14 March, 2023

चौलाई की खूशबू के बीच बसा ईराणी गांव

चमोली गढ़वाल में कई खूबसूरत घाटियां है।इन्हीं में से एक है निजमुला घाटी…..।चमोली जिला मुख्यालय गोपेश्वर से मात्र 52 किमी की दूरी पर इस घाटी का सबसे सुंदर गाँव इराणी बसा हुआ है।इसे चौलाई गांव भी कहते है।इस गांव में बडी मात्रा में चौलाई,आलू,राजमा का उत्पादन होता है।गाँव जाने के लिए अभी भी करीब 7 किमी पैदल सफर करना पड़ता है।

यहाँ जाने के लिए आपको गोपेश्वर से चमोली और फिर चमोली ने बद्रीनाथ नेशनल हाइवे से 10 किमी आगे सफर कर विरही पहुचना होगा।चमोली से आपको सीधे निजमुला घाटी के लिए टैक्सी मिल जाएंगी। विरही से निजमुला गाँव 17 किमी की दूरी पर स्थित है और निजमुला से फिर आगे करीब 15 किमी तक सड़क मार्ग से जाना होता है।पगना गाँव से एक किमी आगे से इराणी गाँव के लिए पैदल सफर शुरू होता है।

ईराणी गांव

खतरों से भरी है ये पूरी घाटी में दो बार बाढ आई है।इस घाटी में 1883 में गौणा गाँव से आगे एक विशालकाय झील बनी थी और जब ये झील टूटी तो चमोली,श्रीनगर शहर  तबाह हो गया।उसके बाद 1970 में भी विरही गंगा में बाढ आई थी जिसने बाद में अलकनंदा घाटी में काफी तबाही मचाई थी। इस पूरी घाटी में करीब 12 गांव है जिसमें पाणा,इराणी और झींझी गांव ही अभी तक सडक मार्ग से नही जुडे है।

निजमुला घाटी में बसा प्यारा गांव ईराणी

इराणी गाँव अपने लहलहाते खेतो के लिए लिए प्रसिद्ध है।गाँव में सबसे ज्यादा उत्पादन चौलाई का होता है।इस गाँव की चौलाई इतनी प्रसिद्ध है कि ऐसे अब विदेशों में भी एक्सपोर्ट किया जा रहा है।गाँव से आगे कई बुग्याल है और सप्तकुंड जाने का पैदल मार्ग भी है।इसके अलावा आलू और राजमा का भी उत्पादन यहाँ के ग्रामीण करते है।ईराणी गांव से आगे तीन किमी की दूरी पर दूसरा गांव खूबसूरत गांव पाणा बसा हुआ है।

घाटी में मौजूद है पर्यटन की अपार संभावनाएं

निजमुला घाटी में पर्यटन की अपार संभावनाएं है।इस घाटी में विहरी से निजमुला गांव तक सड़क पक्की है लेकिन निजमुला से आगे अभी सड़क कच्ची है।ईराणी गांव में अभी भी स्थानीय लोगों को पैदल ही सफर शुरु करना पडता है।स्वास्थ्य और शिक्षा की स्थिति इस घाटी में काफी चिन्ताजनक है।इसी घाटी से होकर विश्व प्रसिद्व सप्त ऋषि कुंड और लार्ड कर्जन ट्रैक भी होकर गुजरता है।ईराणी गांव समुद्र तल से करीब 2400 मीटर की ऊचाई पर स्थित है।

निजमुला घाटी का विहंगम दृश्य

खतरों से झूझते है घाटी के लोग

इस घाटी के लोग खतरों से जुझते है।बरसात के समय इस घाटी में अतिवृष्टि से काफी नुकसान होता है।नदियां और गाड,गदेरे ऊफान पर होते है।रास्ते और पैदल पुल कई बार बह जाते है।आपदा की दृष्टि से भी ये घाटी काफी संवेदनशील है।इस घाटी में पिछली सदी के भीषणतम बाढ का प्रकोप पूरी अलकनंदा घाटी में दिखाई दिया।घाटी में सर्दियों के समय बर्फबारी भी काफी होती है।इस घाटी में निजमुला,पगना, पाणा ,ईराणी,झीझीं और गौणा गांव सहित एक दर्जन गांव स्थित है।

Sandeep Gusain

नमस्ते साथियों।

मैं संदीप गुसाईं एक पत्रकार और content creator हूँ।
और पिछले 15 सालों से विभिन्न इलेक्ट्रानिक मीडिया चैनल से जुडे हूँ । पहाड से जुडी संवेदनशील खबरों लोकसंस्कृति, परम्पराएं, रीति रिवाज को बारीकी से कवर किया है। आपदा से जुडी खबरों के साथ ही पहाड में पर्यटन,धार्मिक पर्यटन, कृषि,बागवानी से जुडे विषयों पर लिखते रहता हूँ । यूट्यूब चैनल RURAL TALES और इस blog के माध्यम से गांवों की डाक्यूमेंट्री तैयार कर नए आयाम देने की कोशिश में जुटा हूँ ।

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