आपने विश्वप्रसिद्व स्कीईंग रिजार्ट औली का नाम तो जरुर सुना होगा। जोशीमठ से मात्र 14 किमी की दूरी पर स्थित औली बुग्लाय स्कीईंग के लिए जाना जाता है लेकिन आज हम आपको एक ऐसे बुग्याल के बारे में बताएंगे जिसे प्रकृति ने शायद स्कीईंग के लिए तैयार किया है। नाम भी औली बुग्याल से मिलता जुलता है। मखमली घास के ढलान और रंग बिरंगे फूलों की बगियां में इस बुग्याल की बिल्कुल अलग ही छटा मिलती है।

जरा सोचिए मीलों तक हरियाली की चादर ओढ़ा बुग्याल….जिसमें कभी धूप तो कभी छांव हर पल सूरज की किरणों की परीक्षा ले रही हो……..बादल आपको छू कर निकल जाते हो……….बेशकीमती रंग बिरंगे फूलों की खूशबू आपको मदहोस कर रही हो……..तो समझिए आप स्वर्ग की सैर पर है।प्रकृति प्रेमियों और ट्रैकर्स के लिए यही स्वर्ग है और यह स्वर्ग की धरती है आली बुग्याल……जी हां चमोली गढवाल यूं तो प्रकृति के अनुपम सौन्दर्य को अपने में समेटे है लेकिन आली बुग्याल का नैसर्गिक सौन्दर्य सभी को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता है।राजधानी देहरादून से ऋषिकेश बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर पहाडों के दीदार और अलकनन्दा की लहरों के बीच आप जैसे ही कर्णप्रयाग पहुचेंगे तो यही से आपका सफर आली बुग्याल के लिए शुरु हो जाएगा।
हिमालय की ग्रामीण परिवेश की दिखेगी झलकियां
कर्णप्रयाग से ग्वाल्दम-बागेश्वर पिथौरागढ राष्ट्रीय राजमार्ग पर 70 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद आप देवाल पहुचेंगे जहां से करीब 30 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद वाण गांव स्थित है। वाण गांव नंदा लोकजात और राजजात यात्रा का अंतिम पड़ाव भी है। वाण गांव में आपको उच्च हिमालय क्षेत्र की लोकसंस्कृति की छटा भी दिखाई देगी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वाण गांव से मां भगवती बेटी से बहु के रुप में पूज्यनीय होती है यही से कैलाश क्षेत्र का ससुराल क्षेत्र भी शुरु हो जाता है। वाण गांव में ही नंदा देवी के धर्म भाई लाटू देवता का पौराणिक मंदिर स्थित है। मान्यता है कि नंदादेवी लोकजात और राजजात के दौरान लाटू देवता अपनी बहिन की अगुवाई करता है। घने देवदार के बीच स्थित लाटू देवता के प्राचीन मंदिर के पास ही वन विभाग और जीएमवीएन के गेस्ट हाऊस स्थित है। समुद्र तल से 2500 मीटर की ऊचाईं पर स्थित वाण गांव में ग्रामीण पर्यटन की असीम संभावनाएं मौजूद है।

वाण से जैसे ही आपके कदम आली बुग्याल की ओर बढ़ेगे आपको घने जंगलो के बीच से जाना होगा। बांज बुराश,कैल और फर्र प्रजातियों का करीब सात किलोमीटर का जंगल इस ट्रैक की खूबसूरती में चार चांद लगा देता है।जंगल ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए यह आत्मिक शांति और हिमालय की जैवविविधता को जानने का बेहतरीन ट्रैक है। रास्ते में कई छोटी जलधाराओं,वन्ज जीवों और पक्षियों का मधुर कलरव आपकों महानगरों की भागदौड भरी जिन्दगी से आजाद कर देगा और आपको हिमालय के करीब होने का अहसास करायेगा।वाण से बेदनी बुग्याल की कुल दूरी करीब 12 किलोमीटर है और पूरा रास्ता घने जंगलों से होकर गुजरता है।नंदा राजजात और लोकजात के समय श्रद्वालु और पर्यटक बेदनी बुग्याल का रुख कर लेते है। बेदनी बुग्याल से ही जुडा है आली बुग्याल जहां स्कीईंग की असीम संभावनाएं छुपी है।

- नंदी कुंड – जहाँ आज भी मौजूद है पांडवो के हथियार | Nandi kund Uttarakhand
- Beauty of balpata Bugyal | Visit Chamoli Uttarakhand
पर्यटन की तस्वीर बदल सकता है आली-बेदनी बुग्याल
यह कुरदरी हरा घास का मैदान घोडे की पीठ की तरह नजर आता है जिसके चारों ओर विश्वस्तरीय स्कीईंग ढलान है और स्कीईंग के शौकीनों के लिए बेहतरीन स्की रिजार्ट बन सकता है। यहां करीब 100 से अधिक फाल्स है जो 500 मीटर गहराई और करीब 5 किमी की चौडाईं में फैला है। आली बुग्याल समुद्र तल से बारह हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित है। चमोली जिले में स्थित आली बुग्याल के विकास के लिए स्थानीय लोग समय समय पर अपनी आवाज उठाते रहे है। पूर्व ब्लाक प्रमुख डीडी कुनियाल कहते है कि आली बुग्याल को विकसित करने की घोषणा तो कई बार की गई लेकिन धरातल पर आज तक कुछ नही हुआ।कुनियाल कहते है कि राज्य सरकार से कई बार इस पूरे क्षेत्र के लिए पिंडर-नन्दाकिनी विकास प्राधिकरण बनाने का प्रस्ताव भेजा गया।वे कहते है कि बुग्याल और वन विभाग की सीमा में होने के कारण वहां आधारभूत सुविधाएं मुहैय्या कराने में दिक्कत हो रही है।

