पहाडों की रानी मसूरी की हसीन वादियों की सैर तो आपने कई बार की होगी। बांज, बुरांस, देवदार, फर के घने जंगलों के बीच मसूरी की पहाड़ियों में घूमने के लिए देश विदेश के सैलानी पहुचते है लेकिन मसूरी की पहाडियों में ईतिहास के कई पन्ने ऐसे है जो आपको हान्टेड की दुनिया में ले जाएंगे। अगर आप डर से आगे जीना चाहते है और ऐसे वीरान जगहों की सैर करना चाहते है जहां भूतों की कहानियां छिपी हो तो मसूरी की पहाडियां आपका इंतजार कर रही है….. सालों पहले चूना पत्थरों की खदानों से निकलने वाले धूल, गाडियों की गडगडाहट और पेड़ों के अन्धाधुंध कटान से मसूरी खतरे में आ चुकी थी। मसूरी की पहाडियों में स्थित हाथीपांव, झड़ीपानी और राजपुर क्षेत्र में कई चूनापत्थर के खदान स्थित है जो अब वीरान हो चुके है। इन खदानों में काम करने वाले मजदूरों के लिए बड़ी संख्या में मकान बनाए गये थे जो अब खंडहर हो चुके है। स्थानीय लोग अब इन्ही चुना पत्थऱ की खदानों और खंडहर भवनों में घोष्ट टूरिज्म शुरु करने की तैयारी कर रहे है।

हाथीपांव में शुरु होगा घोष्ट टूरिज्म
हाथीपांव और जार्ज एवरेस्ट क्षेत्र में कई खदाने थी। इन्ही खदानों के पास अब ईको और घोष्ट टूरिज्म शुरु किया जा रहा है। 1960 के दशक से मसूरी क्षेत्र में चूना पत्थर की खदानों में काम शुरु हुआ जो फिर 1990 में बंद हो गया। उस समय हाथीपांव, झड़ीपानी, राजपुर, लम्बीधार सहित कई इलाकों में चूना पत्थर निकाला जाता था। खनन के इस कारोबार के कारण मसूरी की पहाडियां बदरंग हो गई और तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने इसमें रोक लगा दी। खदान में लगे मजदूरों के लिए कई भवन बनाए गये थे जो अब खंडहर हो चुके है। हाथीपांव क्षेत्र में भी स्थानीय लोग अब घोष्ट टूरिज्म शुरु होता जा रहा है। इस साहसिक और रोमांच से भरे सोच के बार में पर्यटन कारोबारी अभय शर्मा बताते है कि उनके दादा ने 1965 में करीब 200 बीघा जमीन चूना पत्थर खनन के लिए ली थी लेकिन बाद में इसमें प्रतिबंध लग गया और खनन बंद होने के बाद 200 बीघा जमीन में से 120 बीघा जमीन उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग ने ले ली जो अब उत्तराखंड पर्यटन के पास है।

उन्होने कहा कि उनकी जमीन में पूराने भवनों के खंडहर है और आस पास चूने की खदान स्थित है। अभय ने कहा कि सैलानियों को पैरानार्मल एक्टिविटी का अहसास कराने के लिए घोष्ट वाक कराया जा रहा है। सैलानी अपना टैंट खुद लगाएंगे और पूरे क्षेत्र को प्लास्टिक फ्री किया जाता है।
हाथीपांव में लम्बीधार खदान है हान्टेट प्लेस

दरअसल हाथीपांव क्षेत्र को सालों पहले नई मसूरी बसाने के लिए चिन्हित किया गया था। इसके लिए बडी संख्या में जमीन का चिन्हीकरण भी कर लिया गया लेकिन बाद में ये योजना परवान नही चढ सकी। इसी के पास लम्बीधार खदान मौजूद है।स्थानीय लोगों का मानना है कि यहां भूतों का वास है। 1980 के दशक में यहां बडी संख्या में मजदूर खदानों से चुना पत्थर निकालते थे जिनमें से कई मजदूरों की मौत हो गई। वर्ल्ड पैरानार्मल सोसाईटी ने भी इस इलाके को हान्टेड प्लेस की सूची में रखा हुआ है। स्थानीय लोग बताते है कि लम्बीधार खदान के आस पास अचानक अंधेरा छा जाता है और रात के समय अजीब अजीब सी आवाजें आती है। कई बार तालियों के बजने की आवाज आती है। लेखक गोपाल भारद्वाज कहते है लम्बीधार खदान के बारे में कई तरह की धारषाएं प्रचलित है। कई लोगों को वहां भूतप्रेत की बातें करते है लेकिन उन्हें कभी नही दिखा। मसूरी के जाने माने इतिहासकार जयप्रकाश उत्तराखंडी कहते है कि लम्बीधार खदान से एशिया का सबसे अच्छा मार्बल निकलता है।

