त्रिजुगीनारायण मंदिर में विवाह पर शुरू हुआ विवाद

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में त्रिजुगीनारायण गॉंव केदारघाटी में स्थित है। श्री केदरनाथ धाम से महज 33 किमी पहले हिमालय की तलहटी और चारों तरफ जंगलों से घिरा यह गॉंव आजकल सुर्खियों में आ गया है। त्रिजुगीनारायण मंदिर में वैदिक परंपरा से विवाह के नाम पर पाश्चात्य संस्कृति ने ले ली है। आये दिन हो रहे हंगामे, शराब सेवन और प्लास्टिक कचरे से ग्रामीण परेशान हो चुके है। प्राकृतिक रूप से गाँव सौंदर्य से परिपूर्ण है। मान्यता है कि इसी गाँव के त्रिजुगीनारायण मंदिर के प्रांगण में भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह विष्णु भगवान को साक्षी मनाकर संपन्न हुआ।
प्राकृतिक सौंदर्य का धनी गाँव त्रिजुगीनारायण
समुद्रतल से 2500 मीटर की ऊँचाई पर स्थित इस गॉंव में करीब 300 परिवार से ज्यादा रहते है। यहाँ से केदारनाथ पीक सहित कई हिम चोटियां दिखाई देती है। चारों तरफ बाँज, रागा, काफल, बुराँश, अखरोट, पांगर के जंगलों से गाँव घिरा हुआ है।सोनप्रयाग से गाँव की दूरी करीब 12 किमी है जो केदारनाथ यात्रा मार्ग का प्रमुख पड़ाव है। गाँव में आलू, राजमा, चौलाई मंडुवा, धान और परंपरागत खेती यहाँ के स्थानीय निवासी करते है। इस गांव को पर्यटन ग्राम भी घोषित किया गया है। राज्य सरकार ने इस गॉंव वैदिक विवाह स्थली या वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप में प्रमोट करने की कोशिश की।

त्रिजुगीनारायण वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप में हुआ पॉपुलर
करीब 5 साल पहले से कुछ युवाओ जिनमे नवेन्दु रतूड़ी , रंजना रावत, और नवीन सेमवाल ने यहाँ पर थीम आधारित विवाह शुरू किया। मकसद था कि गाँव को अंतर्राष्ट्रीय विवाह स्थल के रूप में प्रमोट किया जाए और स्थानीय रीति रिवाजों के साथ विवाह समारोह सम्पन्न किया जा सके। इसमें पहले महिलाओं से माँगल गीतों को भी सीखा। गाँव में होटल, रेस्टोरेंट और लॉज खुलने शुरू हुए। पहले केवल श्रद्धालु यहाँ मंदिर दर्शन के लिए आते थे लेकिन अब शादी समारोह अयोजिय होने लगे जिससे गाँव की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलने लगा। गाँव की महिला किरण भट्ट ने कहा कि उन्होंने एक साल पहले माँगल गीत सीखे और अब शादियों में उनकी टीम को बुलाया जाता है। किरण भट्ट सहित गाँव की कई टीमें है जो विवाह समारोह में हल्दी हाथ और फेरों के समय माँगल गीतों को गाती है। पहाड़ की परंपरा में किसी भी शुभ कार्य में माँगल गीतों को गाने का रिवाज है।इसमें देवताओ का आह्वान किया जाता है जिससे वर और बधू को सभी देवी देवता शुभाशीष दे सके।
त्रिजुगीनारायण में विवाह पर विवाद क्यों?

