अनाजो के लिए तैयार किया गया है।
कृषि विशेषज्ञ महेंद्र कुंवर बताते है यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते के लिए बहुत उपयोगी है। कई पर्वतीय उत्पाद अब धीरे-धीरे खत्म हो गए हैं लेकिन अगर उन्हें फिर से वो उगाना शुरू किया जाए और अपने दैनिक जीवन के खानपान में बदलाव किया जाए तो कोरोना वायरस जैसी बीमारी से शरीर खुद लड़ सकता है।
सालो से जैविक खेती और पारंपरिक अनाजो पर कार्य कर रहे विजय जड़धारी कहते है कि अगर जब बीज ही जैविक नही होंगे तो फिर हम जैविक अनाजो की कल्पना नही कर सकते है। पिछले कई सालों से विजय जड़धारी टिहरी गढ़वाल हेंवलघाटी में जड़धार गाँव में जैविक उत्पादन की मशाल जला रहे है।
Very nice keep up the good work…God bless
thanku urmila ji
Very informative 👍
thanku ranjita ji
आप बहोत अच्छा और सराहनिय काम कर रहे है ईश्वर आपके साथ है
धन्यवाद जी