चूना पत्थर खदानों को बंद करने के लिए किया बडा संघर्ष
आजादी के बाद उत्तर प्रदेश ने यूपी खनिज निमग का गठन किया और मसूरी की पहाडियों में चूना पत्थर के पट्टे आबंटित कर दिया गये। सालों तक मसूरी की पहाडियों से चूना पत्थर निकाला जाता रहा। उस दौरान करीब 50 से ज्यादा खदाने हाथीपांव, झडीपानी, लम्बीधार, राजपुर क्षेत्र में हुआ करती थी जिनसे धुएं का गुबार निकलता रहता था। इन खदानों को बंद करने के लिए पदश्री अवधेश कौशल और सेव मसूरी सोसाईटी ने काफी प्रयास किए। आखिरकार तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी और सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद ये बंद किए गये। लेखक गोपाल भारद्वाज कहते है यहां के चूना पत्थर स्टील फैक्ट्री जबलपुर भेजे जाते थे जिनसे मार्बल केमिकल आदि कई उत्पाद तैयार किए जाते थे।

जार्ज एवरेस्ट हाऊस भी इसी इलाके में स्थित है। समुद्र तल से करीब 6 हजार फीट की ऊचाई पर स्थित ये भवन भी खंडहर हो चुका है। पर्यटन विभाग हर साल यहां 3 जुलाई को जार्ज एवरेस्ट का जन्मदिन मनाने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन करता है। संयुक्त निदेशक पूनम चन्द्र ने बताया कि विभाग इस इलाके को एडाप्टेट हैरिटेज प्लेस के तौर पर विकसित करने की योजना बना रही है।
मेहनत रंग लाई तो हाथीपांव क्षेत्र बनेगा ईको टूरिज्म का हब

हाथीपांव क्षेत्र में कुछ सैलानी जार्ज एवरेस्ट और विशिंग वेल में सैलानी पहुचते है। हाथीपांव निवासी भगत सिंह कठैत कहते है इस क्षेत्र में पर्यटन की असीम संभावनाएं है। उन्होने कहा कि वे भी इस क्षेत्र में पर्यटको के लिए टैंट लगाते है इसके साथ ही वे नूरजहां रोज की खेती करना चाहते है और इसके लिए करीब 2 लाख पौध भी मंगवा दी गई है। अभय शर्मा कहते है वर्तमान में उनके साथ 10 से 15 स्थानीय युवा जुडे हुए है। राज्य सरकार मदद करें तो वो घोष्ट टूरिज्म के साथ ही ईको टूरिज्म को बढावा देंगे इसके लिए एडवेंचर एकेडमी भी खोलने की तैयारी है।
यह लेख पढ़ने से काफी जानकारी प्राप्त हुई।धन्यवाद🙏
धन्यवाद बबीता जी ! इसी तरह हमारा उत्साह बढ़ाते रहिये।
👏👏👏 आपके लेख को पढ़ कर लगता है कि हम उसी जगह में पहुंच गए हों। काफी डरावनी और रहस्यमयी जगह लगती है। ऐसे ही नई जगहों के बारे में जानकारी देते रहिएगा। धन्यवाद गुसाईं जी 🙏
धन्यवाद Chauhan Ji
humesa k tarah aap humko achhi jankari dete h. Bhut bhut dhanyawad🙏🙏🙏
धन्यवाद Rawat Ji
आपका लेख पढने से बहुत सी अनछुई जानकारियां हासिल हुई है, जिसका आपको तहेदिल से शुक्रिया,!
धन्यवाद् nakhat ji
Mera kabhi kabhi man krta h ki dunya ki bhaag doud chod
K hashi wadiyo me kahi apni kutiya bna Lu aapke dwara dikhaye gye acche acche blog se dimang me nayi urja anarji ka khoobsurat ahsaash hota h danywad Sandeep ji
हाँ जी पुनीत जी ! अगर आप इन वादियां में आएंगे तो जरूर ही अपनी कुटिया बना लेंगे। धन्यवाद्
Mail id jaldi me Galt ho gyi
Thankyou sir
धन्यवाद प्रकाश जी।