
11वें ज्योतिर्लिंग बाबा केदारनाथ जाने के कई रास्ते है। बाबा केदार के दर्शन के लिए आप किस ट्रैक से जाते है ये आप पर निर्भर करता है। हम आपको इस बार बाबा के दर पर यानी भोलेनाथ के हिमालयी धाम केदारनाथ पर एक नए और रोमांचक ट्रैक से लेकर जाएंगे। ये पैदल ट्रैक केवल रोमांचक ही नही है बल्कि ऐतिहासिक भी है। इस ट्रैक को भविष्य का पैदल मार्ग भी कहा जाता है।
चौमासी गाँव से शुरू होता है सफर

चौमासी से केदारनाथ ट्रैक करीब 24 किमी का पैदल सफर है। गुप्तकाशी से कालीमठ घाटी में माँ काली के दर्शन के बाद इस घाटी के अंतिम गाँव चौमासी में रात्रि विश्राम के बाद आप अगली सुबह केदारनाथ के सफर पर जाएंगे। हमने सफर सुबह साढ़े 4 बजे शुरू किया। अभी तक मै केवल गौरीकुंड-रामबाड़ा-लिंचौली से मार्ग से ही केदारनाथ गया था लेकिन इस बार चौमासी-खाम बुग्याल-हथनीटॉप-केदारनाथ का मुश्किल मगर रोमांचक ट्रैक से जाना था। ये सफर मुश्किल जरुर है लेकिन युवाओ को हिमालय को समझने का सबसे सुंदर ट्रैक है वो आगे खुद समझ जाएंगे। चौमासी गाँव के लोग इसी मार्ग से केदारनाथ जाए करते थे बल्कि उनका बाजार रामबाड़ा था क्योंकि गुप्तकाशी वहाँ से काफी दूर था।
2013 की आपदा में यह ट्रैक जीवनरक्षक साबित हुआ
चौमासी-खाम बुग्याल-केदारनाथ ट्रैक इस घाटी का पुराना मार्ग है। इस ट्रैक से 2013 में कई लोगों को बचाया गया था और किसी की भी मृत्य नही हुई। ये ट्रैक मुश्किल जरूर है लेकिन पूरी तरह सुरक्षित है। जब केदारनाथ में त्रासदी हुई तो अधिकतर यात्रियों को लेकर स्थानीय युवा इसकी मार्ग से सुरक्षित बचकर आये। इस मार्ग में खाम बुग्याल में कई प्राकृतिक गुफाएं मौजूद है। इसके अलावा जगह जगह जलधाराएं भी मिल जाती है। मुख्य मार्ग 2013 की हिमालयन सुनामी में पूरी तरह ध्वस्थ हो गया है। पहले पुराना मार्ग रामबाड़ा से केदानाथ हुआ करता था जो अब रामबाड़ा से मन्दाकिनी नदी को पार करने के बाद लिनचोली, छानी कैम्प से होते हुए केदारनाथ जाता है। इसके अलावा केदारनाथ से एक पैदल मार्ग त्रिजुगीनारायण भी जाता है जिसमे सैकड़ो लोगो की मौत हुई क्योंकि इसमें पानी के स्रोत नही है।
चौमासी से शुरू होती है जंगल की चढ़ाई

इस ट्रैक में चौमासी से करीब 3 किमी की चढ़ाई जंगल से होकर जाती है। जिसमे बांज, बुराँश, मोरू, खरसू का घना जंगल है।चढ़ाई खत्म होने के बाद पैदल ट्रेक बुग्यालों में प्रवेश कर जाता है। जंगल की चढ़ाई के बाद फिर पैदल सफर आनंददायक लगने लगता है और कई जगह पैदल सफर बिल्कुल सीधा हो जाता है। ट्रैक में जंगल से होते हुई कई छोटे छोटे घास के तप्पड़ है यानी घास के मैदान है जिनमें प्रमुख है खुडम तप्पड़, कल्ला चौरी, पयालू छानी, लाखा तप्पड़, थुनेरगुना तप्पड़, खेडारा तप्पड़ और फिर खाम बुग्याल शुरू हो जाता है। इस ट्रैक से होकर गुजरना अपने आप में एक अलग आत्मिक शांति मिलती है ।
जैसे जैसे आप चढ़ाई चढ़ते जाएंये आपको कालीमठ घाटी की सुंदरता के दीदार होते जाएंगे। यह ट्रैक युवाओ के लिए केदारनाथ जाने का बेहतरीन विकल्प है। इस ट्रैक की सबसे बड़ी खूबी है कि आपको कई जगह जलधाराएं और कैंपिंग ग्राउंड मिल जाएंगे। करीब 11 बजे हम सभी एक बड़े घास के मैदान में पहुँचे जहाँ चौमासी के स्थानीय युवाओ ने हमारे लिए सुबह का नाश्ता तैयार कर लिया था। इस ट्रैक में हमें एक ही दिन में करीब 24 किमी का सफर पैदल करना था।
खाम बुग्याल का अद्वितीय सौंदर्य