मन्दिर प्रांगन में पहले केवल शादी होती थी जिसे धीरे धीरे वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप में विकसित किया गया। इससे गाँव को फायदा भी हुआ लेकिन पिछले कुछ समय से शादियो में मांस मदिरा का प्रचलन बढ़ गया। नौबत यहाँ तक आ गई कि मंदिर प्रांगण के पास ही शराब पीकर देर रात तक हो हल्ला शुरू हो गया। इसके अलावा देर रात तक डीजे और तेज संगीत के कारण ग्रामीणों का क्रोध भड़क गया। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि बाहर दिल्ली, मुम्बई से आकर लोग यहाँ की संस्कृति के साथ खिलवाड़ कर रहे है। ग्राम प्रधान प्रियंका तिवारी ने कहा कि पहले शादियों वैदिक परंपराओं और पहाड़ की संस्कृति के अनुसार हो रही थी लेकिन पिछले कुछ समय से हालात बहुत खराब हो गए। बाहर से आने वाले वेडिंग प्लानर टैंट, हलवाई यहाँ तक कि माँगल टीमो को भी बाहर से लाने लगे जिससे स्थानीय लोगों को मिलने वाला रोजगार भी प्रभावित हुआ।
विवाह का विवाद स्थानीय vs बाहरी में हुआ तब्दील
त्रिजुगीनारायण में विवाह आयोजित करा रहे दिवाकर गैरोला कहते है कि मंदिर में किसकी शादी हो रही है और वो किस धर्म से है इसकी जांच जरूरी है। rशादी के बाद कूड़े का निस्तारण नही किया जा रहा है जिससे गाँव में प्लास्टिक कचरा और गंदगी का अंबार लग जाता है। जिला पंचायत ने जो टॉयलेट बनाये है उनमें भी ताला लगा है। जिला पंचायत टैक्स तो लेता है लेकिन सफाई नही कराता है। विवाद को बढ़ता देख ग्राम पंचायत ने फैसला लिया है कि मंदिर प्रांगण में कोई भी शादी के लिए तीर्थ पुरोहित विवाह समिति देखेगी। कोई भी बाहरी एजेंट गाँव में शादी समारोह आयोजित नही कराएगा।

प्रधान प्रियंका तिवारी कहती है कि अब हमने कॉफी बर्दास्त कर लिया है। ग्राम पंचायत ने फैलसा लिया है कि कोई भी बाहरी एजेंट मंदिर परिसर में शादी नही करवाएगा। अगर वह ऐसा करता है तो तीर्थ पुरोहित वह शादी नही करवाएगें। उन्होंने कहा कि जब सब कुछ गाँव में मौजूद है तो फिर बाहर से टैंट, कैटरिंग और अन्य सामान क्यों मंगाया जा रहा है। विवाह अयोजित करा रही भीरी की रंजना रावत कहती है कि दिल्ली और देहरादून से आ रहे लोग अच्छी सर्विस चाहते है जब उन्हें गाँव में यह सेवा नही मिल पाती तो बाहर से मांगनी पड़ती है। पर्यटन उद्योग का यह सबसे बड़ा उसूल है। वे कहती है कि तेज आवाज में डीजे, मांस मदिरा का सेवन पूरी तरह प्रतिबंधित होना चाहिए।
आखिर समाधान क्या है?
इसमें कोई दोराय नही कि बाहर के युवाओ ने त्रिजुगीनारायण मंदिर में वैदिक और पहाड़ की लोक संस्कृति के अनुसार विवाह के रूप में प्रमोट किया और देश दुनिया की नजर इस गॉंव में पड़ी जिससे यह शादी करने के लिए एक उपयुक्त बनकर उभरा।मंदिर में शादी कर रही कनुप्रिया कहती है कि उन्होंने सपने में सोच लिया था कि अपने सगे संबंधियों के साथ वे अपनी शादी यहाँ करायेगी।उनके पति अमित रतूड़ी भी मानते है कि यह एक पौराणिक मंदिर है और इसकी महत्ता तभी तक बची रह सकती है जब हम सब सादगी से यहाँ शादी आयोजित करे।

शुरुआत में शादी विवाह आयोजित कर चुके नावेंदु कहते है कि जब वे इस गॉंव में आये तो उन्होंने ग्रामीणों को कई बातों को सिखाया और अब ग्रामीणों का नजरिया बदल चुका है। वे कहते है कि शुरुआत में कई मुश्किलें आई लेकिन अब त्रिजुगीनारायण एक विश्व स्तरीय विवाह स्थल है। दरअसल इस पूरे विवाद की जड़ में स्थानीय स्तर पर राजनीति हावी होती जा रही है। ग्रामीणों द्वारा वैदिक तरीके से विवाह संपन्न कराने की बात तो सही है लेकिन केवल वही यहाँ शादी आयोजित कराएंगे इससे त्रिजुगीनारायण की छवि भी धमिल होगी। आखिर विवाह आयोजित कराने पर क्या किसी का एकाधिकार हो सकता है वो भी तब जब इसी प्रदेश के युवा पहाड़ की संस्कृति के अनुसार ही शादी समारोह आयोजित करते है और क्या स्थानीय युवा बिना मांस मदिरा और गंदगी के शादी सम्पन्न कराने का दावा कर सकते है। सरकार और जिला प्रशासन को इस विवाद को खत्म कर कुछ मानक तय करने चाहिए।
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