उत्तराखंड हिमालय की तलहटी में कई नायाब और नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर गाँव घेस बसा है।घाटियों से लेकर चोटियों के बीच तक सौन्दर्य के बीच इस गांव को हर्बल गांव यानी जड़ी बूटी वाला गांव भी कहते है।हिमालय के बेदद करीब ये गांव चमोली जिले के देवाल ब्लाक में स्थित है।केवल जड़ी बूटी ही नही बल्कि परम्परागत खेती और आधुनिक कैश क्राप भी इस गांव में काश्तकार उगा रहे है।
देहरादून से ऋषिकेश-बद्रीनाथ नेशनल हाईवे पर कर्णप्रयाग से इस गाँव के लिए सड़क जाती है जो देहारादून से 300 किमी और ऋषिकेश से 269 किमी की दूरी पर स्थित है।कर्णप्रयाग से ग्वालदम नेशनल हाइवे पर थराली बाजार के बाद इस गाँव के लिए अलग सड़क जाती है। थराली से देवाल ब्लॉक पहुँचाना होता है और फिर देवाल से आगे घेस गाँव के लिए करीब 32 किमी की दूरी पर त्रिशूल पर्वत की तलहटी में बसा है।ये समुद्र तल से करीब 2400 से 2700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।गाँव के ठीक सामने हिमालय पर्वत दिखाई देता है।

घेस गाँव के लिए एक प्रसिद्ध कहावत है। घेस जिसके आगे नही देश।पहले घेस गाँव में ही हिमनी,बलाण शामिल थे और इससे आगे फिर हिमालय की स्थित है।गाँव अब परंपरागत खेती के साथ ही जड़ी बूटी का उत्पादन भी शुरू हो गया है।ग्रामीण काश्तकार अब कटकी,अतीस,कुट्टू, पुष्करमोल,चोरु,वन ककड़ी और चिरायता जैसी जड़ी बूटियों का उत्पादन कर रहे है सबसे ज्यादा उत्पादन कटकी का किया जा रहा है जो 15 सौ रु किलो बिक रहा है।गाँव में वन विभाग का विश्राम गृह भी है और ग्रामीण पर्यटन की संभावनाओं को देखते हुए होम स्टे भी खोल रहे है। परंपरागत खेती में ग्रामीण चौलाई,लालू, राजमा ओगल,गेँहू, मंडुवा और झिंगोरा भी उगाया जाता है।ग्रामीण अब मटर की भी खेती कर रहे है जिससे उनकी आमदनी में इजाफा हो रहा है।गाँव तक सड़क पहुँच चुकी है।घेस गाँव में करीब 270 परिवार है।यहां से बगजी बुग्याल 8 किमी की दूरी पर स्थित है जहां बरसात में रंग बिरंगे फूल और सर्दियों में बर्फ की सफेद चादर बिछी रहती है।घेस गांव से नन्दा घुंघटी,त्रिशूल,हरदेवल चोटियां ऐसे दिखती है जैसे कि आप हाथ बढाओ और बस छू लो।
Leave a Reply