वाण से आली बुग्याल तक रोपवे की है मांग
हाल ही में राज्य के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने वाण गांव से आली बुग्याल तक रोवपे बनाने की घोषणा फिर की।वाण गांव के रणकधार से ढोलियाधार तक रोपवे बनाने के लिए सर्वे भी किया जा चुका है। आली-बेदनी बुग्याल के आस पास कई गांव स्थित है जिनमें दिधिना, बांक, कुलिंग, बलाड, सुतोल, कनोल और घेस गांव मौजूद है। आली-बेदनी-बजनी बुग्याल संरक्षण समिति के अध्यक्ष दयाल सिंह पटवाल कहते है कि यहां स्कीईंग के ढलान जोशीमठ के पास स्थित औली बुग्याल से भी बेहतरीन स्लोप्स है लेकिन सरकार की अनदेखी के चलते आली बुग्याल पहचान बनाने से पहले ही अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है और ना ही इनके संरक्षण की कोई नीति बनी है। बुग्याल स्थानीय पशुओं के चारागाह के साथ ही जलस्रोत के भंडार भी है। देवाल क्षेत्र में स्थित तीन बुग्याल में व्यावसायिक चुगान काफी बढ गया था। दयाल सिंह पटवाल कहते है बाहरी पर्यटक और श्रद्वालु बुग्यालों में प्रवास के दौरान बडी मात्रा में प्लास्टिक कचरा छोड देते है। जिससे बुग्यालों को काफी नुकसान हो रहा है और बुग्यालों की जैवविविधता खतरे में है। वे कहते है किबुग्यालों में ठेकेदारी चुगान पूरी तरह प्रतिबंधित होना चाहिए।

आली विश्वस्तरीय स्कीईंग रिजार्ट के रुप में ऊभर चुका है लेकिन आली बुग्याल पर्यटन के मानचित्र पर भी नही उभर पाया। जबकि 1972 में क्षेत्रीय विधायक शेर सिंह दानू ने आली बुग्याल में विश्वस्तरीय स्कीईंग की संभावनाओं को देखते हुए इसे विकसित करने के लिए रोपवे लगाने का प्रस्ताव भेजा था।स्थानीय लोगो की माने तो चार दशक पहले अगर आली बुग्याल में रोपवे का निर्माण कर दिया जाता तो तस्वीर कुछ और होती और इससे स्थानीय युवाओं को रोजगार भी मिलता। आली बुग्याल की खूबसूरती के विदेशी पर्यटक भी कायल है। बेदनी बुग्याल से लगा आली बुग्याल दुनिया के लिए अभी भी छुपा रहस्य है। कुलिंग गाव की रुपा देवी कहती है बाहरी सैलानी बुग्यालों में प्लास्टिक कचरा फैला देते है। उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित बेदनी और आली बुग्याल देश दुनिया में आकर्षण पैदा करते है।

बेदनी-आली बुग्याल है नंदाराजजात-पिंडारी ग्लेशियर के लिए आधार शिविर
कुलिंग गाव के धर्मवीर सिंह बिष्ट कहते है आली-बेदनी-बजनी बुग्लाय के साथ ही इस पूरे क्षेत्र में विश्वस्तरीय ट्रैक रुट है। यहां से पिंडारी ग्लेशियर, रहस्यमय रुपकुंड, ज्यूरागली, शिलासमुद्र और मां नंदा के कैलाश स्थल होमकुंड ट्रैक प्रसिद्व है। धर्मवीर कहते है बर्फबारी के बाद स्थानीय युवा यहां स्कीईंग करते है लेकिन वो प्रोफेशनल नही है। वे कहते है आली बुग्याल में बर्फ अप्रैल माह तक टिकी रहती है।इस क्षेत्र में विदेशी और बंगाली पर्यटक आली बुग्याल के दीदार के लिए बडी संख्या में पहुचते है। आली बुग्याल ट्रैक पर पहुचे आस्ट्रैलिया के पर्यटक ग्रुप यहां की नैसर्गिक सौन्दर्य को देख मंत्रमुग्ध हो गये।विदेशी पर्यटक मार्श कहते है कि कई बार इस ट्रैक पर आये है यहां के ढलान स्कीईंग के लिए बेहद प्राकृतिक है। मार्श कहते है कि यहां आकर लगता है कि जैसे किसी कलाकार ने बुग्याल,जंगलों और हिमालय के गगनचुंभी शिखरों को कैन्वास पर उतार दिया है।

आप भी करें आली बुग्याल की सैर
तो आप भी अगर आली बुग्याल की सैर पर जाना चाहते है तो फिर अगस्त से लेकर नवम्बर माह सबसे सही समय है जब आली बुग्याल में मखमली घास और कई जडी बूटियों आपको मदहोश कर देंगी। अगर आप मखमली हरी चादर की जगह आप बर्फ पर अटखेलियां करना चाहते है तो फरवरी से अप्रैल माह में यहां पहुच सकते है।अगर आप स्कीईंग के शौकीन है और आली के बेहतरीन ढलानों पर स्कीईंग भी कर सकते है लेकिन इसके लिए आपको स्कीईंग की पूरी तैयारी के साथ आना होगा। मार्च से जून तक का समय खुशनुमा रहता है मार्च अप्रैल में बुरांश के सुर्ख लाल फूलों से आपको अपने चारों ओर की पहाड़ियां किसी दुल्हन की तरह लगेगी।

पढ़ने में ही इतना मनोरम लग रहा है मानो हम वहीं चले गए हों तो जाकर कितना मनमोहक लगेगा। 👌👌
जरूर चाँदनी जी ! एक बार जाकर देखिये मंत्रमुग्ध कर देने वाले दृश्य हैं !
धन्यवाद