उत्तराखंड देवभूमि है और यहाँ के कण कण में देवताओ का वास है। उत्तरकाशी के मोरी ब्लॉक में देवरा गाँव इसका जीता जागता उदाहरण है। यहाँ आज भी महाभारत काल की परंपरा दोहराई जाती है। इस गाँव में मकर संक्रांति के दिन अनोखा पर्व मनाया जाता है जिसे हिंडोडा कहा जाता है । जो गेंद के मेले जैसा पर्व है। उत्तराखण्ड के कई इलाकों में मकर संक्रांति के दिन कई मेले और त्यौहार मनाए जाते है लेकिन हिंडोडा कुछ खास है क्योंकि यह आज भी महाभारत की याद दिलाता है।
आखिर क्या होता है हिंडोडा पर्व

दुनिया में महाभारत काल की वीर गाथाएँ आज भी जीवंत है। देवरा गाँव में दानवीर कर्ण का प्रसिद्ध मंदिर है और इस क्षेत्र के करीब 24 गाँव के लोग कर्ण महाराज को अपना ईष्ट देव मानते है। कर्ण की तरह इस इलाके के लोग भी दानवीर है। अब आते है हिंडोडा पर्व की पौराणिक कहानी पर…
हिंडोडा पर्व जिसे गेन्दूवा कौथिग भी कहते है वो 14 जनवरी को मनाया जाता है।अ गर ज्यादा बर्फबारी हुई तो फिर 8 दिन बाद आटाकोड़ा पर्व के दिन ये त्यौहार मनाया जाता है। कभी कभी बहुत ज्यादा बर्फबारी होने के कारण ये पर्व बैसाख माह में 14 अप्रैल को मनाया जाता है।

इस दिन दो पट्टियों के गांवों के बीच गेंद छीनने के लिए संघर्ष होता है। 14 जनवरी शाम को करीब 4 बजे एक दर्जन गांवों को पांसाई(कौरव) और साट्टी (पांडव) खेमों बांट दिया जाता है और फिर करीब एक घंटे तक दोनों पक्षों के बीच गेंद को अपनी तरह लाने के लिए काफी संघर्ष होता है। इस खेल में कई बार लोगों को चोट आ जाती है। करीब एक घंटे तक 4 बार गेंद फेंकी जाती है। गेंद को नकोडिया वीर के माली फेंकते है।
देवरा गाँव में क्यों मनाया जाता है?
इस पर्व का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है। पांडवो और कौरवों के बीच प्रतीक के रूप में गेंद को लेकर संघर्ष होता है। कहा जाता है कि जब पांडवो और कौरवों के बीच महाभारत का युद्ध हो रहा था तो अर्जुन के पुत्र बबरीक की मृत्य के बाद उसके सिर को हासिल करने के लिए ये भयंकर युद्ध हुआ। इसलिए कर्ण महाराज के गॉंव देवरा में आज भी कौरव और पांडव दोनो के बीच ये संघर्ष युद्ध का प्रतीक के तौर पर इस पर्व का आयोजन किया जाता है।

देवरा गाँव में कर्ण महाराज का प्राचीन मंदिर है। अगस्त माह में इस मंदिर में विशेष पूजा होती है। कर्ण महाराज की मूर्ति को चंपावत से लाया गया है। इसके आस पास के गांवों में कर्ण के सारथी शल्य महाराज, कर्ण के गण पोखू देवता, कर्ण की गुरुमाता रेणुका देवी के मंदिर हैं।
कैसे पहुँचे देवरा गाँव?
देवरा गाँव नैटवाड़ से 2 किमी और मोरी से 13 किमी की दूरी पर स्थित है। देवरा गाँव आने के लिए आपको देहरादून से 8 बजे रोडवेज की बस मिलेगी जिससे आप नैटवाड़ तक पहुँच सकते है। आईएसबीटी से प्राइवेट बसें भी विकासनगर नौगाँव पुरोला मोरी होते हुए नैटवाड़ तक आती है। नैटवाड़ से आप पैदल भी देवरा गाँव पहुँच सकते है।

देवरा गाँव में मंडुवा,लाल चावल, उड़द,मसूर, सोयाबीन,झंगोरा की खेती होती है। अब धीरे धीरे सेब, आड़ू,नाशपाती सहित कई फलो के बगीचे तैयार हो रहे है। इस गॉंव में ग्रामीण पर्यटन की अपार संभावनाएं मौजूद है। सीढ़ीदार खेतों के बीच लहलहाते खेत और गाँव के ऊपर देवदार का घना जंगल सैलानियों को अलग ही सुकून देता है। देवरा गाँव के ठीक नीचे रूपिन सूपिन नदियों का संगम होता है और संगम के पास ही नैटवाड़ गाँव में पोखु देवता का प्राचीन मंदिर है। देवरा गाँव के आस पास गैचवाण,कोट,सौड़, सांकरी गाँव स्थित है। सांकरी से ही आप केदारकांठा और हरकीदून ट्रेक पर अपना सफर शुरु कर सकते है। वैसे अगर आप ग्रामीण परिवेश में कुछ समय बिताना चाहते है तो आपको देवरा गाँव में भी होम स्टे में रुक सकते है और यहाँ से इन दोनों ट्रैक में जा सकते है।
संपर्क
अजीत रांगड़: 94103 28704,6395854533
प्रवीण रांगड़: 94105 07693
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