जंगल का सफर जब खत्म हुआ तो कलकल बहती खाम गंगा का शोर के साथ नदी की अटखेलियां दिखाई भी देने लगी। खाम बुग्याल कई किमी में फैला हुआ है। यही से एक ट्रेक मनणी माता और मनणी बुग्याल की तरफ जाता है। यहाँ कई उड़्यार है जिन्हें गुफाएं कहते है जिसमें खम उड़्यार( गुफाएं ) प्रमुख है स्थानीय युवाओ ने मुझे बताया कि यहाँ पांडवों ने भी रात्रि विश्राम किया था। अक्टूबर के माह में बुग्याल की मखमली हरी चादर तो नही थी लेकिन नदी सर्पीली आंखों में एक सुनहरा नज़ारा बसा चुकी थी। पहली बार स्वर्ग यानी केदारनाथ जाने पर अलग ही अनुभूति का अहसास हो रहा था। बरसात के समय यह पूरा इलाका रंग बिरंगे फूलों से खिला रहता है।
खाम बुग्याल से आगे इस ट्रैक का सबसे मुश्किल हथनी टॉप

खाम बुग्याल पार करने के बाद हथनी टॉप की चढ़ाई शुरू होती है जो इस ट्रैक का सबसे मुश्किल और रोमांचक सफर है।करीब 14 हजार फ़ीट पर स्थित हथनी टॉप की चढ़ाई में कई बार सांस फूलती है। आपको अपने साथ पानी भी रखना पड़ता है।करीब डेढ़ किमी की पैदल चढ़ाई के बाद हथनी टॉप पड़ता है। अभी खाम बुग्याल से आगे पैदल ट्रेक नही बना हुआ है जिससे काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है।
हथनी टॉप की चढ़ाई हमने करीब 2 बजे शुरू की। मात्र डेढ़ किमी बिल्कुल 90 डिग्री पर जाना होता है। यहाँ अभी प्रॉपर ट्रैक नही बना है इसलिए आपको आराम आराम से चलना होता है। अक्टूबर के माह में यहाँ मौजूद घास में फिसलन हो रही थी।कदम दर कदम सांस फूलती और कई बार फिसलन से नीचे आ जाते है। केवल इस चढ़ाई को पार करने में ही 2 घंटे लग गए।यकीन मानिए जब हम हथनी टॉप पहुँचे तो लगा जैसे ऐवरेस्ट फतह कर लिया है।
हथनी टॉप से दिखता है केदारघाटी का अदभुत नजारा

हथनी टॉप के बाद पूरा नजारा बदल गया। एक तरफ पूरी खाम गंगा और खाम बुग्याल का दृश्य आंखों में कैद हो गया। अब आसमान और केदारनाथ पीक पर बादलों ने अपना डेरा बना लिया था। उनकी परछाई से धरती में धूप और छांव की मिली जुली आकृति मन में बस जाती और दूसरी तरफ पूरी केदारघाटी से नज़ारे दिख रहे थे। यहाँ से आसमान में उड़ते हेलीकॉप्टर भी हमें नीचे दिख रहे है। हथनी टॉप से केदारनाथ पीक, केदारडोम, सुमेरु पर्वत, चोराबाड़ी ग्लेशियर और कंपेनियन ग्लेशियर सहित पूरी केदार घाटी का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। यहाँ ब्रह्मकमल, फेन कमल सहित मोनाल, भरल और थार भी दिखाई देते है। हथनी टॉप पर हम 4 बजे पहुँचे। इस ट्रैक को चौमासी के युवा आयोजित कर रहे है और ट्रैक लीडर चौमासी के प्रधान मुलायम सिंह टिन्डोरी थे। इसके अलावा वन विभाग और एसडीआरएफ की भी टीम थी।
खाम बुग्याल से 2 अन्य ट्रैक पहुँचते है केदारनाथ धाम

कालीमठ घाटी से केदारनाथ घाम जाने के 3 मार्ग है जिसमें खाम बुग्याल-हथनी टॉप-भुकुण्ड भैरव-केदारनाथ सबसे लंबा है ट्रैक है जबकि खाम से रैका बुग्याल-रामबाड़ा होते हुए दूसरा मार्ग है। खाम से रैका बुग्याल-रामबाड़ा करीब 10 किमी की दूरी है। खाम बुग्याल से केदारनाथ की यात्रा काफी रोमांचक रहती है। बरसात के समय रंग बिरंगे औषधीय फूलों से पूरा इलाका महकता रहता है तो बरसात के बाद गुगगुनी धूप का आनन्द लेते हुए आप कालीमठ घाटी और मन्दाकिनी घाटी के नजारों को देखते हुए इस पूरी ईकोसिस्टम को करीब से देख सकते है। अगर आपकी किस्मत अच्छी होगी तो आपको हिमालयन भालू, भरल, मोनाल और कस्तूरी मृग भी दिख सकते है। इस ट्रैक से केदारनाथ जाने में मन को बहुत शांति मिलती है। इसके अलावा खाम बुग्याल से एक ट्रैक सीधे बड़ी लिंचोली के पास निकलता है।
हथनी टॉप से केदारनाथ मार्ग पर दिखते है ब्रम्हकमल
हथनी टॉप से 4 बजे हमने चलना शुरू किया।इस पूरे ट्रैक में अब काफी थकान हो चुकी थी। अक्टूबर माह में भी कई जगह ब्रम्हकमल दिख गए। इस ट्रैक में पूरा सफर पत्थरों से होकर गुजरना पड़ता है। कई जगह पर एवलांच की वजह से पैदल सफर का पता ही नही चलता। करीब 6 बजे हम सभी भुकुण्ड भैरव पहुँचे और फिर थोड़ी देर में बाबा केदारनाथ की आरती के समय मंदिर प्रांगण में पहुँच गए थे। बाबा के दर पर आकर मानो सारी थकान मिट गए।पैर दर्द कर रहे थे लेकिन मन में इसका एहसास नही था। सैकड़ो भक्तों के हम भी भोले के जयकारों में शामिल हो गए।
Bahut khoob
thanku ravinder ji